16 Manajanpad

प्राचीन भारत के 16 महाजनपद | महाजनपद का इतिहास 16 Mahajanpadas History

दोस्तों आज के लेख में प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों के राजधानी, राजा और किस-किस क्षेत्र में उनका विस्तार था तथा उनके उत्थान एवं पतन के बारे में विस्तार से जानेंगे। 


वैदिक ग्रंथो के अनुसार आर्य कई छोटे कबीलों में विभक्त थे जिन्हें जन कहा जाता था, जोकि तत्कालीन समय में समाज के सबसे बड़ी इकाई थी। उत्तर वैदिक काल में 1000 से 600 ई.पू. में बड़े गणराज्य, जनपदों की स्थापना हुई। जनपद शब्दावली जन और पद दो शब्दों से बना था जिनमे जन का अर्थ लोक या कर्ता और पद का अर्थ पैर होता था। जनपद में व्यापारी, कारीगर और कलाकार आदि एकत्रित होते थे जोकि गांवों और बस्तियों से घिरा हुआ था। बाद में यही जनपद एक वृहद गणराज्य या महाजनपद के रूप में परिवर्तित हो गए।


प्रांरभिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई.पू. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना गया है। इस काल में आरंभिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है। महाजनपदकाल में भारत में बौद्ध एवं जैन दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध एवं जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से 16 राज्यों का उल्लेख मिलता है। दोनों धर्म के ग्रंथों में महाजनपदों के नाम एक समान नहीं है, किन्तु मगध, कोशल, कुरू, पंचाल, वज्जि, गांधार और अवंति जैसे महाजनपद दोनों के ग्रंथों में समान है।


करीब 3000 साल पहले राजाओं द्वारा बड़े-बड़े यज्ञों को आयोजित कर राजा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। साम्राज्य विस्तार के लिए अश्वमेध यज्ञ एक ऐसा आयोजन था इसमें एक घोड़े को राजा के लोगों की देखरेख में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया जाता था इस घोड़े को किसी दूसरे राजा ने रोका तो उसे वहाँ अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा से युद्ध करना पड़ता था अगर उन्होंने घोड़े को जाने दिया तो इसका अर्थ होता था कि अश्वमेध यज्ञ करने वाला राजा उनसे ज्यादा शक्तिशाली था अश्वमेध यज्ञ करने वाला राजा बहुत शक्तिशाली माना जाता था जिसे चक्रवर्ती महाराज कहा जाता था। 


महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों ;जनपद का अर्थ ऐसा भूखण्ड जहाँ कोई जन लोग, कुल जनजाति बस जाता है, के राजा माने जाने लगे। करीब 2500 साल पहले कुछ जनपदों अधिक महत्वपूर्ण हो गए। इन्हें महाजनपद कहा जाने लगा। महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। महाजनपदों के राजा राजधानियों के चारों ओर ईंट, पत्थरों के विशाल किले बनवाने लगे और बड़ी सेना रखते थे सिपाहियों को नियमित पारिश्रमिक देकर रखा जाने लगा। इन सब के लिए आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता होती थी। महाजनपदों के द्वारा नियमित रूप से फसलों पर, कारीगरों, पशुपालकों, व्यापरियों से कर वसूलने लगे।


महाजनपदकाल में कृषि के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। हल के फल अब लोहे के बनने लगे। जिससे कठोर जमीन को आसानी से जोता जाने लगा इससे अधिक क्षेत्रों में फसलों को तैयार करने के साथ.साथ फसलों के उपज में वृद्धि हुई। धान एवं अन्य फसलों का व्यापक रूप से रोपण किया जाने लगा।


बौद्ध ग्रंथ अंगुन्तरनिकाय से ज्ञात होता है कि महात्मा गौतम बुद्ध के उदय के कुछ पूर्व समस्त उत्तरी भारत 16 बड़े राज्यों में विभाजित था इन्हें सोलह महाजनपद ;षोडश महाजनपद, कहा गया है। महाजनपद प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाईयों का कहते थे। इस काल में भाषाएँ संस्कृत और प्राकृत भाषा थी।

India 16 Mahajanpad
प्राचीन भारत के 16 महाजनपद

महाजनपद काल की अवधि 600 ई.पू. से 340 ई.पू. में शासन राजतंत्र के साथ गणतंत्र था।

1 राजतंत्र – इनमें राज्य का अध्यक्ष राजा होता था इस प्रकार के राज्यों में अंग, मगध, काशी, कौशल, चेदि, वत्स, कुरू, पंचाल, मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवन्ति, गंधार तथा कम्भोज
2 गणतंत्र – ऐसे राज्यों का शासन राजा द्वारा न होकर गण अथवा संघ द्वारा होता था इस प्रकार के राज्यों में वज्जि तथा मल्ल था।

उत्तर वैदिक काल में कुरू, कौशल, पांचाल, मत्स्य, चेदि, मगध तथा गांधार राजवंश थे। 700 से 600 ईसा पूर्व के बीच जनपद और प्राचीन राजवंश महाजनपदों के रूप लेने लगे।


आठवीं से छठी शताब्दी ई.पू. के दौरान उत्तरी भारत में लोहे का व्यापक उपयोग होने से हथियारों के साथ खेती के औजारों के साथ कृषि का व्यवस्थित विकास होने से फसलों के उपज में वृद्धि हुई। कृषि क्षेत्र में समृद्धि से राज्यों के आय में वृद्धि होने लगी और महजनपदों की सैन्य शक्ति में भी वृद्धि हुई। भारत के प्रथम नगरीय सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद महाजनपद के काल में दूसरी बार बड़े शहरों का उदय हुआ जिसे द्वितीय शहरीकरण कहा जाता है। कालांतर में छोटे.छोटे जनों ने बड़े-बड़े महाजनपद का रूप ले लिया। महाजनपदों में सबसे बड़ा महाजनपद मगध को कहा जाता है।

1  काशी –  वर्तमान वाराणसी तथा उसका समीपवर्ती क्षेत्र ही प्राचीनकाल में काशी महाजनपद था। प्रारंभ में यह सबसे शक्तिशाली महाजनपद था। उत्तर में वरूणा तथा दक्षिण में असीनदियों से घिरी हुई वाराणसी नगरी इस महाजनपद की राजधानी थी। सोनंदक जातक से ज्ञात होता है कि मगध, कौशल तथा अंग के ऊपर काशी का अधिकार था। गुत्तिल जातक ग्रंथों से पता चलता है कि इस महाजनपद का विस्तार 12 योजन विस्तृत था और यह महान समृद्धिशाली तथा साधन संपन्न राज्य था। 23 वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के राजा थे। काशी तथा कौशल के बीच दीर्घकालीन संघर्ष का विवरण बौद्ध ग्रंथों से प्राप्त होता है। यहां का सबसे शक्तिशाली राजा ब्रह्मदत्त था जिसने कोशल के ऊपर विजय प्राप्त की थीए किन्तु अतंतोगत्वा कौशल के राज कंश ने काशी को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।

2  कौशल/कोसल –  वर्तमान अवध का क्षेत्र प्राचीनकाल में कौशल महाजनपद का निर्माण करता था। यह उत्तर में नेपाल से लेकर दक्षिण में सई नदी तथा पश्चिम में पंचाल से लेकर पूर्व में गंडक नदी तक फैला हुआ था। कौशल की राजधानी श्रावस्ती थी इसके अन्य प्रमुख नगर अयोध्या तथा सकेत थे। रामायण कालीन कौशल राज्य की राजधानी अयोध्या थी। बुद्धकाल में कौशल राज्य के दो भाग हो गये थे। उत्तरी भाग की राजधानी साकेत तथा दक्षिण भाग की राजधानी श्रावस्ती में स्थापित हुई। साकेत का ही दूसरा नाम अयोध्या था। कौशल के सबसे प्रतापी राजा प्रसेनजित हुए जो बुद्ध के समकालीन थे।

3 अंग –  उत्तरी बिहार के वर्तमान भागलपुर तथा मुंगेर के जिले अंग महाजनपद के अंतर्गत थे। इसकी राजधानी चम्पा थी। महाभारत तथा पुराणों में चम्पा का प्राचीन नाम मालिनी था। चम्पा उस समय अपने नगरी वैभव तथा व्यापार वाणिज्य हेतु प्रसिद्ध था। महागोविंद ने इस नगर की निर्माण योजना बनाई थी। अंग और मगध पड़ौसी राज्य था और जिनके बीच हमेशा संघर्ष होता रहता था। बिंबिसार ने अंग को पराजित कर मगध में मिला लिया।

4  मगध – प्रारंभ में यह दक्षिण बिहार में विस्तृत था कालांतर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद बन गया। मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी। यह नगर पाँच पहाड़ियों के बीच घिरे होने के कारण गिरीब्रज के नाम से जानी जाती थी। मगध की स्थापना बृहद्रथ ने की थी। बृहद्रथ के बाद जरासंध राजा था। शपतपथ ब्रह्मण में इसे कीकट कहा गया है। मगध प्राचीन समय के 16 महाजनपदों में सबसे अधिक शक्तिशाली महाजनपद था। कालांतर में इस पर हर्यकवंश का राजा बिम्बिसार (544-492 ई.पू.) उसके पुत्र अजातशत्रु (492-460 ई.पू.) शिशुनागवंश, नंदवंश, मौर्यवंश ने शासन किया। चंद्रगुप्तमौर्य (322-298 ई.पू.) ने धनानंद को पराजित कर मगध व संपूर्ण भारत वर्ष का प्रतापी शासक बना।

5  वज्जि/वृजि –  यह आठ राज्यों का एक संघ था जो अट्ठकुलिक कहलाते थे। जिनमें वैशाली के लिच्छवि, मिथिला के विदेह, कुण्डग्राम के ज्ञातृक प्रमुख थे। अन्य राज्यों में उग्र, भोग, ईच्क्ष्वाकु, कौरव थे। जो उत्तर बिहार में गंगा के उत्तर में स्थित था। इस संघ का सर्वाधिक शाक्तिशाली गणराज्य लिच्छवि थे। जिसकी राजधानी वैशाली थी। लिच्छवि गणराज्य को विश्व का पहल गणतंत्र माना जाता है।

6  मल्ल –  पूर्वी उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में मल्ल महाजनपद स्थित था। यहां भी वज्जि के समान गणतंत्र था। मल्लों दो शाखाएँ थी। एक की राजधानी कुशीनारा (कसया) वर्तमान में कुशीनगर तथा दूसरे की राजधानी पावा या पव थी वर्तमान में फाजिलनगर। प्रारंभ में मल्ल का राज्य एक राजतंत्र था जो कि बाद में गणतंत्र में परिवर्तित हो गया। कुस जातक ग्रंथ में ओक्काक को मल्ल का राजा बताया गया है। 

7 चेदि/चेति  – बुन्देलखण्ड के पूर्वी तथा उसके समीपवर्ती भागों में प्राचीन काल का चेदि महाजनपद स्थित था। इसकी राजधानी सोत्थिवती थी। महाभारतकाल में यहां का प्रसिद्ध शासक शिशुपाल था जिसका वध कृष्ण द्वारा किया गया । चेतिय जातक में यहाँ के एक राजा का नाम उपचर मिलता है।

8 वत्स – प्रयागराज (इलाहाबाद) तथा बाँदा के जिले प्राचीन काल में वत्स महाजनपद का निर्माण करते थे। इसकी राजधानी कौशाम्बी थी जो प्रयागराज के दक्षिण पश्चिम में 33 मील की दूरी पर यमुना नदी तट पर स्थित था। यह बौद्ध एवं जैन धर्मों का प्रमुख केन्द्र थी। बुद्धकाल में यहाँ पौरव वंश का शासन था जिसका प्रतापी राजा उदयन हुआ। 

9 कम्बोज/कम्भोज – यह गांधार कश्मीर के उत्तर में आधुनिक पामीर का पठार क्षेत्र में स्थित था जहाँ राजौड़ी व हजड़ा क्षेत्र आते थे। हाटक या राजापुर इस राज्य की राजधानी थी। चन्द्रवर्धन व सुदाक्ष्ना इसके प्रसिद्ध शासक हुए। यह गांधार का पड़ोसी  राज्य था। कौटिल्य ने कम्बोज को वार्ताशस्योपजीवी संघ अथवा कृषि, पशुपालन, व्यापार तथा शास्त्र द्वारा जीविका चलाने वाला कहा है। प्राचीन काल में कम्बोज महाजनपद अपने श्रेष्ठ घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था। 

16 महाजनपदों के नाम एवं उसकी राजधानी
16 महाजनपदों के नाम एवं उसकी राजधानी

10  अश्मक या अस्मक – पाणिनी की अष्टाधायी, बृहतसंहिता के अनुसार यह भारत के उत्तर पश्चिमी में स्थित था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार यह नर्मदा और गोदावरी नदियों के मध्य स्थित था। महाजनपदों में केवल अश्मक ही दक्षिण भारत में स्थित था। इसकी राजधानी पोटन अथवा पोटिल थी अश्मक राजतंत्र की स्थापना ईक्ष्वाकुवंशीय राजाओं ने की थी। इसका अवन्ति के साथ हमेशा संघर्ष चलता रहता था और अंत में यह राज्य अवन्ति ने इसे जीतकर अपने अधीन कर लिया।

11  मत्स्य/मच्छ –  राजस्थान के जयपुर क्षेत्र में मत्स्य महाजनपद था। इसके अंतर्गत अलवर तथा भरतपुर का का कुछ भाग शामिल था। यहाँ की राजधानी विराट नगर थी जिसकी स्थापना विराट नामक राजा ने की थी। अज्ञातवास के दौरान इसी राज्य ने पांडवों को शरण दिया था। 

12  कुरू –  मेरठ, दिल्ली के यमुना नदी के पश्चिम क्षेत्र के भू भागों में कुरू महाजनपद स्थित था। बुद्ध के काल तक कुरू एक छोटा सा राज्य था जो आगे चलकर एक गणसंघ बना। इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी। महाभारतकालीन हस्तिनापुर का नगर भी इसी राज्य में स्थित था। जातक ग्रंथों के अनुसार यह महाजनपद दो हजार मील में फैला हुआ था। बुद्ध के समय यहाँ का राजा कोरग्य था। जातक कथाओं में सुतसोमए कौरव और धनंजय यहां के राजा माने गए हैं। जैनों के उत्तराध्ययन सूत्र ग्रंथ में यहां के इक्ष्वाकु नामक राजा का उल्लेख मिलता है।

13  गांधार  –  पाकिस्तान के पेशावर तथा रावलपिण्डी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र और कश्मीर के कुछ भाग इस महाजनपद के भाग थे। इसकी राजधानी तक्षशिला थी। इस नगर की स्थापना भरत के पुत्र तक्ष ने की थी। इस जनपद का दूसरा प्रमुख नगर पुष्कलावती था। तक्षशिला समकालीन अपने शिक्षा एवं व्यापार की नगरी के रूप में प्रसिद्ध थी। यहीं भारत का पहला विश्वविद्यालय स्थापित हुआ था। इसी स्थान पर जन्मेजय ने प्रसिद्ध नाग यज्ञ करवाया था। छठी शताब्दी ई.पू. के में पुक्कुसाति/पुस्करसारिन नामक राजा का राज्य था। इसी राजा ने अवन्ति के ऊपर आक्रमण कर राजा प्रद्योत का पराजित किया था। 

14  सुरसेन/शूरसेन –  यह पश्चिम उत्तर प्रदेश में स्थित महाजनपद था जिसकी राजधानी मथुरा थी। महाभारत और पुराणों के अनुसार इस स्थान में यादव वंशो का शासन था। यादव वंश जिनमें वृष्णी एक कुल था जिसमें कृष्ण का जन्म हुआ था। प्राचीन यूनानी लेख इस राज्य को शूरसेनाई तथा इसकी राजधानी को मथोरी कहते हैं। बुद्ध काल में यहाँ का राजा अवन्तिपुत्र था जो बुद्ध का शिष्य था। उसी के प्रयास से मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार संभव हुआ। 

15  पंचाल/पांचाल  –  रूहेलखण्ड के बरेली, बदायूँ तथा फर्रूखाबाद के जिलों में गंगा युमना दोआब का क्षेत्र प्राचीन पंचाल महाजनपद था। प्रारंभ में इसके दो भाग थे उत्तरी पंचाल जिसकी राजधानी अहिच्छत्र (रामनगर) तथा दक्षिण पंचाल जिसकी राजधानी काम्पिल्य (कम्पिल) थी। कान्यकुब्ज का प्रसिद्ध नगरी इसी राज्य में स्थित था। चुलानी ब्रह्मदत्त पंचाल महाजनपद का प्रतापी शासक था। छठी शताब्दी ई.पू. कुरू तथा पंचाल का एक संघ राज्य था। 

16  अवन्ति  –  पश्चिमी तथा मध्य मालवा के क्षेत्र में अवन्ति महाजनपद बसा हुआ था। विन्ध्य पर्वत ऋंखला इसे दो भाग में विभाजित करती थी। उत्तरी अवन्ति जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी तथा दूसरी दक्षिण अवन्ति जिसकी राजधानी महिष्मति (माहेश्वर) थी। दोनों के मध्य में वेत्रवती नदी बहती थी। पाली धर्म ग्रंथ के अनुसार बुद्धकाल में अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी (उज्जैन) ही थी जहाँ का राजा प्रद्योत प्रतापी शासक था। राजनैतिक तथा आर्थिक दृष्टि से उज्जयिनी प्राचीन भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण नगर था। प्राचीन काल में यहाँ हैहय वंश का शासन था। यहाँ लोहे की खाने थी तथा लुहार इस्पात के उत्कृष्ट अस्त्र शस्त्र बनाते थे। इस कारण यह राज्य सैनिक दृष्टि से अत्यंत सबल हो गया। यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र था।


उपरोक्त 16 महाजनपदों के मध्य पारस्परिक सत्ता संघर्ष होता रहता था। अवंति के राजा प्रद्योत का कौशाम्बी के राजा तथा उदयन के साथ लड़ाई हुई थी। उदयन ने मगध की राजधानी राजगृह पर हमला कियाए कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी को अपने अधीन कर लिया, कपिलवस्तु के शाक्य राज्य को जीत लिया। बिंबिसार ने अंग को अपने राज्य में समाहित कर लिया, अजातशत्रु ने लिच्छवियों को जीत लिया। प्रसेनजित तथा अजातशत्रु के मध्यम संघर्ष चलता रहा। इस प्रकार प्रत्येक महाजनपद अपने पड़ोसी की स्वतंत्र सत्ता को समाप्त कर अपने अधीन करने में लगे रहे। 


345 ई.पू. में शिशुनाग वंश के बाद महापद्यनंद ने मगध की सत्ता संभाल कर नंद सामाज्य की नींव रखी। महापद्यनंद ने लगभग सभी महाजनपदों का जीत लिया और अपने सामाज्य का विस्तार किया। नंद साम्राज्य का उदय से ही महाजनपद काल का अंत माना जाता है। 

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