शुंग Shunga राजवंश (185-73 ई.पू.)
शुंग वंश या शुंग साम्राज्य प्राचीन भारत में मगध पर शासन करने वाला सातवाँ राजवंश था। मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ विलासी एवं निष्क्रिय प्रवृत्ति का था। भारत पर विदेशी आक्रमण बढ़ते जा रहे थे बृहद्रथ ने उनका मुकाबला करने से मना कर दिया प्रजा एवं सेना में विद्रोह होने लगा।
मगध का सेनापति पुष्यमित्र शुंग था पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ की हत्या सभी सैनिक के सामने 185 ई.पू. में कर मगध पर शुंग राजवंश की नींव रखी। शुंग शासकों ने अपनी राजधानी विदिशा में स्थापित की।
1. पुष्यमित्र शुंग Pushyamitra (185-149 ई.पू.)
- शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था।
- शुंग वंश मगध साम्राज्य का पहला ब्राम्हण वंश था।
- पुष्यमित्र शुंग राजा बनने के बाद भी सेनापति कहलाता था। पुराणों में पुष्यमित्र शुंग को सेनानी कहा गया है।
- पुष्यमित्र शुंग ने पूर्वी भारत में यमुना नदी के किनारे यूनानी आक्रमणकारी मिनेण्डर को पराजित किया।
- बौद्ध ग्रंथों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का विरोधी कहा जाता है उसने अशोक के 84000 स्तूपों को नष्ट कर दिया था। पुष्यमित्र शुंग ब्राम्हण धर्म के अनुयायी थे फिर भी उनके राज्य में भरहुत स्तूप का निर्माण और साँची स्तूप की वेदिकाएँ (रेलिंग) बनवाई गई।
- पुष्यमित्र शुंग ने दो बार अश्वमेघ यज्ञ किया जिसके पुरोहित पतंजलि थे तथा वैदिक धर्म को पुनः जीवित किया।
- पुष्यमित्र शुंग जन्म से एक ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय था।
- शुंगकाल में मनु ने मनुस्मृति की रचना किया।
- पुष्यमित्र शुंग ने राजकुमारी देवमला से विवाह किया था। उनको अग्निमित्र का पुत्र था।
- पुष्यमित्र के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग वंश का अगला शासक हुआ जो कालीदास द्वारा रचित माल्विकाग्निमित्र का नायक है।
- पुष्यमित्र शुंग का शासन मध्य गंगा की घाटी से चम्बल नदी तक था दिव्यावदान एवं तारानाथ के अनुसार जलंधर और साकर नागर भी इसमें शामिल था। पाटिलपुत्र, अध्योया, विदिशा इसके महत्वपूर्ण नगर थे।
- पुष्यमित्र शुंग ने मगध पर 36 वर्षों तक शासन किया।
2. अग्निमित्र Agnimitra (149-141 ई.पू.)
- पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु 149 के पश्चात् उसका पुत्र अग्निमित्र शुंग वंश का राजा हुआ। यह शुंग वंश का द्धितीय राजा था।
- अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। उसने 8 वर्षों तक शासन किया।
- अग्निमित्र साहित्यप्रेमी एवं कलाविलासी था।
- कालीदास के मालविकाग्निमित्र से पता चलाता है कि विदर्भ की राजकुमारी मालविका से अग्निमित्र ने विवाह किया था। यह उसकी तीसरी पत्नी थी। उसकी पहली दो पत्नियाँ धारिणी और इरावती थी।
- अग्निमित्र ने विदिशा को अपनी राजधानी बनाया था।
3. वसुज्येष्ठ (141-131 ई.पू.)
वसुज्येष्ठ शुंग राजवंश का तीसरा राजा था। यह अग्निमित्र का पुत्र था।
4. वसुमित्र (131-124 ई.पू.)
1 शुंग राजवंश का चौथा राजा वसुमित्र था। यह अग्निमित्र का पुत्र था जिसने 08 वर्षों तक शासन किया।
2.नृत्य का आनंद लेते समय मूजदेव नामक व्यक्ति ने उनकी हत्या कर दी।
5. सम्राट अन्धक शुंग (124-122 ई.पू.)
शुंग राजवंश का पांचवा राजा सम्राट अन्धक शुंग था। जिसने मात्र 3 वर्ष तक शासन किया।
6. सम्राट पुलिन्दक शुंग (122-119 ई.पू.)
शुंग राजवंश का छटवां राजा सम्राट पुलिन्दक शुंग था। जिसने 4 वर्ष तक शासन किया।
7. सम्राट घोष शुंग (119-108 ई.पू.)
शुंग राजवंश का सातवां राजा सम्राट घोष शुंग था। जिसने 12 वर्ष तक शासन किया।
8. सम्राट वज्रमित्र शुंग (108-94 ई.पू.)
शुंग राजवंश का आठवां राजा सम्राट घोष शुंग था। जिसने 15 वर्ष तक शासन किया।
9. सम्राट भागभद्र शुंग (94-83 ई.पू.)
- शुंग राजवंश का नौवा राजा सम्राट भागभद्र शुंग था। जिसका एक अभिलेख बेसनगर (विदिशा) में प्राप्त हुआ। इसी अभिलेख से पता चलता है कि शुंग वंश का की राजधानी बेसनगर थी।
- बेसनगर अभिलेख में तक्षशिला का यूनानी राजा एण्टियाकिल्ड्स ने हेलियोडोरस को अपना राजदूत बनाकर भागभद्र के दरबार में भेजा था।
- हेलियोडोरस ने भागवत धर्म को स्वीकार किया और भागवत वासुदेव के सम्मान में एक गरूड़ ध्वज की स्थापना किया।
10. सम्राट देवभूति Devabhuti (83-73 ई.पू.)
- देवभूति शुंग राजवंश का अंतिम शासक था। जो एक विलासी शासक था।
- वसुदेव कण्व ने शुंग वंश के अंतिम राजा की हत्या कर 73 ई.पू. में कण्व वंश की स्थापना की।
शुंग वंश का महत्व
शुंग राजवंश में 10 राजाओं द्वारा 185 से 73 ई.पू. तक 112 वर्षों तक शासन किया था। शुंग वंश के राजाओं ने मगध साम्राज्य के केन्द्रीय भाग की विदशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शांति और सुव्यवस्था की स्थापना किया। शुंग राजाओं का काल वैदिक तथा हिंदू धर्म का पुनर्जागरण काल माना जाता है। मनुस्मृति की रचना इसी राजवंश के समय हुआ।
कण्व Kanva राजवंश (73-28 ई.पू.)
कण्व वंश/काण्व वंश या कण्वायन वंश शुंग वंश के बाद मगध पर शासन करने वाला आठवां राजवंश था। कण्व वंश का मूल ब्राम्हण था। वे मूल रूप से शुंग वंश की सेवा करते थे पुराणों में उन्हें शुंगभृत्य अर्थात् शुंगों के सेवक कहा गया है।
शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति के मंत्री वासुदेव 73 ई.पू. में उसकी हत्या कर मगध में कण्व राजवंश की स्थापना की। कण्व के 04 राजाओं ने 73 से 28 ई.पू. तक 45 वर्षों तक मगध पर शासन किया। वासुदेव पाटलिपुत्र के कण्व वंश का प्रवर्तक था। इस राजवंश ने भी शुंग वंश की भांति वैदिक धर्म एवं संस्कृति का संरक्षण किया।
1. सम्राट वासुदेव कण्व (73-66 ई.पू.)
कण्व वंश का संस्थापक सम्राट वासुदेव कण्व था। उसने 7 वर्ष तक शासन किया। कण्व का साम्राज्य पूर्वी भारत और मध्य भारत के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था। कण्व वंश की राजधानी विदिशा थी।
2. सम्राट भूमिमित्र कण्व (66-52 ई.पू.)
कण्व वंश का दूसरा सम्राट भूमिमित्र कण्व था। यह सम्राट वासुदेव का पुत्र था। भूमिपुत्र ने 14 वर्षों तक शासन किया।
3. सम्राट नारायण कण्व (52-40 ई.पू.)
कण्व वंश का तीसरा सम्राट भूमिमित्र कण्व था। यह सम्राट भूमिपुत्र का पुत्र था। नारायण कण्व ने 12 वर्षों तक शासन किया।
4. सम्राट सुषरमन/सुशर्मन/सुशर्मा कण्व (40-28 ई.पू.)
कण्व वंश का अंतिम शासक सुशर्मन कण्व था। इसके अमात्य सिमुक ने हत्या कर मगध पर सातवाहन (आन्ध्र) साम्राज्य की स्थापना की।
सातवाहन Satavahana राजवंश
सातवाहन राजवंश का संस्थापक सिमुक था।
सातवाहन (आंध्र वंश) शासकों ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में) गोदावरी नदी के किनारे में स्थापित किया।
- सिमुक ने कण्व वंश के अंतिम शासक सुशर्मा की हत्या कर विदिशा के आसपास के क्षेत्र जीत लिया।
- सिमुक ने 23 वर्षों तक शासन किया।
- सिमुक की मृत्यु के बाद इसका छोटा भाई कृष्ण (कान्हा) राजा बना। कृष्ण ने अपना साम्राज्य नासिक तक बढ़ाया। कृष्ण ने 18 वर्षों तक शासन किया।
- कृष्ण की मृत्यु के पश्चात् शातकर्णि सातवाहन राजवंश का शासक बना।
- शातकर्णि सातवाहन राजाओं में सबसे महान शासक व विजेता था। उसने दो बार अश्वमेघ तथा एक बार राजसूय यज्ञ किया। उसने दक्षिणापथपति तथा अप्रतिहतचक्र जैसी उपाधियाँ को धारण किया।
- नानाघाट अभिलेख में उल्लेख है कि शातकर्णि ने ब्राम्हणों को भूमि अनुदान देने की प्रथा का आरंभ किया।
- शातकर्णि की मृत्यु के पश्चात् सातवाहनों की शक्ति निर्बल पड़ने लगी।
- सातवाहन के समय हाल ने प्राकृत भाषा में गाथासप्तशती तथा गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक ग्रंथ की रचना की।
- सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राम्ही थी।
- सातवाहन शासकाल में चांदी, तांबे पोटीन (निकृष्ट चांदी) सीसा का मुद्रा प्रचलन था। जिसमें सर्वाधिक सिक्के सीसा के ही बने थे।
- सातवाहन वंश के अन्य शासकों में गौतमीपुत्र शातकर्णि जिसने गुजरात, मालवा और आंध्रप्रदेश में साम्राज्य का विस्तार किया, वशिष्ठीपुत्र पुलुमावी इसने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण किया यज्ञश्री शातकर्णि जिसने शकों को पराजित किया। सातवाहनों के द्वारा ब्राम्हण के साथ बौद्ध को भूमिदान किया।
- सातवाहन शासकों ने अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण कराया।
- यज्ञश्री शातकर्णि की मृत्यु के पश्चात् सातवाहन साम्राज्य अनेक छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया।
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