मौर्य साम्राज्य का इतिहास उत्थान से पतन
मौर्य साम्राज्य (322 से 185 ई.पू.)
322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य (कौटिल्य/विष्णुगुप्त) की सहायता से नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को पराजित कर मगध पर मौर्य वंश की स्थापना की।
मौर्य राजवंश प्राचीन भारत का एक शाक्तिशाली राजवंश था। जिसने 137 वर्ष तक भारत में शासन किया।
भागवत पुराण के अनुसार मौर्य वंश के दस राजा हुए जबकि वायु पुराण के अनुसार नौ राजा हुए।
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (322 से 298 ई.पू.)
प्राचीन भारत के इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य पहला साम्राट था जो शाक्तिशाली योद्धा ही नहीं अपितु कुशल और उच्च कोटि का प्रशासक व चतुर राजनीतिज्ञ भी था। वह प्रथम भारतीय राजा था जिसने वृहद भारत पर अपना शासन स्थापित किया जिनका साम्राज्य दक्षिण भारत से लेकर अफगानिस्तान, ईरान की सीमाओं तक था।
चन्द्रगुप्त मौर्य भारत का प्रथम चक्रवर्ती सम्राट था जिनके नेतृत्व में भारतवर्ष में सर्वप्रथम राजनैतिक केन्द्रीकरण, विकसित अधिकारी तंत्र, उचित न्याय व्यवस्था, नगर, कृषि, उद्योग, संचार एवं व्यापार में वृद्धि हुआ।
मौर्य साम्राज्य में चाणक्य एक महान विभूति थे । उनका वास्तविक नाम विष्णुगुप्त था। उनके पिता का नाम चणक थे इसलिए वे चाणक्य कहलाए।
नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद ने चाणक्य को भरी सभा मे अपमानित किया ‘उसने कहा कि तुम एक पंडित हो और अपनी चोटी का ही ध्यान रखो, युद्ध करना राजा का काम है, तुम पंडित हो सिर्फ पंडिताई करो‘ तब चाणक्य ने चोटी खोलकर प्रतीज्ञा की ‘जब तक मैं नंद वंश का अंत नहीं कर देता, तब तक अपनी चोटी या शिखा नहीं बाँधूँगा‘ इस प्रतिज्ञा के परिणामवश ही नंद वंश का अंत हुआ। चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण मौजूद थे। चाणक्य ने इसी योग्यता को देखते हुए उसे एक हजार में कषार्पण में खरीद कर उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे तक्षशिक्षा में लाकर सभी विद्या में निपुण किया एवं एक सबल राष्ट्र की नींव रखी जो मौर्य साम्राज्य के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
इस विस्तृत साम्राज्य को चलाने मेें उनके गुरू और प्रधान आमात्य आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) प्रमुख सलाहकार थे जिन्होंने सुशासन के लिए एक महान ग्रंथ अर्थशास्त्र की रचना की थी जिसमें राजनीति, अर्थनीति, इतिहास, शासन के लिए विस्तृत नियमों, तर्कशास्त्र, आचरण शास्त्र, धर्म आदि पर का विस्तार से वर्णन किया। अर्थशास्त्र मौर्यकाल के इतिहास का दर्पण है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य वंश का प्रथम शासक तथा संस्थापक था। इसने 24 वर्ष तक शासन किया।
- साहित्यिक स्त्रोत से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त पिप्पलिवन के सूर्यवंशी मौर्य वंश का था। इसके पिता पिप्पलिवन के नगर प्रमुख थे। इसका जन्म पाटलिपुत्र में हुआ था तथा एक गोपालक/चरावाह द्वारा पोषित किया गया।
- यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क और एरियन ने चन्द्रगुप्त मौर्य को एण्ड्रोकोटस के रूप में उल्लेखित किया। स्ट्राबो, जस्टिन, विलियम जोंस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को ही सेण्ड्रोकोटस तथा फिलार्कस ने सैण्ड्रोकोप्टस कहा है।
- 317 ई. पू. उसने संपूर्ण सिंध और पंजाब प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। पंजाब विजय चन्द्रगुप्त मौर्य की प्रथम विजय थी।
- चन्द्रगुप्त ने घनानंद को पराजित कर मगध के विशाल साम्राज्य का शासक बन गया।
- 305 ई.पू. में सिकंदर के सेनापति सीरिया के शासक सेल्यूकस ने सिकंदर द्वारा पूर्व विजित भू भाग प्राप्त करने भारतीय क्षेत्रों पर आक्रमण कर दिया।
- चन्द्रगुप्त और सेल्यूकस के बीच सिंधु नदी के किनारे युुद्ध हुआ। युद्ध में सेल्यूकस पराजित हुआ। सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलना/कार्नेलिया का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से किया।
- सेल्यूकस ने अपने 4 चार परोपनीषदी (काबुल), आर्काेशिया (कंधार), एरिया (हेरात) तथा जेड्रोशिया (बलूचिस्तान) चन्द्रगुप्त मौर्य को दे दिया।
- सेल्यूकस के यूनानी राजदूत मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहने लगा। मेगस्थनीज ने इंडिका नामक पुस्तक कि रचना की।
- सौराष्ट्र के पुष्यगुप्त वैश्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य के निदेश पर सुदर्शन झील (गिरनार पहाड़ी, गुजरात) बनवाया था।
- चन्द्रगुप्त मौर्य के विशाल साम्राज्य में काबुल, कंधार, बलूचिस्तान, कश्मीर, पंजाब, गुजरात गंगा यमुना का मैदान, बिहार, विन्ध्य से दक्षिण भारत में कर्नाटक के मैसूर तक अपना साम्राज्य स्थापित किया। चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।
- विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त मौर्य का विशिष्ट वर्णन किया है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत का मुक्तिदाता की संज्ञा दी गई है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवनकाल के अंतिम समय में जैनाचार्य भद्रबाहु से प्रभावित होकर जैन धर्म ग्रहण किया तथा श्रवणबेलगोला में जाकर 298 ई.पू. में संथारा/सल्लेखना (उपवास) द्वारा अपना शरीर त्याग दिया।
बिन्दुसार (298 से 273 ई.पू.)
- बिन्दुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का पुत्र था। 298 में मगध की गद्दी पर बैठा। इसने 25 वर्ष तक शासन किया।
- बिन्दुसार की माता दुर्धरा थी यह नंद वंश की अंतिम शासक घनानंद की पुत्री थी।
- वायु पुराण में बिन्दुसार को मद्रसार, जैन साहित्य में सिंहसेन कहा गया है।
- यूनानी इतिहासकारों ने बिन्दुसार को अमित्रोचेटस/अभिलोचेट्स कहा है। जिसका संस्कृत अर्थ अमित्रघात होता अर्थात् शत्रुओं का नाश करने वाला (शत्रु विनाशक)।
- बिन्दुसार आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।
- सीरिया के शासक एंटियोकस प्रथम का राजदूत डाइमेकस बिन्दुसार के दरबार में रहता था।
- बिन्दुसार के गुप्तचर विभाग में महिला गुप्तचर भी थी।
- महावंश व दीपवंश नामक बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बिन्दुसार की सोलह रानियाँ थी तथा एक सौ एक पुत्र थे।
- बिन्दुसार के शासनकाल में तक्षशिला में दो बार विद्रोह हुआ था। पहला विद्रोह को दबाने के लिये ने अपने पुत्र सुसीम को और दूसरी बार अपने दुसरे पुत्र अशोक को भेजा था।
- एथीनियस के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एण्टियोकस-1 से मीठी शराब, सूखे अंजीर एवं एक दार्शनिक की मांग की थी दो वस्तुएं मीठी शराब तथा अंजीर तो भेजवा दिया परंतु यूनानी दार्शनिक की मांग को ठकुरा दिया था।
- बिन्दुसार की सभा में 500 सदस्यों वाली एक मंत्रिपरिषद थी जिसका प्रधान खल्लाटक था।
सम्राट अशोक (273 से 232 ई.पू.)
- अशोक बिन्दुसार का पुत्र था। उसकी माता का नाम शुभद्रांगी जो चंपा के ब्राम्हण की कन्या थी। अशोक का 273 ई.पू़ में मगध के सिंहासनारोहण हो चुका था उसका राज्याभिषेक 04 वर्ष के बाद 269 ई.पू. में हुआ। इसने 41 वर्ष तक शासन किया।
- सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था।
- बौद्धग्रंथों में अशोक को देवानाप्रिय, देवानामाप्रिय, देवाना प्रियदर्शिनी तथा पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है।
- अशोक की पत्नी 1 देवी जिसके महेन्द्र (पुत्र) एवं संघमित्रा (पुत्री) 2 कोरूवकी/कारूवकी जिसके तीवर (पुत्र) रानी के अभिलेख में कारूवकी और तीवर का उल्लेख मिलता है। 3 पदमावती जिसका पुत्र कुणाल 4 तिस्यरक्षा ।
- मगध के राज्याभिषेक के पहले अशोक अवंति (उज्जैन) का राज्यपाल था।
- जैन अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने बिन्दुसार की इच्छा के विरूद्ध मगध के शासन पर अधिकार कर लिया।
- अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष 261 ई.पू. में कलिंग पर आक्रमण किया तथा उसे जीत लिया।
- कलिंग के युद्ध में बहुत बड़ी संख्या में नरसंहार हुआ भारी रक्तपात को देखकर अशोक की अन्तरात्मा का झकझोर दिया और इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसका हृदय परिवर्तन हो गया और उसने युद्धनीति को छोड़कर धम्म नीति का पालन किया। अशोक ने बौद्धधर्म स्वीकार किया।
- अशोक ने अपनी प्रजा के कल्याण तथा उत्थान के लिये आचार संहिता बनाई थी इसे अशोक की धम्म कहा गया। धम्म पाली भाषा का शब्द है। धम्म शब्द की व्याखा अशोक के दूसरे व सातवें स्तंभ अभिलेख में मिलती है। जिसके अनुसार मीठी बोलना, दूसरों के प्रति व्यवहार में मधुरता, जनकल्याण कार्य करना, दया एवं पाप रहित होना ही बड़ों की आज्ञा मानना, गुरूओं के प्रति आदार, प्राणियों का वध करना धम्म के अंतर्गत आते है।
- अशोक पहले ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था। कल्हण के राजतरंगिणी में उसे शैव धर्म का उपासक था तथा निग्राध के प्रवचन सुनकर उसने बौद्ध धर्म को अपना लिया।
- हेवनस्वांग के अनुसार उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिया था।
- बौद्धधर्म के प्रचार के लिए अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र व पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था।
- बौद्ध ग्रंथ महावंश के अनुसार अशोक ने 84000 स्तूपों का निर्माण किया था। इन स्तूपों को ईंटों से बनाया गया था। वर्तमान में दो स्तूप बचे है साँची और सारनाथ का स्तूप। जिसमें साँची का स्तूप को विशाल होने के कारण महास्तूप भी कहा जाता है। सारनाथ स्तूप को धर्म राजिक स्तूप भी कहते हैं।
- कल्हण की राजतंरगिनी के अनुसार अशोक ने कश्मीर में वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे श्रीनगर की स्थापना किया था।
- भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया। इसी कारण से उसे शिलालेखों का जनक कहा जाता है। संदेशों को अभिलेखों के माध्यम से जनता तक पहुंचाने वाला भारत का पहला शासक अशोक था। अशोक ने अपने शासकीय एवं राजकीय आदेशों को शिलालेखों पर खुदवाकर विभिन्न भागों में स्थापित किया।
- ग्रीक एवं अरमाइक लिपि का अभिलेख अफगानिस्तान से, खरोष्ठी लिपि (दायीं से बांयी ओर लिखी जाती है) का अभिलेख शाहवाजगढ़ी एवं मनसेहरा (पाकिस्तान) से शेष भारत से ब्राम्ही लिपि के अभिलेख में खुदवाए।
- अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है – शिलालेख, स्तम्भलेख तथा गुहालेख
- अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई. में पाद्रेटी फेन्थैलर ने की थी जिनकी संख्या 14 है। अशोक के अभिलेख को सबसे पहले 1837 में जेम्स प्रिसेप ने पढ़ा था। इन्होंने दिल्ली टोपरा अभिलेख को पढ़ा था।
- अशोक के प्रथम शिला अभिलेख में पशु बलि की निंदा कर रोक लगाई गई है।
- अशोक के दीर्घ स्तम्भ लेखों की संख्या 7 है, जो 06 अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुये सारे स्तम्भ लेख केवल ब्राम्ही लिपि में लिखी गयी है। अभिलेखों में अशोक ने अपना नाम देवनाम प्रियदर्शी (देवताओं को पसंद) लिखवाया है। अशोक ने खुद को मगध का सम्राट राजस्थान के भाब्रू अभिलेख में बताया है।
प्रयाग स्तम्भ लेख – प्रारंभ में यह कौशाम्बी में स्थित था। जिसे अकबर ने प्रयागराज के किले में स्थापित कराया।
दिल्ली टोपरा – यह स्तम्भ लेख फिरोजशाह तुगलक के द्वारा टोपरा से दिल्ली लाया गया।
दिल्ली मेरठ– यह स्तम्भ लेख मेरठ में स्थित जिसे फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में लाया।
रामपुरवा, लौरिया अरेराज, लौरिया नंदनगढ़ – यह तीनों स्तम्भ लेखा चम्पारण (बिहार) में स्थापित है। - अशोक के लघु स्तम्भ लेख 05 स्थानों से प्राप्त हुए है प्रयागराज-कौशाम्बी, सारनाथ (उत्तरप्रदेश), साँची (मध्यप्रदेश) निग्लीसागर, रूम्मिनदेई (नेपाल)। अशोक के लघु स्तम्भ लेख पत्थर पर लिखे गये छोटे लेख हैं। इनमें अशोक के प्रशासनिक निर्देश हैं। लघु स्तम्भ लेख ब्राम्ही लिपि में लिखे हुए है।
- अशोक के दीर्घ शिलालेख 08 स्थान से प्राप्त हुए है। धौली, जौगढ़ (उड़ीसा), मानसेहरा, शहबाजगढ़ी (पाकिस्तान), जूनागढ़ (गुजरात), सोपारा (महाराष्ट्र), काल्सी (उत्तराखंड), येर्रागुडी (आंध्रप्रदेश) इन 08 स्थानों में अशोक के 14 वृहद शिलालेख है। दीर्घ शिलालेख प्राकृतिक चट्टानों पर लिखे गये लंबे लेख है। इसमें प्रशासन एवं धम्म से संबंधित लेख है। जिनमें 14 बातें है इसलिए इसे चर्तुदश लेख कहा जाता है। दीर्घ शिलालेख, ब्राम्ही और खरोष्ठी लिपि में लिखा हुआ है। अशोक के 13 वें शिलालेख में कलिंग विजय का वर्णन एवं ह्दय परिवर्तन का उल्लेख है। कलिंग का युद्ध 261 ई.पू. में हुआ था।
- अशोक के लघु शिलालेख 20 स्थानों पर प्राप्त हुए है जिनकी संख्या 21 है। लघु शिलालेख ब्राम्ही लिपि में लिखे हुए है। लघु शिलालेख में अशोक के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित लेख है।
- तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन पाटलिपुत्र में 251 ई.पू. में अशोक के शासन काल में हुआ इस सभा की अध्यक्षता गोग्गतिपुत्त तिस्स ने की थी।
मौर्यों का प्रशासनिक व्यवस्था
- मौर्यकालीन प्रशासन चाणक्य के सप्तांग सिद्धांत पर आधारित था। सप्तांग सिद्धांत के अनुसार – 1 राजा (सिर), 2 अमात्य (आँख) 3 जनपद (जंघा) 4 दुर्ग (बाँह) 5 कोष (मुख) 6 सेना (मस्तिष्क) 7 मित्र (कान)
- राजा का पद वंशानुगत होता था।
- चाणक्य का अर्थशास्त्र राजनीति विज्ञान की प्राचीन पुस्तक है। अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों (विभाग) का उल्लेख है। जो निम्नानुसार है:-
- प्रधानमंत्री/पुरोहित – राजा का प्रमुख सलाहकार एवं धर्मों से संबंधित कार्यों का प्रमुख
- मुख्यसमाहर्ता – राजस्व अधिकारी
- सन्निधाता – कोषाध्यक्ष
- सेनापति – सेना का प्रधान अधिकारी
- युवराज – राजा का उत्तराधिकारी, भावी राजा
- प्रदेष्टा – कंटकशोधन (फौजदारी) न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश
- व्यावहारिक – धर्मस्र्थाय (दीवानी) न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश
- नायक– सेना का संचालक
- कर्मान्तिक – कल कारखानों का प्रमुख
- मंत्रिपरिषदाध्यक्ष – मंत्रि परिषद का अध्यक्ष
- आन्तर्वशिक – अंगरक्षक सेना का प्रमुख
- दंडपाल – सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने वाला
- आटविक – वन विभाग का प्रमुख
- दौवारिक – राजमहल की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला
- प्रशास्ता – पत्राचार विभाग का प्रमुख
- नागरक – नगर का प्रमुख प्रबंधक
- अंतपाल – सीमांत दुर्गों का रक्षक
- सैन्य प्रशासन – साम्राज्य के अंदर दुर्गों का रक्षक
- इन 18 तीर्थो/विभाग के नियंत्रण में 26 विभाग होते थे। जिनकेे प्रमुख को अध्यक्ष कहा जाता था।
- पण्याध्यक्ष – व्यापार वाणिज्य विभाग का प्रमुख
- सीताध्यक्ष – राजकीय कृषि की देखभाल करने वाला
- शुल्काध्यक्ष – कर एकत्रित करने वाला प्रमुख
- मुद्राध्यक्ष – पासपोर्ट विभाग का प्रमुख
- लक्षणाध्यक्ष – मुद्रा विभाग का प्रमुख
- गणिकाध्यक्ष – वेश्यालयों विभाग का प्रमुख
- अकाराध्यक्ष – खनिज विभाग का प्रमुख
- पौत्वाध्यक्ष – माप तौल को नियंत्रित करने वाला प्रमुख
- कुप्याध्यक्ष – वन निरीक्षकों का प्रमुख
- सुराध्यक्ष – आबकारी विभाग का प्रमुख
- लवणाध्यक्ष – नमक विभाग का प्रमुख
- देवताध्यक्ष – मंदिरों का निर्माण एवं मंदिरों की देखरेख करने वाला
- नावाध्यक्ष – जहाजों का प्रमुख
- सूत्राध्यक्ष – वस्त्र विभाग का प्रमुख
- मानाध्यक्ष – देश, काल के मान को नियंत्रित करने वाला
- विवीताध्यक्ष – चारागाहों का प्रमुख
- गौवाध्यक्ष – पशुओं की देखभाल करने वाला प्रमुख
- हस्त्याध्यक्ष – हाथियों की देखभाल करने वाला प्रमुख
- अश्वाध्यक्ष – घोड़ों की देखभाल करने वाला प्रमुख
- लौहाध्यक्ष – लोहा का उत्खन्न करने वाला प्रमुख
- सुवर्णाध्यक्ष – सोने का उत्खन्न करने वाला प्रमुख
- खन्याध्यक्ष – समुद्री खानों का प्रमुख
- बन्धनागाराध्यक्ष – कारागार का प्रमुख
- आयुधगाराध्यक्ष – अस्त्र-शस्त्र का निर्माण करने वाला प्रमुख
- अक्षपटालिकाध्यक्ष – राजकीय दस्तावेजों की सुरक्षा करने वाला प्रमुख
- संस्थाध्यक्ष – व्यापारिक मार्गों का प्रमुख
- पत्तनाध्यक्ष – बंदरगाहों की देखरेख करने वाला प्रमुख
सैन्य प्रशासन
1 जस्टिन नामक यूनानी लेखक के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल सेना, 30 हजार अश्वरोही, 9 हजार गज सेना, 8 हजार रथ सेना था।
2 मौर्य सेना को 6 भागों में विभाजित किया गया था जिनके नियंत्रण हेतु 06 समितियाँ थी। प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे। जल समिति, अश्वसमिति, पैदन सेना समिति, गज सेना समिति, रथसेना समिति एवं रसद आपूर्ति समिति।
गुप्तचर व्यवस्था
गुप्तचर को गूढ़ पुरूष कहा जाता था। गुप्तचर विभाग के प्रमुख को महामात्य सर्प कहा जाता था। संस्था गुप्तचर – गुप्तचर एक ही जगह रहकर गुप्तचरी का कार्य करते थे। संचरा गुप्तचर – घूम-घूम कर गुप्तचरी करता था।
न्याय व्यवस्था
मौर्यकाल का सबसे बड़ा न्यायालय राजा का केन्द्रीय न्यायालय होता था। फौजधारी मामलों को देखने वाले न्यायालय को कंटकशोधन न्यायालय कहा जाता था जिसका न्यायाधीश प्रदेष्टा होता था। दीवानी मामलों को देखने वाले न्यायालय को धर्मस्थीय न्यायालय कहा जाता था जिसका न्यायाधीश धर्मस्य/व्यावहारिक न्यायायलय कहलाता था। क्षेत्रीय/गणराज्य के न्याय व्यवस्था की कार्य प्रणाली की देखरेख करने वाले न्यायाधीश को रज्जुक कहा जाता था।
नगर व्यवस्था
1.मेगस्थनीज के पुस्तक इंडिका के अनुसार पाटलिपुत्र (पोलिब्रोथा) में सैन्य प्रशासनिक व्यवस्था जैसे ही नगर व्यवस्था के लिए 30 सदस्यीय एक सभा थी जिसमें 5-5 सदस्यों की 06 समितियाँ थी। नगर के प्रमुख अधिकारी को एस्ट्रोनोमाई कहा जाता था।
- मौर्य काल में नगर 05 प्रांतों में विभक्त था जिसे चक्र कहा जाता था। प्रत्येक चक्र के प्रमुख को कुमार कहा जाता था।
- उत्तरपथ (चक्र) – तक्षशिला (राजधानी)
- दक्षिणपथ (चक्र) – सुवर्णगिरी (राजधानी)
- मध्यदेश (चक्र) – पाटलिपुत्र (राजधानी)
- अवंति (चक्र) – उज्जयिनी (राजधानी)
- कंलिग (चक्र) – तोषाली (राजधानी)
- प्रांत मण्डलों में विभक्त था जिसे देश कहा जाता था। यहाँ का प्रमुख अधिकारी प्रादेशिक/महामात्य होता था।
- मंडल जिलों में विभक्त था जिसे विषय या आहार कहा जाता था। यहाँ का प्रमुख अधिकारी समाहर्ता होता था।
- मौर्य काल में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव था। जिसका प्रमुख ग्रामिक या ग्रामपति होता था।
मौर्यकालीन सामजिक स्थिति (सामाजिक व्यवस्था)
- पितृसत्तात्मक संयुक्त परिवार होता था। समाज 04 वर्णों में विभक्त था।
- चाणक्य के अर्थशास्त्र में घर से बाहर न निकलने वाली महिलाओं को अनिष्कासिनी कहा गया। स्वतंत्र रूप से जीवन व्यतीत करने वाली विधवाओं को छन्दवासिनी कहा जाता था।
- वेश्याओं को गणिक कहा जाता था। स्वतंत्र वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को रूपाजीवा कहा जाता था।
- अर्थशास्त्र में 08 प्रकार के दासों का उल्लेख है।
- पुनर्विवाह करने वाली स्त्रियों को पुनर्भू कहा जाता था। तलाक प्रथा प्रचलित था जिसे मोक्ष कहा जाता है।
- मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य काल में समाज के सात वर्गों का उल्लेख किया है दार्शनिक, कृषक, पशुपालक, शिल्पी, सैनिक, निरीक्षक और मंत्री।
- मौर्य काल का सबसे प्रसिद्ध शिक्षा का केन्द्र तक्षशिला (वर्तमान में पाकिस्तान) था। चाणक्य तक्षशिला के आचार्य थे।
मौर्यकालीन आर्थिक स्थिति (राजस्व व्यवस्था)
- कृषि आधारित अर्थव्यवस्था थी। वित्तीय वर्ष आषाढ़ से ज्येष्ठ तक होता था। मेगास्थनीज ने इंडिका में लिखा है कि भारत में अकाल नहीं पड़ता था।
- कृषि भूमि से दो प्रकार से आय प्राप्त होती थी। सीताभूमि – राजकीय भूमि से प्राप्त आय। भाग – स्वतंत्र किसानों से लिया जाने वाले भूमि कर। राज्य की आय का प्रमुख स्त्रोत भूमिकर था।
- मौर्यकाल में वनों को दो भाग में विभाजित किया गया था हस्ति वन जहाँ हाथी पाये जाते थे द्रव्य वन जहाँ लोहा, ताँबा, लकड़ी पाये जाते थे।
- बाह्य वस्तु से प्राप्त आय को निष्क्राम्य (निर्यातकर) और आयात कर प्रवेश्य कहा जाता था।
- व्यापारियों से वैंधरण नामक हर्जाना तथा पथकर (वर्तनी कर) लिया जाता था। चारागाहों से विवीत नामक कर, भूमि की माप हेतु रज्जुसर्ज कर, हिरण्य कर– नगद कर तथा सिंचाई के लिए उदक कर लिया जाता था।
- इस काल में वस्त्रोद्योग महत्वपूर्ण था। दूकूल– सफेद तथा चिकने वस्त्र को कहा जाता था। क्षौम– रेशमी वस्त्र को।
- शराब बेचने वाले को शौण्डिक कहा जता था।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजा भूमि का मलिक होता था फसल उत्पादन में भी उसका हिस्सा होता था जिसे भाग कहा गया है।
- चन्द्रगुप्त के सौराष्ट्र के प्रांतीय शासक पुष्यगुप्त ने गिरनार में सुदर्शन नामक एक झील का निर्माण कराया जिस पर बाँध बनाकर नहरों द्वारा सिंचाई की जाती थी।
- व्यापार नियंत्रण के लिए पण्याध्यक्ष प्रमुख अधिकारी होता था।
- माप की सबसे बड़ी इकाई – योजन तथा माप की सबसे छोटी इकाई – परमाणु थी।
- सबसे बड़ा बाट – कुंभ तथा सबसे छोटा बाट सुवर्णमाषक होता था।
- मौर्य काल में द्रोण अनाज के माप के लिए प्रयोग होता था।
- मौर्यकाल में तीन तरह के मुद्रा प्रणाली प्रचलित थी। सोने का सिक्का – सुवर्ण। चाँदी का सिक्का – काषार्पण/पण तथा ताँबे का सिक्का – माषक/काकनी था।
- मौर्यकाल में सिक्का जारी करने वाले लक्षणाध्यक्ष था।
- असली और नकली सिक्कों की जाँच रूपदर्शक नामक अधिकारी द्वारा किया जाता है। सिक्के पंचमार्क सिक्के होते थे।
- मौर्यकाल में व्यापारी काफिले में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे उसे सार्थवाह कहा जाता था।
- मौर्यकाल में भारत का विदेशी व्यापार नेपाल, श्रीलंका, मिस्त्र, सिरिया, चीन के साथ होता था। चीन का रेशमी वस्त्र चीनीपट्ट प्रसिद्ध था। लंका की मोती मौर्यकालीन बाजारों में बिकते थे।
मौर्यकाल कला
मौर्यकाल में अनेक सुंदर तथा कलाकृतियों का निर्माण किया गया जिसमें महल, गुफा स्तम्भ, स्तूप एवं मूर्तियों का निर्माण किया गया। कला की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद तथा मौर्यकाल के पूर्व वास्तुकला और मूर्तिकला का ऐसा प्रमाण कम ही मिलते है। मौर्यकाल के कला को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। राजकीय कला जिसमें राजाओं द्वारा निर्मित महल, स्तूप, गुफाए एवं स्तम्भ के रूप में पाये जाते है। दूसरा लोक कलायें जिसमें यक्ष यक्षीणी की प्रतिमांए, मृण्मूर्तियाँ थे।
राजकीय कला – राजकीय कला के अंतर्गत मौर्य राजप्रसाद (महल), नगर नियोजन, स्तूप, स्तम्भ, गुफाओं आदि को शामिल किया जाता है।
मौर्यकाल महल/भवन
1 मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पोलिब्रोथा (पाटलिपुत्र) की इस काष्ठ नगरी में राजा का भव्य प्रासाद है यह संसार के राजकीय भवनों में सबसे सुंदर है। इस प्रासाद के समाने मूसा व इकबताना के राजा प्रासादों का वैभव भी तुच्छ जाना पड़ता है। इस प्रासाद के मंडित स्तंभों पर स्वर्णिम अंगूरी लतिकाएँ चित्रित हैं, जिन पर चाँदी की चिड़ियाँ कल्लोल करती हैं। प्रासाद के सामने मडलियों के लिए सरोवर बने हैं, जिनकी शोभा को उत्कीर्ण करने के लिए वृक्षकुंज व झाडियाँ लगाई गई। नगर के मध्य में उद्यानों से घिरा हुआ राजप्रसाद था जो बहुत ही सुदंर था।
2 कुम्रहार से राजप्रसाद राॅयल पैलेस के बुलंदी बाग से लकड़ी के महलों के साक्ष्य मिलते है।
3 फाह्यन के अनुसार पाटलिपुत्र का राजप्रसाद (महल) पत्थरों से निर्मित था यह मानव द्वारा नहीं देवाताओं द्वारा निर्मित है।
मौर्यकाल स्तंभ
- अशोक ने अपने स्तंभों में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया जिसे चुनार तथा मथुरा की पहाड़ियों से लाया गया था। अशोक ने स्तम्भ को धम्म प्रचार के लिए बनवाये थे।
- अशोक के स्तम्भ एकाश्मक है अर्थात् एक ही पत्थर से निर्मित हैं जिन पर चमकदार पालिश है। स्तंभ में मेखला, उल्टा कमल, चैकी सबसे उपर पशु आकृति बनी हुई ।
- सारनाथ स्तम्भ इसमें 04 पशु चलते हुए दिखाये गये है। हांथी, वृषभ, सिंह, घोड़ा। इन चार पशुओं के नीचे 24 तीलियों वाला अशोक चक्र है। सारनाथ स्तम्भ भारत का राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह है। अशोक स्तम्भ सारानाथ संग्रह में है।
मौर्यकाल स्तूप
- महावंश के अनुसार मौर्य काल में अशोक द्वारा 84000 स्तूपों का निर्माण कराया गया वर्तमान में दो स्तूप ही शेष बचे हैं। साँची का स्तूप और सारनाथ का स्तूप।
- स्तूप बौद्ध धर्म से संबंधित है। जिसे ईंटों से बनाए गये थे। स्तूप के भाग में तोरण – प्रवेश द्वार, वेदिका, मेधि, अण्ड, सोपान, हर्मिका (गुम्बद के उपर चैकोर संरचना जिसमें बुद्ध के अवशेष रखे जाते है), यष्टि (गुम्बद के उपर) तथा छत्र है।
- साँची का स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने किया था। अपनी विशालता के कारण साँची के स्तूप को महास्तूप भी कहा जाता है।
- सारनाथ स्तूप को धमेख अथवा धर्म राजिक स्तूप भी कहा जाता है।
मौर्यकाल गुफाएँ
- गुफाओं को पर्वतों को काटकर बनाया जाता था। बराबर पहाड़ी में अशोक ने 04 गुफाओं (सुदामा, विश्वझोपड़ी, कर्णचैपड़, लोमषऋषि) का निर्माण करवाया था ।
- नागार्जुनी पहाड़ी पर अशोक के पौत्र दशरथ मौर्य ने 03 गुफाओं (गोपिका, वहियक, वडथिक गुफा) का निर्माण करवाया था और आजीविकों को दान में दिया था।
- यह सभी गुुफाएँ साधारण ढंग से बनी है। प्रवेश द्वारा के ऊपर एक खिड़की बनी हुई है जिसे चेते कहा जाता है। सभी में मौर्य कालीन पाॅलिश मिलता है। सभी गुफाओं को आजीवक सन्यासियों को दान में दी गयी है।
लोककला/मूर्तिकला – मौर्यकाल के लोककला का उदाहरण उन महाकाय यक्ष-यक्षीणी मूर्तियों से होता है जिन्हें आम जनों द्वारा अनके कलाकृतियाँ बनवायी गयी इनसे मौर्यकाल के जनजीवन के विभिन्न पक्षों का अंकन होता है। जिसमें परखम के यक्ष, दीदारगंज की यक्षिणी, नगर के यक्षिणी, मनके, मिट्टी के मूर्तियां, चमकीले पात्रों को सम्मिलित किया जाता है।
यक्ष यक्षीणी की प्रतिमाएँ
- मौर्य काल में जनता द्वारा यक्ष और यक्षीणी की अनेक सुंदर एवं कलात्मक प्रतिमाओं का निर्माण कराया गया था। जिसमें पटना, विदिश और मथुरा से यक्षों तथा यक्षिणियों की बड़ी बड़ी मूर्तियाँ पाई गई है। ये विशाल प्रतिमाएँ खड़ी स्थिति में है।
- यक्षिणी की प्रतिमा दीदारगंज पटना से प्राप्त याक्षिणी काफी कलात्मक है। हाथ में चमार (चैरी) पकड़े खड़ी याक्षिणी बलुआ पत्थर की बनी है। इसकी सतह पाॅलिश की हुई हैै। यह एक लंबी, ऊँची और सुगठिता साज सज्जा आभूषणों से लदी हुई विशेष परिधान में गठीला बदन के साथ प्रतिमा को तैयार किया है। इस यक्षिणी की मूर्ति को तैयार करने वाले मूर्तिकार मानव रूपाकृति के चित्रण में कितना अधिक निपुणता और संवेदनशीलता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।
- परखम मथुरा में प्राप्त यक्ष की मूर्ति जो बलुआ पत्थर से निर्मित 7 फीट ऊँचा है जिसके मुख एवं भुजा खंडित हो चुका है। जिस पर चमकदार पाॅलिश किया गया है। राजघाट वाराणासी से प्राप्त बलुआ पत्थर से निर्मित यक्ष की त्रिमुखी मूर्ति। बुलंदीबार पटना से नारी एवं बालक की मूतियाँ है।
धौली का हाथी
ओड़िशा में धौली की पहाड़ी पर चट्टान को काटकर बनाए गए विशाल हाथी की आकृति भी काफी कलात्मक मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
मनके एवं मृदभांड – कौशाम्बी, चंपा, वैशाली से प्राप्त मनके गोमेद, कार्नेलियन तथा मिट्टी के बने हुए। जिनसे तत्कालीन समाज के जीवन शैली के बारे में विवरण मिलता है।
सम्राट अशोक की मृत्यु 232 ई.पू. में हुई थी। अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य पश्चिमी और पूर्वी भाग में बट गया। पश्चिम भाग पर कुणाल के पुत्र दशरथ मौर्य (232-224 ई.पू.) शासक बना यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। तथा पूर्वी भाग में सम्प्रति मौर्य (224-215 ई.पू.) का शासन था। इसके बाद शालिसुक (215-202 ई.पू.), देववर्मन मौर्य (202-195 ई.पू.), शतधन्वन मौर्य (195-187 ई.पू.) शासक बना जिसके काल में मौर्य साम्राज्य पुरी तरह से सिकुड गया।
बृहद्रथ मौर्य (187-185 ई.पू.)
शतधन्वन का पुत्र बृहद्रथ मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक/अंतिम मौर्य सम्राट था।
मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण
मौर्य साम्राज्य का पतन का प्रमुख कारण अयोग्य एवं निर्बल उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक पराक्रमी योद्धा और कुशाल शासक थे जिसके कारण वे विशाल सामा्रज्य को बनाए रखे परन्तु अशोक के बाद के उत्तराधिकारी इस कार्य में सर्वथा अयोग्य थे, राज्यों के अधिकारी स्वतंत्र हो गए और प्रजा पर अत्याचार करने लगे, आर्थिक संकट भोग विलासिता और कर में वृद्धि, भारत पर विदेशी आक्रमण बढ़ने के कारण जिनसे मुकाबला करने के लिए बृहद्रथ मौर्य ने मना कर दिया प्रजा में विद्रोह होने लगा। पुष्यमित्र शुंग मगध का सेनापति था जिसने उक्त कारणों से मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर मगध में शुंग वंश (मगध साम्राज्य का पहला ब्राम्हण वंश) की स्थापना की।
मौर्य साम्राज्य से संबंधित पूछे जाने वाले प्रश्न Maurya Samrajya FAQs
[1] मौर्य साम्राज्य की स्थापना कैसे हुई?
322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य (कौटिल्य/विष्णुगुप्त) की सहायता से नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को पराजित कर मगध पर मौर्य वंश की स्थापना किया।
[2] मौर्य साम्राज्य का अंतिम सम्राट/अंतिम शासक कौन था?
शतधन्वन का पुत्र बृहद्रथ मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक/अंतिम मौर्य सम्राट था। जिसने 187 से 185 ई.पू. तक शासन किया। वृहद्रथ की हत्या उसके ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने की थी और मगध में शुंग वंश (मगध साम्राज्य का पहला ब्राम्हण वंश) की स्थापना की।
[3] मौर्य वंश का सबसे शक्तिशाली राजा कौन था?
मौर्य वंश का सबसे शक्तिशाली राजा चन्द्रगुप्त मौर्य था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने काबुल, कंधार, बलूचिस्तान, कश्मीर, पंजाब, गुजरात गंगा यमुना का मैदान, बिहार, विन्ध्य से दक्षिण भारत में कर्नाटक के मैसूर तक अपना विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।
[4] मौर्य वंश के तीन महत्वपूर्ण शासक कौन थे?
मौर्य वंश की स्थापना 322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया था मौर्य वंश के महत्वपूर्ण शाक्तिशाली राजा में चन्द्रगुप्त मौर्य उसका पुत्र बिन्दुसार तथा बिन्दुसार का पुत्र सम्राट अशोक थे।
[5] मौर्य वंश में कौन-कौन से राजा हुए?
भागवत पुराण के अनुसार मौर्य वंश के दस राजा हुए जबकि वायु पुराण के अनुसार नौ राजा हुए।
1- चन्द्रगुप्त मौर्य
2- बिन्दुसार
3- अशोक
4- दशरथ मौर्य
5- सम्प्रति मौर्य
6- शालिसुक
7- देववर्मन मौर्य
8- शतधन्वन मौर्य
9- बृहद्रथ मौर्य
[6] मौर्य वंश ने भारत में कितने वर्ष तक शासन किया था।
मौर्य राजवंश प्राचीन भारत का एक शाक्तिशाली राजवंश था। जिसने 137 वर्ष तक भारत में शासन किया।
[7] मौर्य वंश का अंत कैसे हुआ।
मौर्य साम्राज्य का पतन का प्रमुख कारण अयोग्य एवं निर्बल उत्तराधिकारी तथा राज्यों के अधिकारी स्वतंत्र हो गए और प्रजा पर अत्याचार करने लगे, आर्थिक संकट भोग विलासिता और कर में वृद्धि, भारत पर विदेशी आक्रमण बढ़ने के कारण जिनसे मुकाबला करने के लिए बृहद्रथ मौर्य ने मना कर दिया प्रजा में विद्रोह होने लगा। पुष्यमित्र शुंग मगध का सेनापति था जिसने उक्त कारणों से मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या कर मगध में शुंग वंश की स्थापना की।
मौर्य वंश से संबंधित विभिन्न प्रतियोगिताओं परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते है UPSC, PSC, SSC, SSC CGL, Vyapam, Railway, IBPS Clerk and PO, Banking परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
मौर्य साम्राज्य का संपूर्ण इतिहास उत्थान से पथन Maurya Samrajya [PDF Download]
इसे भी पढ़े
मगध साम्राज्य का इतिहास Rise of Magadha Empire
प्राचीन भारत के 16 महाजनपद | महाजनपद का इतिहास 16 Mahajanpadas History
9 thoughts on “Maurya Samrajya [Maurya Empire in Hindi]”