क्या आपको पता है कौन से कौन विश्व धरोहर स्थल दो से अधिक राज्य में फैले हुए हैं?
भारत के 02 विश्व धरोहर स्थल दो से अधिक राज्यों में विस्तृत है।
इंडियन माउंटेन रेलवे (Mountain Railway of India) (भारत के पर्वतीय रेलवे) को संयुक्त रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है जिसके अंतर्गत भारत के 03 राज्य आते हैं जिसमें पश्चिम बंगाल में स्थित दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे को वर्ष 1999 में तमिलनाडु में स्थित नीलगिरी माउंटेन रेलवे को वर्ष 2005 में तथा हिमाचल प्रदेश में स्थित शिमला-कालका रेलवे को वर्ष 2008 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया है।
पश्चिमी घाट (Western Ghats) को संयुक्त रूप से वर्ष 2012 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। जिसके अंतर्गत भारत के 06 राज्यों में में इसका विस्तार है। जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के क्षेत्र शामिल हैं।
आईये जानते हैं इंडियन माउंटेन रेलवे और पश्चिमी घाट के विश्व विरासत स्थल को विस्तार से

इंडियन माउंटेन रेलवे (The Mountain Railway of India) – दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरी माउंटेन रेलवे और शिमला-कालका रेलवे
इंडियन माउंटेन रेलवे (Mountain Railway of India) में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरी माउंटेन रेलवे और शिमला-कालका रेलवे शामिल हैं, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।
ये रेलवे 19वीं और 20वीं सदी में बने थे और पहाड़ी इलाकों में रेल लिंक स्थापित करने के लिए इंजीनियरिंग के शानदार उदाहरण हैं।
दार्जिलिंग रेलवे 1881 में, नीलगिरी रेलवे 1899 में, और शिमला-कालका रेलवे 1903 में शुरू हुआ था।
इंडियन माउंटेन रेलवे, विशेष रूप से दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरी माउंटेन रेलवे और शिमला-कालका रेलवे, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हैं और भारत के औपनिवेशिक इतिहास और इंजीनियरिंग नवाचारों का प्रतीक हैं। इन रेलवेज़ को माउंटेन रेलवेज़ ऑफ इंडिया के रूप में समूह में शामिल किया गया है, जो मानव इतिहास में तकनीकी और सांस्कृतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
इन रेलवेज़ को 1999, 2005 और 2008 में क्रमशः दार्जिलिंग, नीलगिरी और शिमला-कालका के लिए यूनेस्को ने मान्यता दी। ये मानव इतिहास में तकनीकी विकास के महत्वपूर्ण चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में रेल लिंक स्थापित करने के लिए इंजीनियरिंग के शानदार उदाहरण हैं।
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (Darjeeling Himalayan Railway DHR)
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे जिसे DHR या टॉय ट्रेन के रूप मे प्रसिद्ध है।
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे 1879-1881 के बीच बनाया गया था और पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग को जोड़ता है।
स्थान और मार्ग – पश्चिम बंगाल में न्यू जलपाईगुड़ी (100 मीटर) से दार्जिलिंग (2,200 मीटर) तक, लगभग 88 किलोमीटर लंबा।
निर्माण – 1879-1881 के बीच ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया, नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे द्वारा संचालित।
गेज और तकनीक – 610 मिमी संकरी गेज, ऊंचाई प्राप्त करने के लिए छह ज़िगज़ैग और तीन लूप का उपयोग।
विशेषताएं – घूम स्टेशन (2,258 मीटर) भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है। भाप और डीजल इंजन दोनों का उपयोग होता है, जिसमें भाप इंजन पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण हैं।
विश्व धरोहर स्थिति – 1999 में यूनेस्को द्वारा मान्यता दी गई, मानदंड पप और पअ के तहत, जो तकनीकी नवाचार और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।
महत्व – यह पहला पहाड़ी यात्री रेलवे है और हिमालय की खूबसूरती और चाय बागानों के दृश्य प्रदान करता है। यह पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है, विशेष रूप से टॉय ट्रेन के रूप में जाना जाता है।
नीलगिरी माउंटेन रेलवे (Nilgiri Mountain Railway – NMR)
नीलगिरी माउंटेन रेलवे 1899 में शुरू हुआ और 1908 में विस्तारित हुआ, जो तमिलनाडु में मेट्टुपालयम से ऊटी को जोड़ता है।
स्थान और मार्ग – तमिलनाडु में मेट्टुपालयम (325 मीटर) से ऊटी (2,203 मीटर) तक, 46 किलोमीटर लंबा, कोनूर के माध्यम से।
निर्माण – 1899 में शुरू, 1908 में विस्तारित, दक्षिण रेलवे द्वारा संचालित।
गेज और तकनीक – 1,000 मिमी मीटर गेज, भारत का एकमात्र रैक और पिनियन रेलवे, जो खड़ी ढलानों पर चढ़ने में मदद करता है।
विशेषताएं – 16 सुरंगें और 250 से अधिक छोटे-बड़े पुल, यात्रा में 5 घंटे ऊपर की ओर और 3 घंटे नीचे की ओर लगते हैं। भाप इंजन का उपयोग होता है, हालांकि कुछ खंडों में डीजल इंजन भी हैं।
विश्व धरोहर स्थिति – 2005 में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के विस्तार के रूप में जोड़ा गया, मानदंड पप और पअ के तहत।
महत्व – यह घने जंगलों और पहाड़ी दृश्यों के माध्यम से यात्रा प्रदान करता है, और ऊटी जैसे हिल स्टेशन को मैदानी इलाकों से जोड़ता है। यह पर्यटकों के लिए एक नॉस्टैल्जिक अनुभव है।
शिमला-कालका रेलवे (Kalka Shimla Railway – KSR)
शिमला-कालका रेलवे 1898-1903 के बीच बनाया गया और हिमाचल प्रदेश में शिमला को हरियाणा के कालका से जोड़ता है।
स्थान और मार्ग – हरियाणा के कालका (656 मीटर) से हिमाचल प्रदेश के शिमला (2,076 मीटर) तक, 96 किलोमीटर लंबा।
निर्माण – 1898-1903 के बीच बनाया गया, उत्तरी रेलवे द्वारा संचालित।
गेज और तकनीक- 762 मिमी संकरी गेज, 864 पुल और 103 सुरंगें, जिसमें बारोग की सबसे लंबी सुरंग (1,143 मीटर) शामिल है।
विशेषताएं – दुनिया का सबसे ऊंचा मल्टी-आर्च गैलरी ब्रिज कनोह में है, और इसमें 919 वक्र हैं, सबसे तेज 48 डिग्री का।
विश्व धरोहर स्थिति – 2008 में माउंटेन रेलवेज़ ऑफ इंडिया में जोड़ा गया।
महत्व – यह ब्रिटिश भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला को मैदानी इलाकों से जोड़ता है और शानदार दृश्य प्रदान करता है। यह पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण विरासत है।
ये रेलवे ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान बनाए गए थे और पहाड़ी इलाकों में रेल नेटवर्क स्थापित करने के लिए तकनीकी चुनौतियों का समाधान करते हैं। वे न केवल परिवहन के साधन थे, बल्कि हिल स्टेशनों जैसे दार्जिलिंग, ऊटी और शिमला को मैदानी इलाकों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज, ये रेलवे पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं और भारत की रेलवे विरासत को संरक्षित करते हैं।

भारत के पर्वतीय रेलवे भारत का 22वां विश्व धरोहर स्थल है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में निम्नलिखित मानदंडों के तहत मान्यता दी गई है –
मानदंड (ii) – ये रेलमार्ग तकनीकी विकास और नवाचारों के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण उदाहरण है तथा बहुसांस्कृतिक क्षेत्रों में परिवहन प्रणाली के प्रभाव को दर्शाते हैं और वैश्विक स्तर पर समान विकास के लिए मॉडल के रूप में कार्य करते हैं।
मानदंड (iv) – ये उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में रेलवे विकास के विभिन्न चरणों का उत्कृष्ट तकनीकी समूह हैं। ये रेलमार्ग पहाड़ी आबादी को जोड़ने के लिए तकनीकी और भौतिक प्रयासों का प्रतीक है और आज भी पूरी तरह से कार्यशील है।
भारत के पर्वतीय रेलवे साइट के संपत्ति का क्षेत्र 88.99 हेक्टेयर है, जिसमें बफर जोन 644.88 हेक्टेयर है।
भारत के पर्वतीय रेलमार्ग, दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरी माउंटेन रेलवे और कालका शिमला रेलवे तकनीकी नवाचार, सामाजिक आर्थिक और मानव इतिहास में उनके योगदान को दर्शाते हैं। ये रेलवे न केवल इंजीनियरिंग के शानदार उदाहरण हैं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर भी हैं, जो आज भी पूरी तरह से कार्यशील हैं और भविष्य के लिए संरक्षित किए जा रहे हैं।
पश्चिमी घाट (Western Ghats)
पश्चिमी घाट भारत के पश्चिमी और दक्षिणी भाग में फैली एक पहाड़ी श्रृंखला है, जो गुजरात से तमिलनाडु तक 1,600 किलोमीटर तक फैली है।
इसे 2012 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था, जो जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है।
यह क्षेत्र 5,000 से अधिक पौधों और कई स्थानिक जानवरों, जैसे एशियाई हाथी और शेर-पूंछ वाले मकाक, का घर है।
पश्चिमी घाट क्षेत्र न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए बल्कि आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक परंपराओं के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भारत के पश्चिमी तट के समानांतर चलने वाली पर्वत श्रृंखला, लगभग 30 से 50 किलोमीटर अंतर्राज्यीय घाट केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों से होकर गुजरती है।
यह पर्वतीय श्रृंखला 1600 किलोमीटर लंबे खंडों में लगभग 1,40,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र तक विस्तृत है।
पश्चिमी घाट प्राकृतिक स्थल के रूप में सबसे अधिक 06 राज्यों में फैला भारत का सबसे लंबा विश्व धरोहर स्थल है।
सह्याद्रि पर्वत, या पश्चिमी घाट, भारत की पश्चिमी तट रेखा के गुजरात के टापी नदी से शुरू होकर तमिलनाडु के कन्याकुमारी तक पहुंचते हैं। यह छह राज्यों – गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु – को कवर करता है, और अरब सागर के साथ संकरी तटीय मैदान से दक्कन पठार को अलग करता है।
ऊंचाई – पश्चिमी घाट की औसत ऊंचाई लगभग 1,200 मीटर है, जिसमें सबसे ऊंची चोटी अनामुदी (2,695 मीटर) है।
नदियां – यह कई प्रमुख नदियों जैसे गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का स्रोत है, जो बंगाल की खाड़ी में बहती हैं।
जलवायु प्रभाव – पश्चिमी घाट भारतीय मानसून प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, पश्चिमी ढलानों पर बारिश लाते हैं और पूर्वी तरफ बारिश की छाया क्षेत्र बनाते हैं।
जैव विविधता – पश्चिमी घाट दुनिया के आठ जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक हैं और इसमें उच्च स्तर का स्थानिकता (मदकमउपेउ) है।
वनस्पति – 4,000 से अधिक पौधे प्रजातियां, जिनमें से 352 वृक्ष प्रजातियां स्थानिक हैं।
जीव-जंतु – उभयचररू 179 प्रजातियां, जिनमें से 65ः स्थानिक।
सरीसृप – 157 प्रजातियां, जिनमें से 62ः स्थानिक।
मछलियां – 219 प्रजातियां, जिनमें से 53ः स्थानिक।
स्तनधारी – इसमें एशियाई हाथी, गौर और बाघ जैसे प्रमुख प्रजातियां शामिल हैं, साथ ही लायन-टेल्ड मकाक, नीलगिरी तहर और नीलगिरी लंगूर जैसे संकटग्रस्त प्रजातियां भी हैं।
पश्चिमी घाट में कम से कम 325 वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियां हैं, जो इसे संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण बनाती हैं। यह क्षेत्र एशियाई हाथी की दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का हिस्सा है, जो इसकी पारिस्थितिक महत्व को दर्शाता है।
पश्चिमी घाट न केवल जैविक रूप से समृद्ध हैं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। यह कई स्वदेशी समुदायों का घर है, जैसे आदिवासी, जो सदियों से इस क्षेत्र में रहते हैं और प्रकृति के साथ सहजीवी संबंध बनाए रखते हैं। उनकी पारंपरिक ज्ञान प्रणाली जैव विविधता संरक्षण में योगदान देती है।
इस क्षेत्र में कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल भी हैं, जैसे श्रीविल्लिपुत्तुर अभयारण्य, अगस्त्यमलाई, पेरियार, तालकावेरी और सोमेश्वरा में मंदिर, जो तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं। इसके अलावा, चिनार में प्राचीन डोलमेन, गुफा चित्र और मेगालिथिक कब्रिस्तान जैसे पुरातात्विक स्थल हैं, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।
यह क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध है, जिसमें 5,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ और 325 से अधिक वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं। प्रमुख जानवरों में एशियाई हाथी, बाघ, शेर-पूंछ वाला मकाक और नीलगिरी तंीत शामिल हैं।
पश्चिमी घाट आदिवासी समुदायों जैसे टोदा, कोटा और कुर्म्बा की सांस्कृतिक परंपराओं का घर है, जो प्राकृतिक पर्यावरण के साथ गहराई से जुड़े हैं।
पश्चिमी घाट, जो भारत के पश्चिमी और दक्षिणी भाग में फैली एक पहाड़ी श्रृंखला है, को 2012 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी। यह जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है और पर्यटकों, शोधकर्ताओं, और संरक्षणवादियों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
यह श्रृंखला तीन खंडों में बंटी है – उत्तरी (900-1,500 मीटर ऊंचाई), मध्य (कम ऊंचाई), और दक्षिणी (ऊंचाई फिर से बढ़ती है)।
इसकी सबसे ऊंची चोटी अनाई मुदी (आनमुडी) (2,695 मीटर, केरल में) है, और अन्य प्रमुख चोटियाँ डोडा बेटा, कुड्रेमुख, मुल्लायनगिरी, और ब्रह्मगिरी हैं। यह कई प्रमुख नदियों जैसे गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, और तुंगभद्रा की उत्पत्ति का स्थान है, जो भारत की लगभग 40% भूमि क्षेत्र को सिंचित करती हैं।

पश्चिमी घाट गोंडवाना सुपरकॉन्टिनेंट के टूटने के दौरान बने, जो देर से जुरासिक और प्रारंभिक क्रेटेशियस काल में था। यह डेक्कन पठार के पश्चिमी किनारे का परिणाम है, जो भौगोलिक रूप से ऊंचा हुआ और कई फॉल्ट्स के कारण पहाड़ों का निर्माण हुआ। यह हिमालय से भी पुरानी है और भारतीय मानसून पैटर्न को प्रभावित करती है।
पश्चिमी घाट की घाट शब्दावली इसकी सीढ़ीदार भौगोलिक संरचना को दर्शाती है, जो बारिश और नदियों के प्रवाह को प्रभावित करती है। यह क्षेत्र उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, शोला वन, और पहाड़ी घास के मैदानों जैसे विविध पारिस्थितिक तंत्रों का घर है।
जीव-जंतुओं में – 179 उभयचर प्रजातियाँ, जिनमें 65% स्थानिक हैं।
157 सरीसृप प्रजातियाँ, जिनमें 62% स्थानिक हैं।
219 मछली प्रजातियाँ, जिनमें 53% स्थानिक हैं।
प्रमुख स्तनधारी – एशियाई हाथी, बाघ, शेर-पूंछ वाला मकाक, और गौर।
विशिष्ट स्थानिक प्रजातियों में लायन-टेल्ड मकाक, विभिन्न उभयचर जैसे माइक्रिक्सालस, इंडिराना, और नाइक्टिबैट्रैकस शामिल हैं। यह क्षेत्र 325 से अधिक वैश्विक स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियों का घर है, जिसमें 229 पौधे, 31 स्तनधारी, 15 पक्षी, 43 उभयचर, 5 सरीसृप, और 1 मछली शामिल हैं। इनमें से 129 संवेदनशील, 145 लुप्तप्राय, और 51 अत्यंत लुप्तप्राय हैं।
पश्चिमी घाट हज़ारों सालों से विभिन्न आदिवासी समुदायों जैसे टोदा, कोटा, और कुर्म्बा जनजातियों द्वारा बसे हुए हैं। इन समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराएँ हैं और वे प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सामंजस्य में रहते हैं। क्षेत्र में ऐतिहासिक स्थल और मंदिर, जैसे कर्नाटक में जोग फॉल्स और केरल में पेरियार टाइगर रिजर्व, भी हैं।
पश्चिमी घाट भारत का 29वां विश्व धरोहर स्थल है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में निम्नलिखित मानदंड के तहत मान्यता दी गई है –
मानदंड (ix) – पश्चिमी घाट क्षेत्र में गोंडवानालैंड के प्राचीन भूभाग के प्रजाति विकास, भारत के एक अलग भूभाग में गठन और भारतीय भूभाग को यूरेशिया के साथ एक साथ जाना। यह विकासवादी इकोटोन है जो प्रजातियों के फैलाव और विचरण को दर्शाता है।
मानदंड (x) जैव विविधता संरक्षण – पश्चिमी घाट एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है, जिसमें 5,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 54ः वृक्ष प्रजातियाँ स्थानिक हैं। यहाँ की वनस्पति में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, शोला वन, और पहाड़ी घास के मैदान शामिल हैं। 179 उभयचर, 157 सरीसृप, और 219 मछलियाँ की प्रजातियाँ शामिल है।
पश्चिमी घाट के साइट के संपत्ति का क्षेत्र 7,95,315 हेक्टेयर है।
पश्चिमी घाट एक अनूठा और अमूल्य प्राकृतिक धरोहर है, जो जैव विविधता और सांस्कृतिक धन से समृद्ध है।
सह्याद्रि पर्वत, या पश्चिमी घाट, जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत का एक खजाना हैं। उनकी यूनेस्को विश्व धरोहर मान्यता उनके वैश्विक महत्व को दर्शाती है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।