इस लेख में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल क्या है? धरोहर स्थलों (विरासत) के प्रकार? विश्व धरोहर स्थल चयन मानदंड क्या है? विश्व धरोहर स्थल का महत्व, चुनौतियां और संरक्षण? विश्व धरोहर दिवस और भारत के सभी विश्व धरोहर स्थल के महत्वपूर्ण और विशेष तथ्यों तथा मैप के साथ विवरण है।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल क्या है?
विश्व धरोहर स्थल वे विशेष स्थान हैं जिन्हें यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा मानवता की लिए असाधारण सार्वभौमिक मूल्यों के रूप में मान्यता दी गई है। ये स्थल दुनिया भर में फैले हुए हैं और मानव इतिहास, संस्कृति तथा प्रकृति की अनमोल धरोहरों को संजोए हुए हैं।
इन स्थलों का संरक्षण वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए किया जाता है, ताकि मानव सभ्यता और प्रकृति के अनमोल प्रतीक को देख और समझ सकें।
16 नवंबर 1972 को यूनेस्को ने विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए कन्वेंशन को अपनाया।
वर्ष 1978 में पहली बार दुनिया भर के 12 स्थलों को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया।
समय के साथ विरासत स्थल की सूची बढ़ती गई। वर्तमान में दुनिया भर में 1223 स्थल हैं, जो 168 देशों में फैले हुए हैं।
विश्व धरोहर स्थल केवल अतीत की यादें नहीं हैं, बल्कि मानवता के साझा इतिहास और प्रकृति के अनमोल खजाने हैं।
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के प्रकार
सांस्कृतिक धरोहर (स्थल)
सांस्कृतिक धरोहर (स्थल) – ये स्थल मानव इतिहास, कला, वास्तुकला और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं।
ऐसे स्थल मानव के रचनात्मकता (वास्तुशिल्प, प्रौद्योगिकी, नगर नियोजन, स्मारकीय कला, भूदृश्य डिजाइन), सांस्कृतिक स्थल मानव द्वारा निर्मित, परंपरा या सभ्यता और ऐतिहासिक महत्व के आसाधरण साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं जो जीवित है या लुप्त हो गई है को दर्शाते हैं।
सांस्कृतिक धरोहर में ऐतिहासिक स्मारक, भवन, मंदिर, प्राचीन कलाएं और पुरातात्विक स्थल शामिल हैं।
प्राकृतिक धरोहर (स्थल)
प्राकृतिक धरोहर (स्थल) – ये स्थल प्राकृतिक सौंदर्य, जैव विविधता और पारिस्थितिक महत्व को संरक्षित करते हैं।
प्रकृति की असाधारण और जैव विविधता को प्रदर्शित करते हैं। प्राकृतिक स्थल प्रकृति द्वारा निर्मित होते हैं जिसके अंतर्गत प्राकृतिक परिदृश्य, भूवैज्ञानिक गठन, जैव विविधता, और राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र हैं।
प्राकृतिक धरोहर स्थल किसी विलुप्त जीव या वनस्पति का प्राकृतिक आवास होते हैं।
मिश्रित धरोहर (स्थल)
मिश्रित धरोहर (स्थल) – ये स्थल सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों विशेषताओं को समेटे हुए होते हैं।
विश्व धरोहर स्थल मानव इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता की समृद्धि को दर्शाते हैं, और उनकी रक्षा भविष्य की पीढ़ियों के लिए महत्वपूर्ण है।
विश्व धरोहर स्थल चयन मानदंड क्या है?
विश्व धरोहर स्थल के लिए मानदंड व नियम हैं। विश्व धरोहर स्थल चयन के लिए स्थल को 10 मानदंडों में से कम से कम एक को पूरा करना होता है। वर्तमान में 10 मानदंड निर्धारित है जो निम्नानुसार है:-
- मानव रचनात्मक – मानव रचनात्मक प्रतिभा का एक उत्कृष्ट कृति का प्रतिनिधित्व करना
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान – यह वास्तुकला, प्रौद्योगिकी या नगर नियोजन आदि में मानव मूल्यों के महत्वपूर्ण आदान-प्रदान को प्रदर्शित करना
- सांस्कृतिक साक्ष्य – यह एक सांस्कृतिक परंपरा या सभ्यता के लिए अद्वितीय या असाधारण साक्ष्य होना चाहिए, चाहे वह जीवित हो या लुप्त
- ऐतिहासिक उदाहरण – यह मानव इतिहास के महत्वपूर्ण चरणों को दर्शाने वाले भवन या परिदृश्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण होना चाहिए।
- पारंपरिक बस्ती – यह पारंपरिक मानव बस्ती या भूमि उपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण होना चाहिए, विशेष रूप से संवेदनशील हो।
- सांस्कृतिक संबंध – यह घटनाओं, परंपराओं या विचारों से सीधे जुड़ा होना चाहिए, जो उत्कृष्ट सार्वभौमिक महत्व रखते हैं।
- प्राकृतिक सुंदरता – यह असाधारण प्राकृतिक घटनाओं या संुदरता के क्षेत्रों को समाहित करना चाहिए।
- भूवैज्ञानिक महत्व – यह पृथ्वी के इतिहास के प्रमुख चरणों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए, जिसमें भू वैज्ञानिक प्रक्रियाएं शामिल हैं।
- पारिस्थितिक प्रक्रियाएं – यह पारिस्थितिक और जैविक प्रक्रियाओं के महत्वपूर्ण चल रहे उदाहरणों का प्रतिनिधित्व करना चाहिए, जैसे पारिस्थितिक तंत्रों का विकास।
- जैव विविधता संरक्षण – यह जैव विविधता संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक आवासों को समाहित करना चाहिए, जिसमें खतरे में पड़े प्रजातियां शामिल हैं।
विश्व धरोहर स्थल का चयन कैसे होता है?
यूनेस्को की एक विशेष समिति, जिसे विश्व धरोहर समिति कहा जाता है, हर साल बैठक करती है और नए स्थलों को विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल करने का फैसला लेती है। इसके लिए स्थल को 10 मानदंडों में से कम से कम एक मानदंड को पूरा करना होता है।
विश्व धरोहर स्थल का महत्व क्या है?
विश्व धरोहर स्थल मानवता का सांझा विरासत का प्रतीक हैं, जो हमें हमारे अतीत से जोड़ते हैं और भविष्य के लिए प्ररेणा देते हैं।
विश्व धरोहर स्थल मानव इतिहास का जीवंत प्रमाण हैं। ये हमें प्राचीन सभ्यताओं की कला, ज्ञान, तकनीकी और जीवनशैली से रूबरू करते हैं।
विश्व धरोहर स्थल जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।
विश्व धरोहर स्थल पर्यटन के आकर्षण के केन्द्र होते है तथा ये हमें हमारी इतिहास, संस्कृति और प्रकृति के बारे में बताते हैं।
इनका संरक्षण इसलिए जरूरी है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इनके बारे में जान सकें और इनसे प्ररेणा ले सकें और इनकी महत्ता को समझ सकें।
इसके साथ ही किसी क्षेत्र या स्थल को विश्व धरोहर स्थल घोषित होने से पर्यटन के माध्यम से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलाता है।
विश्व धरोहर स्थल किसी एक देश की संपत्ति नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
विश्व धरोहर स्थल चुनौतियां और संरक्षण
विश्व धरोहर स्थल मानव के अनमोल रत्न हैं जिन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है। इन स्थलों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
विश्व धरोहर स्थलों को प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
विश्व धरोहर स्थल की प्रमुख चुनौतियां –
जलवायु परिवर्तन – तापमान में वृद्धि, समुद्र स्तर का बढ़ना और बाढ़ और मौसम की अनियमिताएं विश्व धरोहर स्थल को नुकसान पहुंचा रही है।
युद्ध और संघर्ष – सशस्त्र संघर्षों के कारण इन स्थलों का विनाश हो जाता है।
शहरीकरण और अनियंत्रित पर्यटन – बढ़ती आबादी और अनियंत्रित पर्यटन की भीड़ से इन स्थलों पर दबाव बढ़ रहा है, जिससे संरचनाएं क्षतिग्रस्त हो रही है और प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन हो रहा है।
प्राकृतिक आपदाएं – भूंकप, तूफान और बाढ़ जैसे आपदाएं स्थलों को अपूरणीय क्षति पहूंचती है।
अवैध गतिविधियां – प्राकृतिक स्थलों में अवैध खनन, वनों की कटाई और सांस्कृतिक स्थलों से वस्तुओं की चोरी से धरोहर स्थलों की अखंडता खतरे में है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए यूनेस्को और संबंधित देश मिलकर संरक्षण का प्रयास कर रहे हैं।
विश्व धरोहर स्थल के संरक्षण के उपाय
इन चुनौतियों से निपटने के लिए दुनिया भर में कई प्रयास किए जा रहे हैं। जिनमें –
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग – यूनेस्को जैसे संगठन वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान कर संकटग्रस्त स्थलों की रक्षा कर रहे हैं।
कानूनी संरक्षण – स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाकर धरोहरों स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है।
शिक्षा और जागरूकता – स्थानीय समुदायों और पर्यटकों को धरोहरों के महत्व के प्रति जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे संरक्षण में योगदान दें।
प्रौद्योगिकी का उपयोग और अनुसंधान तथा निगरानी – डिजिटल माध्यम, उपग्रह निगरानी और 3डी पुनर्निर्माण जैसी तकनीकों से स्थलों को सुरक्षित और पुनर्स्थापित किया जा रहा है। नियमित निगरानी और वैज्ञानिक अनुसंधान से संरक्षण रणनीतियों को बेहतर बनाया जा रहा है।
स्थानीय समुदायों का सहयोग – स्थनीय लोगों को धरोहर स्थल को संरक्षण में शामिल कर और उन्हें आर्थिक लाभ पहुंचाकर सहभागिता बढ़ाई जा रही है।
विश्व धरोहर स्थल हमारी साझा विरासत का हिस्सा हैं और इन्हें बचाना अतीत को समझने और भविष्य के लिए प्ररेणा लेने का अवसर प्रदान करता है। सामूहिक प्रयासों से ही हम इन अनमोल धरोहरों को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।
विश्व धरोहर दिवस
हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। विश्व धरोहर दिवस हमें अपनी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर स्थलों की रक्षा के लिए प्रेरित करता है। इसका उद्देश्य लोगों को इन अनमोल स्थलों के संरक्षण की आवश्यकता के बारे में जागरूक करना है।
विश्व धरोहर दिवस का विचार 1982 में अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद् (ICOMOS) द्वारा रखा गया था, और इसे 1983 में यूनेस्को द्वारा औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया।
विश्व धरोहर दिवस 2025 का थीम (विषय)
विश्व धरोहर दिवस 2025 का थीम – “आपदाओं और संघर्षों से खतरे में पड़ी विरासत: आईसीओएमओएस की 60 वर्षों की कार्रवाईयों से तैयारी और सीख” (Heritage under Threat from Disasters and Conflicts: Preparedness and Learning from 60 years of ICOMOS Actions” जो धरोहर की रक्षा के लिए तैयारी पर जोर देता है।
दुनिया के विश्व धरोहर स्थल
अप्रैल 2025 तक, दुनिया के 196 देशों में, 1223 विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें 952 सांस्कृतिक, 231 प्राकृतिक और 40 मिश्रित धरोहर स्थल हैं।
दुनिया के सबसे अधिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों वाले टॉप 10 देशों की सूची
दुनिया के 1223 हेरिटेज साइट्सों में इटली में सबसे अधिक 60, दूसरे स्थान पर चीन 59, भारत 43 विश्व धरोहर स्थलों के साथ सूची में छठे नंबर पर है।
क्रमांक | देश | विश्व धरोहर स्थलों की संख्या |
---|---|---|
1 | इटली | 60 |
2 | चीन | 59 |
3 | जर्मनी | 54 |
4 | फ्रांस | 53 |
5 | स्पेन | 50 |
6 | भारत | 43 |
7 | मेक्सिको | 35 |
8 | यूनाइटेड किंगटम | 35 |
9 | रूस | 32 |
10 | ईरान | 28 |
भारत के सभी विश्व धरोहर स्थल महत्वपूर्ण तथ्यों सहित
वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा भारत के 04 स्थलों (आगरा किला, अजंता गुफाएँ, एलोरा की गुफाएँ और ताजमहल) को पहली बार विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया था।
भारत का सबसे नवीनतम विश्व धरोहर स्थल वर्ष 2024 में मोइदम (अहोम राजवंश की टीला दफन प्रणाली) है।
भारत में दुनिया भर में छठे सबसे ज्यादा विश्व धरोहर स्थल हैं।
भारत में वर्तमान में 43 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें 35 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित (सांस्कृतिक और प्राकृतिक) शामिल हैं। जो भारत की समृद्ध विरासत और जैव विविधता को दर्शाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) 1972 के विश्व विरासत सम्मेलन के तहत स्थापित सांस्कृतिक या प्राकृतिक विरासत के लिए उनके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के लिए विश्व धरोहर स्थलों को नामित करता है।
भारत ने 14 नवंबर, 1977 को सम्मेलन को स्वीकार किया, वर्तमान में 43 ऐसे स्थल हैं, जो इसे सबसे अधिक स्थलों वाला विश्व का छठा देश बनाता है।
भारतीय रूपये (बैंकनोट) पर अंकित भारत के विश्व धरोहर स्थलों की सूची
भारत के विश्व धरोहर स्थलों में से 6 विश्व धरोहर स्थल भारत के नए बैंकनोट (रूपये) पर पीछे की तरफ मुद्रित (छपा) हैं, जिसका विवरण निम्नानुसार है –
10 रूपये – सूर्य मंदिर, कोणार्क, ओडिशा
20 रूपये – एलोरा गुफाएं, महाराष्ट्र
50 रूपये – हम्पी (रथ), कर्नाटक
100 रूपये – रानी की वाव, गुजरात
200 रूपये – साँची का स्तूप, मध्य प्रदेश
500 रूपये – लाल किला, दिल्ली
भारत के 35 विश्व सांस्कृतिक धरोहर स्थल सूची और तथ्य
सांस्कृतिक स्थल भारत की ऐतिहासिक, स्थापत्य वास्तुकला, इतिहास और कलात्मक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं। नीचे सभी 35 सांस्कृतिक स्थलों की जानकारी, रोचक एवं महत्वपूर्ण तथ्यों और उनके शिलालेख का वर्ष (विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल) का विवरण है –
1- अजंता की गुफाएं (Ajanta Caves)
स्थान – अजंता, औरंगाबाद जिला, महाराष्ट्र
अजंता की गुफाएं गुप्त काल में 5वीं 6वीं शताब्दी में बनी गुफाएं हैं।
अजंता गुफाएं गुफा की खोज 1819 में जॉन स्मिथ की दल ने बाघों की शिकार करते समय किया था।
अजंता गुफाओं में 30 गुफाएं हैं जिन्हें चट्टान को काटकर बनाई गई हैं, जिनमें चैत्य (प्रार्थना कक्ष) और विहार (मठ) शामिल हैं।
इनकी दीवारों पर बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं को दर्शाने वाली चित्रकारी हैं।
अजंता की गुफाएं वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा द्वारा घोषित भारत के पहले विश्व धरोहर स्थल में से एक है।
यूनेस्को द्वारा अजंता की गुफाएं को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (ii) (iii) (vi)
2- एलोरा गुफाएं (Ellora Caves)
स्थान – एलोरा, औरंगाबाद जिला, महाराष्ट्र
कैलाश मंदिर दुनिया की सबसे बड़ी अखंड संरचना मोनोलिथिक है।
एलोरा गुफाओं में कैलाश मंदिर को एक ही चट्टान से ऊपर से नीचे की ओर काटकर बनाया गया, जो उस समय की इंजीनियरिंग का चमत्कार है। यह दुनिया का सबसे बड़ा एकल चट्टानी मंदिर है।
एलोरा में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाली 34 गुफाओं के लिए प्रसिद्ध हैं, जो 6वीं से 10 शताब्दी के बीच बनाई गई थी।
एलोरा की गुफाएं वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा द्वारा घोषित भारत के पहले विश्व धरोहर स्थल में से एक है।
भारत में 26 अप्रैल 2019 को जारी 20 रूपये के नए बैंकनोट (भारतीय रूपये) में पीछे की तरफ एलोरा की गुफाएं (विश्व धरोहर स्थल) मुद्रित है।
यूनेस्को द्वारा एलोरा गुफाएं को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (iii) (vi)
3- आगरा किला (Agra Fort )
स्थान – आगरा, आगरा जिला, उत्तर प्रदेश
अकबर ने इसे सैन्य आधार के रूप में बनवाया था, जो बाद में एक शाही निवास बन गया।
औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को 08 वर्षों तक आगरा किले के मुसम्मन बुर्ज (अष्टकोणीय मीनार) में कैद रखा था।
यह लाल बलुआ पत्थर से निर्मित हैं और इसमें जहांगीरी महल, खास महल, शीश महल जैसी शानदार संरचनाएं है।
आगरा किले के दीवान-ए-खास के मयूर सिंहासन जिस पर कोहिनूर हीरा जड़ा हुआ था।
आगरा किला वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा द्वारा घोषित भारत के पहले विश्व धरोहर स्थल में से एक है।
यूनेस्को द्वारा आगरा किला को नामित किए जाने का मानदंड – (iii)
4- ताज महल (Taj Mahal)
स्थान – आगरा, आगरा जिला, उत्तर प्रदेश
ताजम हल के निर्माण में 20 साल से अधिक समय लगा और जिसके निर्माण 20,000 से अधिक कारीगरों ने काम किया।
शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में 1632 में ताजमहल का निर्माण शुरू करवाया था।
ताज महल के निर्माण पर 32 मिलियन रूपये खर्च हुआ था।
ताज महल के मुख्य वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी थे।
ताज महल का रंग बदलता रहता है सुबह के समय यह गुलाबी, दिन में सफेद और चांदनी रात में सुनहरा दिखाई देता है।
मुमताज महल की कब्र के एक तरफ अल्लाह के 99 नाम लिखा हुआ है।
ताज महल दुनिया के सात अजूबों में से एक है।
ताज महल वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा द्वारा घोषित भारत के पहले विश्व धरोहर स्थल में से एक है।
यूनेस्को द्वारा ताजमहल को नामित किए जाने का मानदंड – (i)
5- सूर्य मंदिर, कोणार्क (Sun Temple, Konarak)
स्थान – कोणार्क, पुरी जिला, ओड़िशा
ओडिशा में 13वीं शताब्दी में निर्मित सूर्य मंदिर कोणार्क, सूर्य देव को समर्पित है। इसे राजा नरसिंह देव प्रथम ने बनवाया था।
मंदिर को एक विशाल रथ के रूप में डिजाइन किया गया है, जिसमें कुल 24 पहिए (24 पहिए 24 घंटे के प्रतीक हैं) और 7 घोड़ों वाली रथ की आकृति में बनाया गया है।
कोर्णाक के सूर्य मंदिर का मुख्य वास्तुकार बिशु महाराणा थे।
कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण 1200 कारीगरों द्वारा 12 वर्षों में किया था।
ऐसा डिज़ाइन कि सूर्य की पहली किरण मुख्य प्रवेश द्वार पर पड़ती है।
सूर्य मंदिर कोणार्क को ब्लैक पगोडा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका रंग काला और समुद्र में आने वाले नाविकों के लिए एक निशान था। इसका शिखर समय के साथ नष्ट हो गया है, लेकिन इसकी मूर्तिकला आज भी आकर्षक है।
सूर्य मंदिर कोणार्क की तरह भारत में गुजरात में मोढेरा सूर्य मंदिर और कश्मीर में मार्तंड सूर्य मंदिर हैं।
सूर्य मंदिर कोणार्क को 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 05 जनवरी 2018 को जारी भारत के नए 10 रूपये के बैंकनोट (भारतीय रूपये) पर पीछे की तरफ कोणार्क सूर्य मंदिर (विश्व धरोहर स्थल) मुद्रित है।
यूनेस्को द्वारा सूर्य मंदिर, कोणार्क को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (iii) (vi)
6- महाबलीपुरम में स्मारकों का समूह (Group of Monuments at Mahabalipuram)
स्थान – महाबलीपुरम, चेंगलपट्टु जिला, तमिलनाडु
महाबलीपुरम में एकल चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर, गुफाएँ और अखंड मंदिर संरचनाएँ हैं।
तमिलनाडु में 7वीं और 8 वीं शताब्दी में पल्लव वंश द्वारा निर्मित यह समूह मंदिरों, रथ मंदिरों और शैल चित्रों का संग्रह है।
महाबलीपुरम के रथ मंदिर पांच एकाश्म (एक ही चट्टान से तराशे गए) संरचनाएं हैं। जिन्हें पांच रथ (Pancha Rathas) के नाम से जाना जाता है। ये रथ एक ही चट्टान (Monolith) को काटकर बनाए गए हैं।
महाबलीपुरम के गंगा अवतरण को दुनिया के सबसे बड़े बेस-रिलीफ कार्यों में से एक माना जाता है।
पल्लवों के शासन के समय महाबलीपुरम प्रमुख बंदरगाहों में से एक था चीन के साथ व्यापार के प्रमाण के रूप में इसके आसपास के क्षेत्रों में सिक्के, मिट्टी के बर्तनों सहित कई वस्तुओं का मिलना महाबलीपुरम के चीनियों के साथ व्यापारिक संबंधों को दर्शाता है।
यह समुद्री तट के किनारे होने के कारण भी अनूठा है।
महाबलीपुरम में स्मारकों का समूह को यूनेस्को ने 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
यूनेस्को द्वारा महाबलीपुरम में स्मारकों का समूह को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (ii) (iii) (vi)
7- गोवा के चर्च एवं कॉन्वेंट (Churches and Convents of Goa)
स्थान – वेल्हा (पुराना गोवा), गोवा
16वीं और 17वीं शताब्दी में पुर्तगाली शासन के दौरान बनाए गए ये चर्च गोवा की सांस्कृतिक धरोहर हैं।
बॉम जीसस बेसिलिका (सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों के लिए प्रसिद्ध) और से कैथेड्रल (एशिया का सबसे बड़ा चर्च) यहाँ की मुख्य संरचनाएँ हैं।
इनकी सजावट में भित्तिचित्र और लकड़ी का काम देखने योग्य है।
इन चर्चों में बरोक और गोथिक शैली का मिश्रण देखने को मिलता है।
पुर्तगाली प्रभाव के कारण ये यूरोपीय और भारतीय वास्तुकला का अनूठा संगम है।
गोवा के चर्च और कॉन्वेंट दुनिया के बड़े कैथेड्रल में शामिल है।
गोवा के चर्च एवं कॉन्वेंट को यूनेस्को ने 1986 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
यूनेस्को द्वारा गोवा के चर्च और कॉन्वेंट को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iv) (vi)
8- खजुराहो स्मारक समूह (Khajuraho Group of Monuments)
स्थान – खजुराहो, छतरपुर जिला, मध्य प्रदेश
खजुराहो स्मारक समूह 10वीं और 11वी शताब्दी में चंदेल वंश द्वारा निर्मित ये मंदिर हिंदू और जैन धर्म को समपर्ति हैं।
खजुराहो के मंदिर कामुक मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं।
खजुराहो स्मारक समूह में 85 मूल मंदिरों में से केवल 20 ही बचे हैं।
यूनेस्को ने इसे वर्ष 1986 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
यूनेस्को द्वारा खजुराहो स्मारक समूह को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (iii)
9- हम्पी में स्मारक समूह (Group of Monuments at Hampi)
स्थान – हम्पी, विजयनगर जिला, कर्नाटक
हम्पी विजय नगर साम्राज्य की राजधानी थी।
1500 ईस्वी तक चीन की बीजिंग के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर था जिसमें 5 लाख से अधिक की आबादी निवास करती थी।
हम्पी में विठ्ठल मंदिर में 56 नक्काशीदार पत्थर के बीम, संगीतत्मक खंभे हैं जो टैप करने पर विभिन्न संगीत ध्वनि पैदा करते हैं।
हम्पी रामायण और पुराणों में पंपा देवी तीर्थ क्षेत्र के रूप में उल्लेखित है। यह 4100 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें 1600 से अधिक संरचनाएं है।
हम्पी में स्मारक समूह को वर्ष 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
भारत में 18 अगस्त 2017 को जारी 50 रूपये के नए बैंकनोट (भारतीय रूपये) में पीछे की तरफ हम्पी (विश्व धरोहर स्थल) मुद्रित है।
यूनेस्को द्वारा हम्पी में स्मारकों का समूह को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (iii) (iv)
10- फतेहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri)
स्थान – फतेहपुर सीकरी, आगरा जिला, उत्तर प्रदेश
फतेहपुर सीकरी को अकबर ने 1571 में अपनी राजधानी बनाया था, लेकिन पानी की कमी के कारण 15 साल बाद इसे त्याग दिया गया।
यह मुगल वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है।
यहाँ की वास्तुकला हिंदू और मुस्लिम शैलियों का अनोखा मिश्रण है।
इसे वर्ष 1986 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त हुआ।
यूनेस्को द्वारा फतेहपुर सीकरी को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iii) (iv)
11- पट्टाडकल स्थित स्मारक समूह (Group of Monuments at Pattadakal)
स्थान – पट्टाडकल, बागलकोट जिला, कर्नाटक
पट्टाडकल को चालुक्य वास्तुकला का पालना कहा जाता है।
कर्नाटक में 7वीं और 8वीं शताब्दी में चालुक्य वंश द्वारा निर्मित ये मंदिर हिंदू और जैन धर्म से संबंधित हैं।
यहाँ वीरूपाक्ष मंदिर और संगमेश्वर मंदिर जैसे स्थल हैं। यह उत्तर और दक्षिण भारतीय वास्तुकला का मिश्रण दर्शाता है।
पट्टाडकल स्थित स्मारक समूह को 1987 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।
यूनेस्को द्वारा पट्टाडकल में स्मारकों का समूह को नामित किए जाने का मानदंड – (iii) (iv)
12- एलीफेंटा गुफाएँ (Elephanta Caves)
स्थान – एलिफेंटा द्वीप, जिला कोलाबा, महाराष्ट्र
एलीफेंटा गुफाओं का नाम पुर्तगालियों ने रखा था, जिन्होंने वहाँ एक पत्थर की विशाल हाथी की मूर्ति देखी थी।
5वीं से 8वीं शताब्दी के बीच बनी ये गुफाएं हिंदू और बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। यहाँ त्रिमूर्ति (शिवजी की विशाल मूर्ति) मुख्य आकर्षण है।
एलीफेंटा गुफाओं को यूनेस्को ने 1987 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
यूनेस्को द्वारा एलीफेंटा गुफाएं को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (iii)
13- महान चोल मंदिर (Great Living Chola Temples)
स्थान – तंजावुर जिले, अरियालुर जिले तमिलनाडु
महान जीवित चोल मंदिर द्रविड़ वास्तुकला, जटिल नक्काशी, जिसमें तीन प्रमुख मंदिर शामिल हैं।
बृहदीश्वर मंदिर तंजावुर में स्थित और यह दुनिया के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। यह मंदिर 66 मीटर ऊँचा विमान (गोपुरम) और विशाल नंदी मूर्ति इसे विशेष बनाते हैं। इसे एक ही पत्थर से तराशा गया है।
तमिलनाडु में 11वीं और 12वीं शताब्दी में चोल वंश द्वारा निर्मित ये मंदिर द्रविड़ वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण है।
महान चोल मंदिर को यूनेस्को ने 1987 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया तथा वर्ष 2004 में इसकी सीमाओं में विस्तार किया गया है।
यूनेस्को द्वारा महान जीवित चोल मंदिर को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iii)
14- सांची में बौद्ध स्मारक (Buddhist Monuments at Sanchi)
स्थान – सांची, रायसेन, मध्य प्रदेश
सांची में बौद्ध स्मारक बौद्ध धर्म की सबसे प्राचीन पत्थर की संरचनाओं में से एक है।
सांची स्तूप का निर्माण मौर्य सम्राटअशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था।
सांची में बौद्ध स्मारक को वर्ष 1989 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।
भारत में 25 अगस्त 2017 को जारी 200 रूपये के नए बैंकनोट (भारतीय रूपये) में पीछे की तरफ साँची का स्तूप (विश्व धरोहर स्थल) मुद्रित है।
यूनेस्को द्वारा साँची में बौद्ध स्मारक को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (ii) (iii) (iv) (vi)
15- हुमायूं का मकबरा (Humayun’s Tomb)
स्थान – दिल्ली
हुमायूँ का मकबरा मुगल सम्राट हुमायूँ की पहली पत्नी, बेगा बेगम द्वारा 1569-70 में बनवाया गया था।
यह भारतीय उपमहाद्वीप का पहला उद्यान-मकबरा है, जिसने ताजमहल जैसे बाद के मुगल स्थापत्य को प्रभावित किया।
मकबरे का निर्माण लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से हुआ है और इसका डिज़ाइन फारसी और भारतीय वास्तुकला का मिश्रण है।
इसके चारों ओर चारबाग शैली का बगीचा है, जो चार जल चैनलों से विभाजित है और फारसी स्वर्ग की अवधारणा को दर्शाता है।
हुमायूं का मकबरा मुगलों का शयनागार है, जहां 150 कब्रें हैं।
इसे 1993 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला।
यूनेस्को द्वारा हुमायूँ का मकबरा को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iv)
भारत के विश्व धरोहर स्थलों की नवीनतम सूची
16- कुतुब मीनार और उसके स्मारक (Qutb Minar and its Monuments)
स्थान – दिल्ली
कुतुबमीनार 73 मीटर ऊँची मीनार है, जिसे 13वीं शताब्दी में कुतुब-उद-दीन ऐबक ने शुरू किया और उनके उत्तराधिकारियों ने पूरा किया।
दुनिया की सबसे ऊंची ईंट की मीनार, जिसका निर्माण 1192 में शुरू हुआ था।
कुतुब मीनार पांच मंजिलें, अलग-अलग स्थापत्य शैली वाला, भारत की सबसे ऊंची मीनार।
यह लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बनी है और इस पर कुरान की आयतों के साथ जटिल नक्काशी देखी जा सकती है। परिसर में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, अलाई दरवाजा स्थित है।
कुतुब मीनार परिसर में स्थित लौह स्तंभ चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य द्वारा उदयगिरी में विष्णु मंदिर के सामने 402 ई. के आसपास बनवाया गया था।
10वीं शताब्दी में अनंगपाल द्वारा इसे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित किया गया।
यह स्तंभ 7.21 मीटर ऊँचा और 600 किलोग्राम से अधिक वजनी है। यह लौह स्तंभ एक हज़ार से अधिक वर्षों से अधिक समय के बाद आज भी जंग से मुक्त है।
कुतुबमीनार और उसके स्मारक को 1993 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है।
यूनेस्को द्वारा कुतुब मीनार और उसके स्मारक को नामित किए जाने का मानदंड – (iv)
17- इंडियन माउंटेन रेलवे (भारत के पर्वतीय रेलमार्ग) (Mountain railways of India)
स्थान – पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश
भारत के पर्वतीय रेलमार्ग कई राज्य इसमें दार्जिलिंग, नीलगिरि, शिमला-कालका शामिल हैं।
ये रेलवे ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में पहाड़ी स्टेशनों को जोड़ने के लिए बनाई गई।
दार्जिलिंग रेलवे ऊँचाई हासिल करने के लिए ज़िग-ज़ैग और लूप का उपयोग करती है।
ये रेलवे न केवल परिवहन का साधन हैं, बल्कि पर्यटकों को शानदार प्राकृतिक दृश्य भी प्रदान करती हैं।
ये अपने इंजीनियरिंग कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं, जो खड़ी ढलानों, तीखे मोड़ों और दुर्गम इलाकों से गुजरती हैं।
इन रेलवेज़ को 1999, 2005 और 2008 में क्रमशः दार्जिलिंग, नीलगिरी और शिमला-कालका के लिए यूनेस्को ने मान्यता दी।
यूनेस्को द्वारा इंडियन माउंटेन रेलवे को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iv)
18- महाबोधि मंदिर परिसर, बोधगया (Mahabodhi Temple Complex at Bodh Gaya)
स्थान – गया जिला, बिहार
यह बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र स्थल है, जहाँ सिद्धार्थ गौतम ने ज्ञान प्राप्त कर बुद्ध बने।
मूल मंदिर सम्राट अशोक ने 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया था, और वर्तमान संरचना 5वीं-6वीं शताब्दी की है।
मंदिर में 55 मीटर ऊँचा टावर है और यहाँ बोधि वृक्ष और वज्रासन (ज्ञान प्राप्ति का पत्थर) भी मौजूद हैं।
परिसर में छोटे स्तूप और मंदिर इसे और आकर्षक बनाते हैं।
महाबोधि मंदिर परिसर, बोधगया को 2002 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला।
यूनेस्को द्वारा बोध गया में महाबोधि मंदिर परिसर को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (ii) (iii) (iv) (vi)
19- भीमबेटका के शैलाश्रय (Rock Shelters of Bhimbetka)
स्थान – रायसेन जिला, मध्य प्रदेश
भीमबेटका प्रागैतिहासिक गुफाएँ लगभग 30,000 साल पुरानी हैं और इनमें पाषाण युग की चित्रकारी देखी जा सकती है।
इन चित्रों में शिकार, नृत्य और जानवरों के दृश्य हैं, जो प्रारंभिक मानव जीवन की झलक देते हैं। चट्टानों की प्राकृतिक सुरक्षा के कारण ये चित्र आज भी संरक्षित हैं।
यह स्थल 1957 में खोजा गया और पुरातात्विक महत्व के लिए मान्यता प्राप्त की गई।
भीमबेटका के शैलाश्रय को 2003 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
यूनेस्को द्वारा भीमबेटका के शैलाश्रय को नामित किए जाने का मानदंड – (iii) (v)
20- छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) (Chhatrapati Shivaji Terminus (formerly Victoria Terminus)
स्थान – मुंबई, महाराष्ट्र
इसका निर्माण महारानी विक्टोरिया की महारानी के शासन के 50 वर्ष पूरे होने पर किया गया था यह 1887 में पूरा हुआ था।
इसके वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस थे।
इसे पहले विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से जाना जाता था।
यह विक्टोरियन गोथिक रिवाइवल शैली का बेहतरीन उदाहरण है।
इसके निर्माण में कुल लागत 16,14,000/-आया था। मार्च 1996 में विक्टोरिया टर्मिनस (VT) का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) कर दिया गया।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस आज भी सेंट्रल रेलवे का मुख्यालय और एक व्यस्त परिवहन केंद्र है।
यह बुर्जों और गुंबदों वाला महल है, जिसमें भारतीय और यूरोपीय शैलियों का मिश्रण है।
यह भारत के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में से एक है। प्रतिदिन 30 लाख से अधिक यात्री यहाँ आते हैं।
जो कुल 18 प्लेटफार्मों के साथ लंबी दूरी और मुंबई उपनगरीय रेलवे को भी सेवा प्रदान करता है।
यूनेस्को द्वारा इसे 2004 में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।
यूनेस्को द्वारा छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iv)
21- चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व पार्क (Champaner-Pavagadh Archaeological Park)
स्थान – पंचमहल जिला गुजरात
यह पार्क प्राचीन शहर चंपानेर और पावागढ़ के किले के अवशेषों को समेटे हुए है।
यहाँ हिंदू और इस्लामी वास्तुकला का मिश्रण देखने को मिलता है, जिसमें मस्जिदें, मंदिर और बावड़ियाँ शामिल हैं।
जामी मस्जिद, जो 15वीं शताब्दी में बनी, अपनी जटिल नक्काशी और विशाल प्रांगण के लिए प्रसिद्ध है।
पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित कालिका माता मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
चम्पानेर-पावागढ़ आर्कियोलॉजिकल पार्क को यूनेस्को द्वारा 2004 में विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया।
यूनेस्को द्वारा चंपानेर पावागढ़ पुरातत्व पार्क को नामित किए जाने का मानदंड – (iii) (iv) (v) (vi)
22- लाल किला परिसर (Red Fort Complex)
स्थान – दिल्ली
लाल किला को मुगल सम्राट शाहजहाँ ने 1638 में बनवाया था। यह किला मुगल सम्राटों का मुख्य निवास था।
लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास और रंग महल जैसे भव्य भवन हैं।
1947 में भारत की आजादी की घोषणा इसी किले से हुई थी, जिसके कारण यह देश की संप्रभुता का प्रतीक बन गया।
इसके विशाल द्वार और बगीचे इसे और भी आकर्षक बनाते हैं।
लाल किले के वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी ने डिजाइन किया था जिन्होंने ताजमहल को भी डिजाइन किया था।
लाल किला का पुराना नाम किला-ए-मुबारक है।
यूनेस्को ने लाल किला परिसर को 2007 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
भारत में 10 नवंबर 2016 को जारी 500 रूपये (वर्तमान में भारत के सबसे बड़े नोट) के नए बैंकनोट (भारतीय रूपये) में पीछे की तरफ लाल किला (विश्व धरोहर स्थल) मुद्रित है।
यूनेस्को द्वारा लाल किला परिसर को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iii) (vi)
23- जंतर मंतर, जयपुर (The Jantar Mantar, Jaipur)
स्थान – जयपुर, राजस्थान
18वीं शताब्दी में महाराजा जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित यह खगोलीय वेधशाला अपने समय की उन्नत तकनीक का प्रतीक है।
यहाँ 19 खगोलीय यंत्र हैं, जिनमें सम्राट यंत्र (दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर का सूर्यघड़ी) शामिल है, जो दो सेकंड की सटीकता से समय माप सकता है।
इसका उपयोग आकाशीय पिंडों की गति का अध्ययन करने के लिए किया जाता था।
जयपुर शहर भारत की पहली प्लांड सिटी है।
जंतर मंतर, जयपुर को 2010 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया।
यूनेस्को द्वारा जंतर मंतर, जयपुर को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iv)
24- राजस्थान के पहाड़ी किले (Hill Forts of Rajastha)
स्थान – राजस्थान
राजस्थान के राजपूताना शैली के 06 किलों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, सवाई माधोपुर, झालावार, जयपुर और जैसलमेर के पहाड़ी किले शामिल हैं।
ये 5वीं से 18वीं शताब्दी के बीच बने और राजपूत वास्तुकला का प्रतीक हैं।
चित्तौड़गढ़ की विशाल दीवारें, कुंभलगढ़ की नक्काशी और जैसलमेर का सुनहरा बलुआ पत्थर इनकी खासियत हैं।
ये किले रक्षा के साथ-साथ कला और संस्कृति के केंद्र भी थे।
राजस्थान के राजपूताना शैली के 06 पहाड़ी किलों 2013 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया।
यूनेस्को द्वारा राजस्थान के पहाड़ी किले को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iii)
25- रानी का वाव (रानी की बावड़ी), पाटण (Rani-ki-Vav (The Queen’s Stepwell) at Patan)
स्थान – पाटण, गुजरात
रानी का वाव सात मंजिला बावड़ी 11वीं शताब्दी में रानी उदयमती ने अपने पति राजा भीमदेव की याद में बनवाई थी।
इसमें 500 से अधिक प्रमुख मूर्तियाँ और 1,000 से अधिक छोटी मूर्तियाँ हैं, जो धार्मिक और सांसारिक थीम को दर्शाती हैं।
इसका डिज़ाइन एक उल्टे मंदिर की तरह है, जो पानी की पवित्रता को उजागर करता है।
यह जल संग्रह के लिए भी कार्यात्मक था।
रानी का वाव को 2014 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया।
भारत में 19 जुलाई 2018 को जारी 100 रूपये के नए बैंकनोट (भारतीय रूपये) में पीछे की तरफ रानी की वाव (विश्व धरोहर स्थल) मुद्रित है।
यूनेस्को द्वारा रानी का वाव को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (iv)
26- नालंदा में नालंदा महाविहार का पुरातात्विक स्थल (Archaeological Site of Nalanda Mahavihara at Nalanda)
स्थान – नालंदा, बिहार
5वीं से 12वीं शताब्दी तक नालंदा महाविहार दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था, जहाँ 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक थे।
यहाँ दर्शन, तर्कशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे विषय पढ़ाए जाते थे। इसके अवशेषों में स्तूप, विहार और मंदिर शामिल हैं, जो गुप्त और पाल वंश की भव्यता को दर्शाते हैं।
नालंदा महाविहार पुरातात्विक स्थल को 2016 में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया।
यूनेस्को द्वारा नालंदा महाविहार का पुरातात्विक स्थल को नामित किए जाने का मानदंड – (iv) (vi)
27- ली कोर्बुसिएर का वास्तुशिल्प कार्य, आधुनिक आंदोलन में एक उत्कृष्ट योगदान – चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स (The Architectural Work of Le Corbusier, an Outstanding Contribution to the Modern Movement)
स्थान – चंडीगढ़
स्विस-फ्रेंच वास्तुकार ले कोर्बुज़िए द्वारा डिज़ाइन किया गया चंडीगढ़ की कैपिटल कॉम्प्लेक्स इसमें शामिल है। यह कॉम्प्लेक्स आधुनिकता का प्रतीक है।
इसमें विधान सभा, सचिवालय और उच्च न्यायालय शामिल हैं, जो कच्चे कंक्रीट और आधुनिकतावादी डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध हैं। ओपन हैंड मॉन्यूमेंट शांति और मेलमिलाप का प्रतीक है।
यह भारत के औपनिवेशिक अतीत से मुक्ति का प्रतीक था।
चंडीगढ़ ली कॉर्बूसियर द्वारा एक मास्टर प्लान पंजाब और हरियाणा 2016 स्वतंत्रता के बाद राजधानी के रूप में डिज़ाइन किया गया, ली कॉर्बूसियर द्वारा आधुनिक वास्तुकला।
यह भारत का पहला योजनाबद्ध शहर है, जिसे फ्रांसीसी वास्तुकार लेकोर्बूजिए ने डिजाइन किया।
चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स को 2016 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला।
यूनेस्को द्वारा चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (ii) (vi)
28- ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद (Historic City of Ahmadabad)
स्थान – अहमदाबाद, गुजरात
15वीं शताब्दी में सुल्तान अहमद शाह द्वारा स्थापित यह शहर इंडो-इस्लामिक वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।
यहाँ भद्रा किला, सिदी सैय्यद मस्जिद (अपने जीवन वृक्ष जाली के लिए प्रसिद्ध) और जामा मस्जिद जैसे स्थल हैं।
शहर अपनी लकड़ी की नक्काशी वाली हवेलियों और कपड़ा उद्योग के लिए भी जाना जाता है।
अहमदाबाद भारत की पहली वर्ल्ड हेरिटेज सिटी।
अहमदाबाद भारत का पहला शहर है जिसे यूनेस्को द्वारा जुलाई 2017 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
यूनेस्को द्वारा ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (v)
29- मुम्बई की विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको संरचनाएं (Victorian Gothic and Art Deco Ensembles of Mumbai)
स्थान – मुंबई, महाराष्ट्र
मुम्बई की विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको संरचनाएं 19वीं और 20वीं शताब्दी की दो अलग-अलग शैलियों को दर्शाते हैं।
विक्टोरियन गोथिक इमारतें, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया, अलंकृत डिज़ाइन वाली हैं, जबकि मरीन ड्राइव की आर्ट डेको इमारतें ज्यामितीय पैटर्न और पेस्टल रंगों के साथ आधुनिक हैं।
मुंबई के विक्टोरियन और आर्ट डेको समूह न्यूयॉर्क के बाहर सबसे बड़ा आर्ट डेको संग्रह है।
ये संरचनाएँ मुंबई के वैश्विक चरित्र को प्रदर्शित करती हैं।
मुम्बई की विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको संरचनाएं को 2018 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया है।
यूनेस्को द्वारा मुम्बई की विक्टोरियन गोथिक एवं आर्ट डेको संरचनाएं को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iv)
30- जयपुर शहर (Jaipur City)
स्थान – जयपुर, राजस्थान
गुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर को 1727 में महाराजा सवाई जय सिंह II ने स्थापित किया था।
यह भारत का पहला नियोजित शहर है, जो वास्तु शास्त्र पर आधारित है।
यहाँ सिटी पैलेस, हवा महल और जंतर मंतर जैसे आकर्षण हैं।
यह अपने हस्तशिल्प और आभूषणों के लिए भी प्रसिद्ध है।
जयपुर शहर भारत का दूसरा शहर है जिसे 2019 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है।
यूनेस्को द्वारा जयपुर शहर को नामित किए जाने का मानदंड – (ii) (iv) (vi)
31- काकतीय रूद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर (Kakatiya Rudreshwara (Ramappa) Temple)
स्थान – मुलुगु जिला, तेलंगाना
रामप्पा मंदिर, जिसे काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर के रूप में जाना जाता है।
13वीं शताब्दी में काकतीय वंश द्वारा निर्मित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। रामप्पा मंदिर के निर्माण में लगभग 40 वर्षों का समय लगा था।
रामप्पा मंदिर काकतीय वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है, जिसमें तारे के आकार का प्लेटफॉर्म, हल्के ईंटों से बनी छत, और भूकंप-प्रतिरोधी सैंडबॉक्स तकनीक शामिल है।
मंदिर में एक बड़ा नंदी की मूर्ति और रामप्पा मंदिर की ऊपरी संरचना हल्की ईटों से बनी हैं, जिन्हें फ्लोटिंग ब्रिक्स कहा जाता है।
आसपास का झील और बगीचा इसकी सुंदरता बढ़ाते हैं।
यह मंदिर राजा के नहीं, शिल्पकार रामप्पा के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर का नाम इसके वास्तुकार रामप्पा के नाम पर रखा गया है, जो भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है जो अपने शिल्पकार के नाम से जाना जाता है।
काकतीय रूद्रेश्वर मंदिर को 2021 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया।
यूनेस्को द्वारा काकतीय रूद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (iii)
32- धोलावीराः एक हड़प्पा शहर (Dholavira: a Harappan City)
स्थान – कच्छ ज़िले, गुजरात
धोलावीरा लगभग 4500 साल पुराना हड़प्पा सभ्यता का एक प्रमुख शहर था।
धोलावीरा का जल प्रबंधन सिस्टम (जलाशय, बांध और नहरें) उन्नत था।
शहर को तीन भागों – किला, मध्य शहर और निचला शहर – में बाँटा गया था।
यहाँ मिले अवशेष, जैसे मुहरें और मिट्टी के बर्तन, हड़प्पा संस्कृति की जानकारी देते हैं।
धोलावीरा को 2021 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है।
यूनेस्को द्वारा धोलावीराः एक हड़प्पा शहर को नामित किए जाने का मानदंड – (iii) (iv)
33- शांति निकेतन (Santiniketan)
स्थान – बीरभूम जिले, पश्चिम बंगाल
शांति निकेतन रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित एक शैक्षिक और सांस्कृतिक केंद्र है, जो कला, साहित्य और प्रकृति के एकीकरण के लिए जाना जाता है।
यह भारत का 41वां और पश्चिम बंगाल का तीसरा विश्व धरोहर स्थल है।
रबींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में यहाँ एक प्रयोगात्मक स्कूल शुरू किया, जो बाद में विश्व-भारती विश्वविद्यालय बना। यहाँ की शिक्षा प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित है।
खुली हवा में कक्षाएँ, हरे-भरे परिसर और पौष मेला जैसे उत्सव इसे अनूठा बनाते हैं।
टैगोर द्वारा डिज़ाइन कई भवन भी यहाँ हैं।
शांति निकेतन को 2023 को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है।
यूनेस्को द्वारा शांति निकेतन को नामित किए जाने का मानदंड – (iv) (vi)
34- होयसल के पवित्र मंदिर समूह (Sacred Ensembles of the Hoysalas)
स्थान – हसन जिले में 02 मंदिर और मैसूर जिले में 01 मंदिर, कर्नाटक
12वीं-13वीं शताब्दी में होयसल वंश द्वारा निर्मित ये मंदिर बेलूर, हलेबिडू और सोमनाथपुर में हैं।
इनका निर्माण नरम साबुन पत्थर (सोपस्टोन) से किया गया, जो विस्तृत नक्काशी के लिए उपयुक्त था और आज भी अच्छी तरह से संरक्षित है, साथ ही खरादे हुए स्तंभ और तारे के आकार के मंच दर्शानीय है।
होयसल शैली में तारे के आकार का गर्भगृह, दर्शन हेतु मंच और शानदार मूर्तियां बनाई गई हैं।
ये भगवान विष्णु और शिव को समर्पित हैं और इनकी मूर्तियाँ पौराणिक और दैनिक जीवन के दृश्य दर्शाती हैं।
होयसल के पवित्र मंदिर समूह को 2023 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है। यह भारत का 42वां विश्व विरासत स्थल है।
यूनेस्को द्वारा होयसल के पवित्र मंदिर समूह को नामित किए जाने का मानदंड – (i) (ii) (iv)
35- मोइदम – अहोम राजवंश की टीला-दफ़नाने की प्रणाली (Moidams – the Mound-Burial System of the Ahom Dynasty)
स्थान – चराइदेव जिले, असम
13वीं से 19वीं शताब्दी तक अहोम वंश के राजाओं और कुलीनों के लिए ये दफन टीले बनाए गए।
ये मिट्टी के टीले हैं, जिन्हें ईंटों से मजबूत किया गया है।
यहाँ से मिले मिट्टी के बर्तन, हथियार और आभूषण अहोम संस्कृति की जानकारी देते हैं।
सबसे बड़े टीले शाही मकबरे हैं।
मोइदम्स का आकार मिस्त्र के पिरामिड जैसा होने के कारण इसे मिनी पिरामिड्स ऑफ असम भी कहा जाता है।
मोइदम 2024 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में सबसे नवीनतम स्थल है।
यूनेस्को द्वारा मोइदम – अहोम राजवंश की टीला.दफ़नाने की प्रणाली को नामित किए जाने का मानदंड – (iii) (iv)

भारत के सभी 7 विश्व प्राकृतिक धरोहर स्थल सूची और तथ्य
भारत के प्राकृतिक स्थल इसकी समृद्ध जैव विविधता और अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र को उजागर करते हैं।
नीचे भारत के सभी 7 प्राकृतिक धरोहर स्थल की जानकारी, रोचक एवं महत्वपूर्ण तथ्यों और उनके शिलालेख का वर्ष (विश्व धरोहर स्थल की सूची में शमिल) का विवरण है –
1- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (Kaziranga National Park)
स्थान – गोलाघाट, सोनितपुर, बिस्वानथ और नागांव जिलें, असम
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 1985
काजीरंगा नेशनल पार्क एक सींग वाले गैंडे (भारतीय गेंडा) के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ दुनिया के लगभग दो-तिहाई एक सींग वाले गैंडे पाए जाते हैं।
भारत में 90% एक सींग वाले गैंडे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में पाए जाते हैं।
पार्क में 2,613 से अधिक गैंडे हैं, जिनमें 1,641 वयस्क और 385 बच्चे शामिल हैं।
यहाँ बाघ, हाथी, जंगली भैंस और दलदली हिरण की बड़ी प्रजनन आबादी भी है।
पार्क को 2006 में बाघ आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था।
काजीरंगा को 1908 में आरक्षित वन के रूप में दर्ज किया गया था और 1974 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
यहाँ की जैव विविधता और पारिस्थितिक महत्व के कारण इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
पार्क में भारी वर्षा के कारण बाढ़ एक बड़ी समस्या है, जो जानवरों को असुरक्षित क्षेत्रों में प्रवास करने पर मजबूर करती है।
यूनेस्को द्वारा काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान को नामित किए जाने का मानदंड – (ix) (x)
2- मानस वन्यजीव अभ्यारण्य (Manas Wildlife Sanctuary)
स्थान – बोंगाईगांव और बारपेटा जिला, असम
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 1985
मानस वन्यजीव अभ्यारण्य भूटान सीमा के पास स्थित है और मानस नदी के किनारे फैला हुआ है।
यहाँ बाघ, हाथी, गैंडे, और दुर्लभ सुनहरे लंगूर पाए जाते हैं।
अभ्यारण्य को 1928 में स्थापित किया गया था और 1990 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
यहाँ की जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
मानस नदी पार्क को दो भागों में विभाजित करती है, जिससे यहाँ का परिदृश्य और भी आकर्षक हो जाता है।
यूनेस्को द्वारा मानस वन्यजीव अभ्यारण्य को नामित किए जाने का मानदंड – (vii) (ix) (x)
3- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park)
स्थान – राजस्थान
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 1985
केवलादेव नेशनल पार्क पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग है, जहाँ 370 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
यहाँ साइबेरियन क्रेन सहित कई प्रवासी पक्षी सर्दियों में आते हैं।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान साइबेरियाई क्रेन पक्षी का दुनिया में दूसरा घर है।
केवलादेव को 1982 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला और 1981 में इसे रामसर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
यहाँ की झीलें और दलदली क्षेत्र पक्षियों के लिए आदर्श आवास प्रदान करते हैं।
पार्क का नाम केवलादेव (शिव) मंदिर से लिया गया है, जो यहाँ स्थित है।
यूनेस्को द्वारा केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को नामित किए जाने का मानदंड – (x)
4- सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (Sundarbans National Park)
स्थान – दक्षिण 24 परगना जिला, पश्चिम बंगाल
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 1987
सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव जंगल है, जो भारत और बांग्लादेश में फैला हुआ है।
यहाँ रॉयल बंगाल टाइगर की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है।
सुंदरबन में 400 से अधिक बाघ और 30,000 से अधिक चीतल हिरण हैं।
यहाँ की मैंग्रोव वनस्पति तटीय कटाव को रोकने और जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
सुंदरबन को 1984 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर (मैन) प्रोग्राम के तहत् सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान को 2001 में बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया है।
यूनेस्को द्वारा सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान को नामित किए जाने का मानदंड – (ix) (x)
5- नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क एवं फूलों की घाटी (Nanda Devi and Valley of Flowers National Parks)
स्थान – चमोली जिला, उत्तराखंड
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 1988
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी, नंदा देवी (7,817 मीटर) के इर्द-गिर्द फैला हुआ है, जबकि फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान अपने अल्पाइन फूलों के मैदानों के लिए जाना जाता है, जिसमें 600 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान में हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, और हिमालयी काला भालू जैसे दुर्लभ जानवर पाए जाते हैं।
पार्क को 1939 में स्थापित किया गया था और 1982 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
1988 में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था, और 2005 में फूलों की घाटी को इसमें शामिल किया गया।
यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता के कारण इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व (223,674 हेक्टेयर) का हिस्सा हैं, जिसके चारों ओर 5,148.57 वर्ग किलोमीटर का बफर जोन है।
पार्क में प्रवेश के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है, जिससे यहाँ का पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षित रहता है।
यूनेस्को द्वारा नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क एवं फूलों की घाटी को नामित किए जाने का मानदंड – (vii) (x)
6- पश्चिम घाट (Western Ghats)
स्थान – गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 2012
पश्चिम घाट भारत की सबसे महत्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है, जहाँ 5,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ और 139 स्तनधारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
यहाँ नीलगिरि तहर, शेर-पूंछ वाला मकाक, और मालाबार सिवेट जैसे स्थानिक जानवर पाए जाते हैं।
पश्चिम घाट में कई संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं, जैसे साइलेंट वैली नेशनल पार्क, पेरियार नेशनल पार्क, और अन्नामलाई टाइगर रिजर्व।
यहाँ की वनस्पति और जीव जंतु की विविधता के कारण इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
पश्चिम घाट भारत की लगभग 30ः जल आपूर्ति के लिए जिम्मेदार है।
यूनेस्को द्वारा पश्चिम घाट को नामित किए जाने का मानदंड – (ix) (x)
7- ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (Great Himalayan National Park Conservation Area)
स्थान – कुल्लू जिला, हिमाचल प्रदेश
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 2014
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क हिमालय की जैव विविधता का एक प्रमुख केंद्र है, जहाँ 375 से अधिक जीव जंतु प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
यहाँ हिम तेंदुआ, नीली भेड़, और हिमालयी तहर जैसे दुर्लभ जानवर पाए जाते हैं।
पार्क को 1984 में स्थापित किया गया था और 1999 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और पारिस्थितिक महत्व के कारण इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
यूनेस्को द्वारा ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को नामित किए जाने का मानदंड – (x)
भारत के 01 मिश्रित स्थल – सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व
मिश्रित स्थल सांस्कृतिक और प्राकृतिक मूल्यों को जोड़ता है, भारत का 01 स्थल को यह दर्जा प्राप्त है।
1- कंजनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (Khangchendzonga National Park) भारत का एकमात्र मिश्रित धरोहर स्थल
स्थान – मंगन और ग्यालशिंग जिला, सिक्किम
विश्व धरोहर स्थल शिलालेख का वर्ष (यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में कब शामिल किया) – वर्ष 2016
कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का पहला और अभी तक का एकमात्र मिश्रित विश्व धरोहर स्थल है।
कंजनजंगा राष्ट्रीय उद्यान दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची चोटी कंजनजंगा (8,586 मीटर) के नाम पर रखा गया है जो इसके आसपास स्थित है।
यहाँ लाल पांडा, हिम तेंदुआ, और कस्तूरी मृग जैसे दुर्लभ जानवर पाए जाते हैं।
पार्क को 1977 में स्थापित किया गया था और 2016 में इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
यहाँ की जैव विविधता और सांस्कृतिक महत्व के कारण इसे मिश्रित विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता मिली।
यूनेस्को के मैन एंड बायोस्फीयर (मैन) प्रोग्राम के तहत् कंजनजंगा राष्ट्रीय उद्यान को 2018 में बायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया है।
पार्क में कई बौद्ध मठ और पवित्र स्थल हैं, जो इसे धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।
कंजनजंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का इकलौता मिश्रित विश्व धरोहर स्थल है।
यूनेस्को द्वारा कंजनजंगा राष्ट्रीय उद्यान को नामित किए जाने का मानदंड – (iii) (vi) (vii) (x)
भारत में यूनेस्को द्वारा वर्षवार शामिल किए गए विश्व धरोहर स्थलों की सूची
वर्ष 1983 में यूनेस्को द्वारा भारत के 04 स्थलों को पहली बार विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया था।
वर्ष 1983 से 2024 तक कुल 43 वर्षों में भारत के 43 स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है। इनमें 35 सांस्कृतिक स्थल, 07 सात प्राकृतिक स्थल और 01 मिश्रित धरोहर स्थल है।
भारत में वर्ष 1983, 1986 तथा 1987 में सबसे अधिक 04-04 स्थलों को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला है।
वर्ष 1985 और 2016 में भारत के दूसरे सबसे अधिक 3-3 स्थलों को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला है।
वर्ष 1990, 1991, 1992, 1994 से 1998, 2000, 2001, 2005, 2006, 2008, 2009, 2011, 2015, 2020, तथा 2022 को यूनेस्को द्वारा भारत के किसी भी स्थल को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित नहीं किया है।
भारत में वर्षवार विश्व धरोहर स्थल में शामिल स्थलों की सूची
क्रमांक | वर्ष | विश्व धरोहर स्थल के रूप मेें शामिल स्थलों की संख्या |
---|---|---|
1 | 1983 | 4 |
2 | 1984 | 2 |
3 | 1985 | 3 |
4 | 1986 | 4 |
5 | 1987 | 4 |
6 | 1988 | 1 |
7 | 1989 | 1 |
8 | 1993 | 2 |
9 | 1999 | 1 |
10 | 2002 | 1 |
11 | 2003 | 1 |
12 | 2004 | 2 |
13 | 2007 | 1 |
14 | 2010 | 1 |
15 | 2012 | 1 |
16 | 2013 | 1 |
17 | 2014 | 2 |
18 | 2016 | 3 |
19 | 2017 | 1 |
20 | 2018 | 1 |
21 | 2019 | 1 |
22 | 2021 | 2 |
23 | 2023 | 2 |
24 | 2024 | 1 |
कुल योग | 43 |
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