सिंधु घाटी सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद भारत में नवीन सभ्यता का विकास हुआ और इस सभ्यता की जानकारी का स्त्रोत वेदों के आधार पर इस काल को वैदिक काल या वैदिक सभ्यता कहा जाता है।
वैदिक सभ्यता और संस्कृति के निर्माता आर्य थे। आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ या उच्चकुल। आर्यों की भाषा संस्कृत थी। आर्य जिस क्षेत्रों में सर्वप्रथम बसे उसे सप्त सैंधव प्रदेश (सात नदियों का क्षेत्र – सिंधु, कुम्भा, शतुद्रि, विपाशा, परूष्णी, अस्किनी एवं वितस्ता) कहा जाता है। वैदिक सभ्यता, भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का आधार स्तंभ है।
आर्यों के मूल निवास के संबंध में विभिन्न तर्क दिये जाते हैं –
- प्रो.मैक्समूलर के अनुसार आर्यों का मूल निवास – मध्य एशिया था। (ज्यादातर इतिहास भारत में आर्यों का आगमन मध्य एशिया क्षेत्र को ही मानते है)
- सर विलयम जोन्स एवं फिलिप्पो सेसेटी के अनुसार – यूरोप
- मेयर एवं रेहर्ड के अनुसार – पामीर एवं बैक्ट्रिया
- डाॅ अनिवाश चंद्र दास के अनुसार – सप्त सैंधव प्रदेश।
- बाल गंगाधर तिलक के अनुसार – उत्तरी ध्रुव
- स्वामी दयानंद सरस्वती एवं पार्जिटर के अनुसार – तिब्बत
वैदिक काल या वैदिक सभ्यता का विभाजन दो भागों में किया जाता है –
- पूर्व वैदिक या ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ई.पू.)
- उत्तर वैदिक काल (1000 से 600 ई.पू.)
वैदिक साहित्य
वैदिक साहित्य के अंतर्गत वेद, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद आते हैं।
वेद
भारत का सबसे प्राचीनतम ग्रंथ वेद है। वेद का संकलनकर्ता महिर्ष कृष्ण द्धैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है ज्ञान प्राप्त करना या जानना । वेदों की संख्या चार है।
[1] ऋग्वेद
- ऋग्वेद सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद है।
- ऋग्वेद सबसे विशाल वेद है।
- ऋग्वेद के संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास हैं।
- इसमें आर्यों के बारे में वर्णन व देवाताओं की स्तूति।
- ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है।
- ऋग्वेद में कुल 10 मण्डल, 1028 शुक्तियाँ, 10462 श्लोक मंत्र (ऋचाएँ) है।
- ऋग्वेद में आठ-आठ अध्यायों को मिलाकर एक अष्टक बनाया गया है इसमें कुल 08 अष्टक हैं।
- ऋग्वेद की रचना संस्कृत भाषा में है।
- ऋग्वेद के प्रथम, नवम एवं दशम मण्डल के रचयिता– अनेक ऋषि
- ऋग्वेद के द्वितीय प्रथम मण्डल के रचयिता- गृत्समद
- ऋग्वेद के तृतीय मण्डल के रचयिता- विश्वामित्रा ( विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मण्डल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित गायत्री मंत्र है।
- ऋग्वेद के चतुर्थ मण्डल के रचयिता- वामदेव
- ऋग्वेद के पंचम मण्डल के रचयिता- आत्रि
- ऋग्वेद के षष्ठम मण्डल के रचयिता- भारद्वाज
- ऋग्वेद के सप्तम मण्डल के रचयिता- वसिष्ठ
- ऋग्वेद के अष्ठम मण्डल के रचयिता- कण्व व अंगिरा ( इसके ऋचाओं को खिल कहा जाता है )
- ऋग्वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋत्विज (पुरोहित) को होतृ कहा जाता था और जिसका कार्य देव की स्तुति कारना था।
- मण्डल 1 व 10 मण्डल सबसे बाद में जोड़ा गया है।
- मण्डल 2 से 7 सबसे प्राचीन है।
- मण्डल 10 के वर्णित पुरूषशुक्त में चार वर्ण ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) आदि पुरूष ब्रम्हाा के क्रमंशः मुख, भुजा, जंघा और चरणों से उत्पन्न हुए। इससे ज्ञात होता है कि इस काल में जाति व्यवस्था प्रारंभ हो गई थी।
- ऋग्वेद से संबंधित उपवेद – धनुर्वेद (युद्ध कला) इसके प्रवर्तक विश्वामित्र है।
- ऋग्वेद से संबंधित ब्राह्मण ( ब्राह्मण ग्रंथ – वैदिक संहिताओं की व्याखा करने के लिए गद्य में लिखे गए हैं)-ऐतरेय ब्राम्हाण (रचना महिदास ऐतरेय इसमें राज्याभिषेक के नियम का उल्लेख है) कौषीतकि ब्राह्मण (कुषितक ऋषि द्वारा)
- ऋग्वेद से संबंधित आरण्यक (आरण्यक में यज्ञ से जुड़े कर्मकाण्डों की दार्शनिक और प्रतिकात्मक व्याख्या है)- ऐतरेय आरण्यक, कौषीतकि आरण्यक
- ऋग्वेद से संबंधित उपनिषद (उपनिषद का शाब्दिक अर्थ उसे विद्या से है जो गुरू के समीप बैठकर एकांत में सीखी जाती है। इसमें आत्मा और ब्रह्मा के संबंध में दर्शानिक चिंतन है। ये भारतीय दर्शन के मुख्य स्त्रोत है। उपनिषदों की संख्या 108 बताई जाती है, जिनमे 13 को मूलभूत उपनिषदों माना जाता है इसमें यज्ञ से जुड़े दार्शनिक विचार, आत्मा, ब्राम्हाण्ड की व्याख्या की गई है। परन्तु कुछ ही उपनिषद उपलब्ध है) – ऐतरेय उपनिषद, कौषीतकि उपनिषद
- ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 श्लोकों की रचना की गई है।
- वामनावतार के तीन पगों के व्याख्या ऋग्वेद में है।
- ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख है। जिसमें सिन्धु नदी का उल्लेख सर्वाधिक बार, सरस्वती नदी आर्यों की सबसे पवित्र नदी थी इसे नदीतिमा कहा गया है। इस वेद में यमुना नदी का तीन बार एवं गंगा नदी का एक बार उल्लेख मिलता है।
[2] यजुर्वेद
- यजुः अर्थात यज्ञ से संबंधित होने के कारण इसे यजुर्वेद कहा गया है।
- यजुर्वेद के मंत्रों से यज्ञ करने वाले ऋत्विज् (पुराहित) को अध्वर्यु कहा जाता था।
- यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि विधानों का संकलन है। इसमें बलि विधि का भी वर्णन है।
- यजुर्वेद एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है।
- यजुर्वेद कुल 40 अध्यायों में विभाजित है।
- यजुर्वेद से संबंधित उपवेद – शिल्पवेद (भवन निर्माण कला) इसके प्रवर्तक विश्वामित्र है।
- यजुर्वेद से संबंधित ब्राह्मण- शुक्ल यजुर्वेद (शतपथ ब्राह्मण-याज्ञवाल्क्य ऋषि द्वारा रचित वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है) कृष्ण यजुर्वेद (तैतिरीय ब्राह्मण -तितिर ऋषि द्वारा रचित)
- यजुर्वेद से संबंधित आरण्यक – तैतिरीयारण्यक, बृहद्धारण्यक, मैत्रायणी
- यजुर्वेद से संबंधित उपनिषद – बृहदारण्यकोपनिषद, इशोवास्योपनिषद (गीता के निष्काम कर्म का उल्लेख है), तैत्तिरीयोपनिषद (गुरू शिष्य संबंधों का उल्लेख है), मैत्रायणी उपनिषद, कठोपनिषद (यम नचिकेता संवाद का उल्लेख है), श्वेताश्वरोपनिषद
[3] सामवेद
- साम का शाब्दिक अर्थ है गायन होने के कारण इसका नाम सामवेद पढ़ा।
- सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना जाता है।
- सामवेद के गायन करने वाले ऋत्विज् (पुराहित) को उद्रातृ (उद्गाता) कहा जाता था।
- सामवेद का संकलन ऋग्वेद पर आधरित है इसमें 1810 सूक्त ऋग्वेद से लिए गए हैं।
- सामवेद से संबंधित उपवेद – गंधर्ववेद (संगीत कला) इसके प्रवर्तक नारद है।
- सामवेद से संबंधित ब्राह्मण – पंचविश ब्राह्मण (ताण्ड्य ऋषि द्वारा रचित) षड्विश ब्राह्मण (अद्भूत ऋषि द्वारा रचित) सामविधान ब्राह्मण, जैमिनीय ब्राह्मण सामवेद से संबंधित आरण्यक- छांदोग्य आरण्यक
- सामवेद से संबंधित उपनिषद- छान्दोग्योपनिषद (कृष्ण का उल्लेख है) जैमिनीय, केनोपनिषद, वाष्कल उपनिषद
[4] अथर्ववेद
- अथर्वा ऋषि द्वारा रचित होने के कारण इस वेद का नाम अथर्ववेद पड़ा। यह वेद सबसे बाद का वेद है।
- अथर्ववेद में 20 अध्याय में कुल 731 सूक्त, 6000 मंत्र है।
- अथर्ववेद के कुछ मंत्र ऋग्वैदिक मंत्रों से भी प्राचीन है।
- अथर्ववेद के ऋत्विज् (पुराहित) को ब्रम्हा कहा जाता था और जिसका कार्य निरीक्षणकर्ता (यज्ञों का) था।
- अथर्ववेद से संबंधित उपवेद – आयुर्वेद जिसके आठ भाग है 1 शल्य, 2 शालक्य 3 कायचिकित्सा 4.भूतविक्या 5 कुमार भृत्य 6 अंगद तंत्र 7 रसायन 8 वाजीकरण
- अथर्ववेद से संबंधित ब्राह्मण – गोपथ ब्राह्मण इसकी रचना गोपथ ऋषि ने की है। इसमें ओम एवं गायत्री मंत्र का महत्व बताया गया है।
- अथर्ववेद से संबंधित आरण्यक- अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है।
- अथर्ववेद से संबंधित उपनिषद- मुंडकोपनिषद (सत्यमेव जयते का उल्लेख है), मांडुक्योपनिषद, प्रश्नोपनिषद
- अथर्ववेद में मानव जीवन के सभी पक्षों कृषि, व्यापारिक खोजे, रोग निवारण, गृह निर्माण, विवाह, प्रणय गीतों, आर्शीवाद, राजभक्ति, शत्रु दमन, वशीकरण, प्रायश्चित, भूतप्रेत तथा जादूटोने का भी वर्णन है।
- अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
वेदांग
वेदों को जानने एवं समझने के लिए वेदांगों की रचना की गई है। इसे वेदों का अंग भी कहा जाता है। इनकी संख्या 06 है।
- शिक्षा (स्वर ज्ञान)– इसमें वैदिक शब्दों के शुद्ध उच्चारण की विधि बताई गई है। वेदों के शिक्षा ग्रंथ पाणिनी (कात्यायन), याज्ञवल्क्य, व्यास, नारदीय, माडूकी शिक्षा है।
- कल्प– वैदिक सहित्य में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के कर्म कांडों का विधि विधानों की व्याख्या है। इसके चार भाग है। श्रौत सूत्र– यज्ञ संबंधी नियम, गृम्हा सूत्र-लौकिक एवं पारलौकिक जीवन के विधान, धर्म सूत्र- राजा प्रजा के अधिकार कर्तव्य शुल्वसूत्र – वैदिक यज्ञों के निर्माण की विधि, यज्ञ वेदियों के प्रकार इसे भारतीय ज्यामिती का प्राचीनतम ग्रंथ कहा गया है। कल्प वेदांग में धार्मिक रीति एवं पद्धति है इसे वेद का हाथ कहा जाता है।
- व्याकरण– संस्कृत भाषा को वैज्ञानिक रूप देने के लिए पाणिनी द्वारा रचित अष्टाधायी है। इसे वेद का मुख कहा जाता है।
- निरूक्त– वैदिक शब्दों की उत्पति एवं अर्थ है। ऋषि कश्यप का निघंटु है।
- छंद– वैदिक साहित्य के मंत्रों के लिए प्रयुक्त छंदों के लक्षण एवं विशेषतायें का उल्लेख छंद नामक वेदांग में हुआ है। सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ पिंगलमुनि का छंदसूत्र है। इसे वेद का पैर कहा जाता है।
- ज्योतिष- ब्रम्हाण्ड एवं नक्षत्रों की जानकारी, ज्योतिष शास्त्र खगोलशास्त्र, शुभ अशुभ का उल्लेख है। मगधमुनि का वेदांग ज्योतिष। इसे वेद की आंखें कहा जाता है।
स्मृतियां
स्मृतियां हिन्दू धर्म की विधि (कानूनी) ग्रंथ है। ये अधिकांशतः पद्य में लिखी गई हैं। मनुस्मृति सबसे प्राचीन है। अन्य स्मृतियों में याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, पाराशर स्मृति, बृहस्पति स्मृति, कात्यायन स्मृति, विष्णु स्मृति, गौमत स्मृति, वशिष्ठ स्मृति, देवल स्मृति
आगम
यह हिन्दु धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें मंत्र, तंत्र और यंत्र पूजा के तरीकों का विधान माना जाता हैै। आगम वेद के संपूरक है। वैदिक धर्म में उपास्य देवता की भिन्नता के कारण इसके तीन प्रकार है:-
वैष्णव आगम – मुख्य देवता के रूप में भगवान विष्णु की भक्ति करते हैं।
शैव आगम – भागवन शिव को मुख्य देवता मानते हैं
शाक्त आगम – देवी मां को ब्रह्मंड की माता मानते है।
दर्शन
ऋषियों ने दर्शन में अपने विचारों को संक्षिप्त छंदों के रूप में वर्णन किया है। दर्शन विज्ञान का आधार है। प्राचीनकाल के महर्षियों ने सृष्टि की रचना, आत्मा परत्मामा, स्वर्ग नरक, जीवन मरण चक्र, मुक्ति पर गहन चिंतन किया है। षड्दर्शन (6 दर्शन) अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन है।
- सांख्य दर्शन – कपिल मुनि द्वारा प्रवर्तित इस दर्शन को भारत का प्राचीनतम दर्शन माना जाता है। इसका उल्लेख प्रत्यक्ष रूप में भगवतगीता और अप्रत्यक्ष रूप में उपनिषदों में है। सांख्य दर्शन में त्रिगुण सिद्धांत (सत, रज और तम) महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
- न्याय दर्शन – न्याय दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम माने जाते है। जिन्होंने न्यायसूत्र की रचना किये न्याय की स्थापना, दर्शन में तर्क और प्रमाण का महत्व इसे ईश्वरीय सिद्धांत का पहला ग्रंथ माना जाता है।
- वैशोषिक दर्शन – इस दर्शन के प्रवतर्क कणाद ऋषि है जिन्होंने कणाद सूत्र की रचना किया। इसमें भौतिक तत्वों पंच महाभूत (आकाश, पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि) के अंतर्गत वर्गीकृत कर इन पंचमहाभूत के परमाणु आपस में जुड़ने से सृष्टि की उत्पति और विघटन से सृष्टि का अंत की विवेचना किया गया है।
- योग दर्शन – महर्षि पतंजलि इसके प्रणेता है। जिन्होंने योगसूत्र की रचना की। जिसमें ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का योगमार्ग मूलाधार, अष्टांग योग का वर्णन किया है।
- मीमांसा – मीमांसा वैदिक साहित्य एवं ब्राह्मण ग्रंथों को भली भांति समझने की प्रणाली है। कर्मकांड यज्ञ आधरित इस दर्शन का प्रतिपादन जैमिनी द्वारा पूर्व मीमांसा का माना जाता है। इसमें मोक्ष प्राप्ति के दो मार्ग बताये गये कर्म मार्ग, और ज्ञान मार्ग।
- वेदांत- इस दर्शन के प्रवर्तक बादरायण है जिन्होंने ब्रम्हासूत्र की रचना किये जो इस दर्शन का मूल ग्रंथ है इसे उत्तर मीमांसा भी कहते है। वेदांत दर्शन का आधार उपनिषद है। बाद में इस पर भाष्य शंकराचार्य ओर रामानुज द्वारा लिखा गया।
पुराण
पुराण का शाब्दिक अर्थ है प्राचीन आख्यान या पुरानी कथा। पुराण हिन्दुओं के धर्म संबंधी आख्यान ग्रंथ है। पुराणों की रचयिता महर्षि वेदव्यास थे। पुराणों का प्रवचन लोमहर्ष व उनके पुत्र उग्रश्रवा का माना जाता है। पुराणों को स्वरूप में लोमहर्ष एवं उसके पुत्र उग्रश्रवा को माना जाता है।
पुराणों की संख्या 18 है। सबसे प्राचीन पुराण मत्स्यपुराण है। सबसे नवीन नया पुराण ब्रह्माण्ड पुराण है। 18 पुराणों में सबसे बड़ा पुराण स्कन्दपुराण है इसमें 81000 श्लोक है। सबसे छोटा पुराण मार्कण्डेय पुराण है इसमें 9000 श्लोक हैं।
वेद अपौरूषेय और अनादि है अर्थात् इसकी रचना किसी मानव ने नहीं की है। वेदों की भाषा शैली कठिन है इन्हें समझना आसान नहीं है जबकि पुराण मानव निर्मित है। पुराण का ज्ञान इन्ही वेदों का संस्करण है जिन्हें कथा, कहनियों के माध्यम से समझाया गया है।
18 पुराणों का सम्पूर्ण विवरण
[1] मत्स्य पुराण – भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार, मनु संवाद, जलप्रलय, त्रिदेवों की महिमा, नवगृह, तीनों युगों, श्रृष्टि की उत्पति का वर्णन मिलता है। मत्स्य पुराण सबसे पुराना पुराण है।
[2] ब्रम्हा पुराण – इस पुराण में 246 अध्याय, 14000 श्लोक है। इसे आदिपुराण भी कहा जाता है। इसमें श्रृष्टि की उत्पति, मनु, देवाताओं और प्राणिओं की उत्पति का वर्णन है।
[3] पद्म पुराण – इस पुराण में 55000 श्लोक है। इस पुराण में राम, तुलसी, विष्णु भक्ति का वर्णन है।
[4] विष्णु पुराण – इसमें 23000 श्लोक है। इस ग्रंथ में भगवान विष्णु को मुख्य देवता बताया गया है। इसमें समुद्र मंथन, कृष्णावतार और ध्रुव की कथाएं भी मिलती है।
[5] वायु पुराण – इसे शिव पुराण भी कहते हैं। इसमें 11000 श्लोक है। इसमें भगवान शिव भक्ति, खगोल विज्ञान, ऋषिवंश, तीर्थ, युग, श्राद्ध, पितरों के बारे में वर्णन मिलता है।
[6] भागवत पुराण – इसमें 18000 श्लोक है। इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण भक्ति, कृष्ण के देहत्याग, पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का वर्णन मिलता है।
[7] नारद पुराण – इसमें 22000 श्लोक है। इसमें विष्णु भक्ति, उत्सवों तथा व्रतों और विधियों का वर्णन मिलता है। इसे महापुराण भी कहा जाता है।
[8] मार्कण्डेय पुराण – इसमें 9000 श्लोक है। इसमें अग्नि, इंद्र, और सूर्यदेव तथा कृष्ण और देवी दुर्गा, हरिश्चंद्र की कथाओं का वर्णन है। यह सबसे छोटा पुराण है।
[9] अग्नि पुराण – इसमें 15000 श्लोक है। भगवान विष्णु के अवतार तथा रामायण और महाभारत के कथाओं, सूर्य पूजन विधि, दीक्षा विधि, वास्तुशास्त्र, सृष्टि रचना का वर्णन मिलता है।
[10] भविष्य पुराण – इसमें सूर्य, कुलियुगी भविष्य की घटनाओं, व्रत तथा दान का वर्णन मिलता है। इसमें 14500 श्लोक है।
[11] ब्रम्हावैवर्त पुराण – इसमें 18000 श्लोक है। इसमें राधाकृष्ण भक्तिरस, गणेश, लक्ष्मी, सावित्री देवता जीवों की उत्पति उनके पालन पोषण का वर्णन मिलता है।
[12] लिंग पुराण – इसमें 11000 श्लोक है। शिव जी के अवतारों की कथा, शिवपूजा, और यज्ञ का उल्लेख मिलता है।
[13] वराह पुराण – इसमें 24000 श्लोक है। भगवान विष्णु के वराह अवतार का वर्णन मिलता है।
[14] स्कन्द पुराण – इसमें 81000 श्लोक है। कार्तिकेय, नक्षत्रों, नदियों तथा ज्योतिर्लिंगों, धामों का वर्णन मिलता है। स्कन्दपुराण सबसे बड़ा पुराण है।
[15] वामन पुराण – इसमें भगवान विष्णु के वामन अवतार, व्रत, तीर्थ, दान, नारायण की पूजा विधि का वर्णन मिलता है। वामन पुराण में 10000 श्लोक है।
[16] कूर्म पुराण – इसमें भगवान विष्णु के कूर्म अवतार, वर्णाश्रम, प्रलयकाल, व्रतों का वर्णन मिलता है। कूर्म पुराण में 18000 श्लोक है।
[17] गरूड़ पुराण – इसमें 19000 श्लोक है। इसमें विष्णु भक्ति व मृत्यु के बाद घटना, प्रेतलोक, यमलोक तथा नरकलोक के बारे में प्राणी के मृत्यु से उसके उद्धार तक की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
[18] ब्रह्माण्ड पुराण – इसमें 12000 श्लोक है। परशुराम की कथा और चंद्रवंशी और सूर्यवंशी राजाओं, पौराणिक भूगोल, विश्व भूगोल, सातकाल का वर्णन मिलता है। सबसे नवीन नया पुराण ब्रह्माण्ड पुराण है।
ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ई.पू.)
आर्य सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्तान में बसे।
आर्यों द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक सभ्यता कहलाई।
यह एक ग्रामीण सभ्यता थी।
आर्यो की भाषा संस्कृत थी।
आर्य शब्द का अर्थ श्रेष्ठ या उच्चकुल से है। आर्य जिस क्षेत्र में सर्वप्रथम बसे उसे सप्त सैंधव प्रदेश कहा जाता है। जिसका अभिप्राय सात नदियों का क्षेत्र है।
राजनीतिक जीवन
ऋग्वैदिक काल में आर्य कई छोटे कबीलों में विभक्त थे। जिन्हें जन कहा गया।
ऋग्वेद में जन का 275 बार और विश का 170 बार उल्लेख है।
राजा का पद वंशानुगत होता था। राजा को जनस्य गोप्ता अर्थात् जन का रक्षक है। राज्याभिषेक की प्रथा थी अभिषेक के समय राजा प्रतिज्ञा करता था कि वह जनता की रक्षा करेगा।
राजकीय कार्यों के सहायता के लिए अनके पदाधिकारी होते थे।
1. पुरोहित – यह राजा का प्रमुख पदाधिकारी
2- सेनापति – सैनिक कार्य के लिए
3- ग्रामणी – ग्राम का मुखिया
4- स्पर्श – गुप्तचर
5- सूत – रथ चलाने वाले का प्रतिनिधि
6- रथकार – रथ बनाने वाले का प्रतिनिधि
7- कर्मार – धातुओं का कार्य करने वाले का प्रतिनिधि
8- दूत – सूचना देने वाले
9- पालागल – राजा का मित्र
10- गोविकृत – वनों का अधिकारी
11- अक्षवाप – लेखाधिकारी
आर्यों की प्रशासनिक इकाई बढ़ते क्रम में पाँच भागों में बांटा गया था -कुल, ग्राम, विश, जन और राष्ट्र
कुल का प्रमुख – कुलप
ग्राम का मुखिया – ग्रामणी
विश का मुखिया – विशपति
जन के शासक – राजन
राष्ट्र का प्रधान – सम्राट
पुरप- दुर्गपति होते थे
वाजपति – गोचर भूमि का अधिकार होता था।
उग्र – अपराधियों को पकड़ने का कार्य करता था।
सामाजिक जीवन
ऋग्वैदिक समाज चार वर्णों में विभक्त था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। विभाजन व्यवसाय पर आधारित था। ऋग्वेद के मण्डल 10 में वर्णित पुरूषशुक्त में ये चार वर्ण आदि पुरूष ब्रम्हाा के क्रमंशः मुख, भुजा, जंघा और चरणों से उत्पन्न हुए।
परिवार का स्वरूप पितृसत्तात्मक था। परिवार का मुखिया पिता या बड़ा भाई होता था। यही पारिवारिक धन, जन की रक्षा, जीवन संचालन आदि के लिए उत्तरदायी था। जिसे कुलप कहा जाता था।
स्त्रियों की स्थिति समाज में सम्मानीय थी। महिलाएं अपने पति के साथ यज्ञ कार्य में भाग लेती थी।
विवाह – बाल विवाह की प्रथा नहीं थी। दहेज प्रथा था जिसे वहतु कहा जाता है। दहेज में गाये दी जाती थी। कुछ कन्यायें आजीवन अविवाहित रहती थी जिसे अमाजू कहा जाता था।
स्त्रियां शिक्षा ग्रहण करती थी लोपमुद्रा, रोमषा, अपाला, विश्ववारा, घोषा, सिक्ता आदि इस काल के विदुषी महिलायें थी। गार्गी ने याज्ञवल्क्य को वाद विवाद की चुनौती दी थी।
सती एवं पर्दा प्रथा नहीं थी।
आर्यों का मुख्य पेय सोमरस था। जो वनस्पति से तैयार किया जाता था।
आर्यों का भोजन में क्षीर पकौदन, करंभ एवं अपूय था।
प्रमुख आभूषण – कुंब (सिर पर धारण करने वाला) कड़ा (हाथ का) कुरीर (मांग टीका) कर्णशोभन (कान का) निष्क (गले का) खंडुए (पैर का)
तीन प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग होता था। वास (ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र), अधिवास (कमरे के नीचे पहना जाने वाला वस्त्र) और उष्णीय (सिर की पगड़ी)। शरीर के अंदर पहनने वाले कपड़े को नीवि कहा जाता था।
आर्यों के मनोरंजन का मुख्य साधन – संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ एवं घूतक्रीड़ा।
ऋग्वेद में दसराज्ञ युद्ध का वर्णन मिलता है। यह युद्ध भरत जन सुदास व शेष जनों के मध्य रावी के तट पर लड़ा गया था। भरत जन की विजय एवं भारत का निर्माण हुआ।
आर्थिक जीवन
मुख्य व्यवसाय पशुपालन एवं कृषि था। कृषि योग्य भूमि को उर्वरा कहा गया है।
गाय को अध्न्या अर्थात् न मारे जाने वाले योग्य पशु में रखा गया था। गाय को सबसे मूल्यावन धन माना जाता था। गाय की हत्या करने वाले या घायल करने वाले को मृत्युदंड अथवा देश से निकाले की व्यवस्था थी। गाय वस्तु विनिमय का माध्यम थी। गोमत (धनी व्यक्ति), गोधूलि ( शाम का समय) गोचर्मन (गाय के चमड़े के बराबर)
खेतों में गोबर खाद का प्रयोग किया जाता था जिसे शक्न अथवा करीष कहा जाता था।
सिंचाई के लिए कुएं (अवट् कहा जाता था) नहर (कुल्या कहा जाता था) एवं तालाब (ह्रद कहा जाता था) का प्रयोग किया जाता था। लकड़ी के बने बड़े हलों से खेतों की जुताई की जाती थी। हल को लाँगल कहा जाता था।
प्रिय पशु घोड़ा था। आर्य हाथी से परिचित थे लेकिन बाघ का उल्लेख नहीं मिलता है।
आर्यों द्वारा खोजी गयी धातु लोहा थी। जिसे श्याम अयस् कहा जाता था तांबे को लोहित अयस् कहा जाता था। सोना को हिरण्य कहा जाता था।
राजा को जनता स्वेच्छा से कर देती थी। आवास गृह घासफूस एवं काष्ठ निर्मित होते थे।
व्यापार हेतु दूर-दूर तक जाने वाले व्यक्ति को पणि कहते थे।
ऋण देकर ब्याज लेने वाले को वेकनाॅट (सूदखोर) कहा जाता था।
आर्यों के समय के प्रमुख व्यवसायी –
तक्षुन या त्वष्ट्र – लकड़ी का कार्य करने वाला बढ़ई
वाय – जुलाहे
वप्ता – नाई
चर्मण – चमड़े का कार्य करने वाला
तसर – करघा
कर्मार – धातुओं का कार्य करने वाला
भिषज् – औषधि बनाने वाला
ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ-
ऋग्वैदिक नाम | आधुनिक नाम |
---|---|
कुमु | कुर्रम (अफगानिस्तान) |
सुवास्तु | स्वात (अफगानिस्तान) |
कुंभा | काबुल (अफगानिस्तान) |
गोमती | गोमल (अफगानिस्तान) |
वितस्ता | झेलम |
परूषणी | रावी |
विपाशा | व्यास |
सरस्वती | घग्घर |
शतुद्रि | सतलज |
अस्किनी | चिनाब |
सदानीरा | गण्डक |
सिन्धु | सिंध |
धार्मिक जीवन
आर्यों में इन्द्र अत्यंत शक्तिशाली और पराक्रमी देवता था।
ऋग्वेद में इन्द्र को पुरन्दर अर्थात किले को तोड़ने वाला गया है। ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 सूक्त हैं।
दूसरा महत्वपूर्ण देवता अग्नि थे। इनकी स्तुति में 200 सूक्त रचे गये हैं।
वरूण – सृष्टिकर्ता, पूषन-पशुओं का देवता, आश्विन-नक्षत्र के देवता।
सामाजिक संगठन का आधार गोत्र था।
ऋग्वेदकालीन देवता
नाम | देवता / देवी |
---|---|
इन्द्र | शत्रु संहारक, वर्षा |
विष्णु | पालनकर्ता, सूर्य के एक रूप |
द्यौस (आकाश) | आकाश देवाताओं के पिता |
यम | मृत्यु |
पूषन | पशुओं, वनस्पति |
वरूण | सृष्टिकर्ता जल एवं रात्रि |
अग्नि | पालक एवं रक्षक देव मनुष्य और देवताओं के मध्यस्थदेव |
प्रजापति | निर्माण |
आश्चिनौ | नक्षत्र |
सोम | उत्साह और प्रसन्नता |
उषा | प्रातःकालीन देवी |
आदिती | देवाताओं की मां |
अरण्यानी | जंगल देवी |
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