क्या आपको पता है भारत के किन-किन केन्द्र शासित प्रदेशों में विश्व धरोहर स्थल है।
भारत के 08 केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली और चंडीगढ़ दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विश्व धरोहर स्थल है। जिसमें दिल्ली में 03 और चंडीगढ़ में 01 विश्व धरोहर (विरासत) स्थल हैं।
आईये जानते हैं दिल्ली और चंडीगढ़ के विश्व धरोहर स्थल को विस्तार से
दिल्ली के विश्व विरासत (धरोहर) स्थल UNESCO World Heritage Sites in Delhi
हुमायूँ का मकबरा वर्ष 1993 (सांस्कृतिक स्थल)
कुतुब मीनार और उसके स्मारक वर्ष 1993 (सांस्कृतिक स्थल)
लाल किला परिसर वर्ष 2007 (सांस्कृतिक स्थल)
हुमायूँ का मकबरा (Humayun’s Tomb)
हुमायूं का मकबरा दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास स्थित है और इसे 1993 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
यह मुगल वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो पहला बगीचा-मकबरा है और ताजमहल जैसे बाद के स्मारकों को प्रेरित किया।
यह 27.04 हेक्टेयर (66.8 एकड़) में फैला है और इसमें 150 से अधिक मुगल परिवार के सदस्यों की कब्रें हैं।
हुमायूँ का मकबरा भारतीय उपमहाद्वीप में पहला प्रमुख उद्यान मकबरा है।
हुमायूँ, बाबर के पुत्र और अकबर के पिता तथा मुगल साम्राज्य के दूसरे सम्राट थे। उनकी मृत्यु 1556 में हुई, और उनकी प्रारंभिक कब्र पुराना किला, दिल्ली में थी, जिसे बाद में सिरहिंद, पंजाब में स्थानांतरित किया गया अंततः उनकी पहली बेगम बेगा बेगम जिन्हें हाजी बेगम के नाम से जाना जाता है, ने हुमायूं का मकबरा निर्माण 1558 में शुरू करवाया और 1572 में 15 लाख रूपये की लागत से पूरा हुआ।
यह मकबरा न केवल हुमायूं की समाधि है, बल्कि 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के लिए शरण स्थल भी रहा।
इसे फारसी वास्तुकार मिराक मिर्जा गियात ने फारसी शैली में डिज़ाइन किया था जिसको अंतिम रूप उनके पुत्र सैयद मुहम्मद ने दिया था।
मकबरा एक चौकोर बगीचे के बीच स्थित है। मकबरे का डिज़ाइन चारबाग शैली में है, जिसमें चार खंडों वाले बगीचे हैं, जो इस्लामी स्वर्ग का प्रतीक हैं।
मकबरे की चौकोर लाल बलुआ पत्थर की दो मंजिला संरचना, जिसके कोने चम्फर किए गए हैं। हुमायूं का मकबरा 8 मीटर ऊँचे चबूतरे पर है जो 12000 वर्ग मीटर की की ऊपरी सतह को लाल जालीदार मुंडेर से घेरे हुए है।
प्रधान कक्ष के 04 कोणों पर चार अष्टाकोणीय कमरे हैं, जो मेहराबदार दीर्घा से जुड़े हैं। गुंबददार कक्ष (हुजरा) में सफेद गुंबद के नीचे केन्द्रीय अष्टकोणीय कब्र है। यह स्मारक मुगल वास्तुकला के विकास में एक मील का पत्थर है और इसमें 150 से अधिक मुगल परिवार के सदस्यों की कब्रें हैं, जिसे मुगलों की डोरमेटरी भी कहा जाता है।
मकबरा 154 फीट की ऊँचाई और चबूतरा 299 फीट चौड़ा है। मुख्य मकबरा ऊंचे, चौड़े चबूतरे पर बना है, जिसमें अनियमित अष्टकोणीय योजना है और 139 फीट ऊंचा दोहरा गुंबद है, जो संगमरमर से ढका हुआ है। सफेद संगमरमर की जड़े हुए काम इसकी विशिष्ट विशेषता है।
चार बाग चतुर्भुजाकार उद्यान है। यह 30 एकड़ में फैले चारबाग शैली की मुगल उद्यान है। जो कुल 32 छोटे उद्यानों का एक विशिष्ट डिजाइन है।
हुमायूं का मकबरा भारत का 20वां विश्व धरोहर स्थल है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में निम्नलिखित मानदंडों के तहत मान्यता दी गई है –
मानदंड (ii) यह इस्लामी कब्रगाह वास्तुकला में बाद के विकास पर काफी प्रभाव डालता है, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में।
मानदंड (iv) यह भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण चरण, विशेष रूप से मुगल बगीचा समाधियों के विकास को दर्शाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
यूनेस्को ने वर्ष 1993 में इसे विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया।
हुमायूं का मकबरा साइट के संपत्ति का क्षेत्र 27.04 हेक्टेयर है, जिसमें बफर जोन 53.21 हेक्टेयर है।
हुमायूं का मकबरा न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि मुगल वास्तुकला और संस्कृति का एक जीवंत प्रतीक भी है।
हुमायूं का मकबरा न केवल अपनी वास्तुशिल्पीय सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि मुगल इतिहास और संस्कृति की एक झलक भी प्रस्तुत करता है।

कुतुब मीनार और उसके स्मारक (Qutb Minar and its Monuments)
कुतुब मीनार और उसके स्मारक – दिल्ली के दक्षिण में महरौली क्षेत्र में स्थित कुतुब मीनार और उसके स्मारक, जिसका केंद्र कुतुबमीनार गुलाम वंश के प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने सबसे पहले इस मीनार को विजय के प्रतीक के रूप में बनवाना शुरू किया था।
यह मीनार इंडो तुर्की शैली की इस्लामी वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है।
भारत के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर इस मीनार का नाम कुतुब मीनार पड़ा।
कुतुबमीनार का निर्माण 1193 ईं में कुतुतुद्दीन ऐबक ने प्रारंभ किया था, जो दिल्ली सल्तनत के संस्थापक थे। इस मीनार की केवल पहली मंजिला का निर्माण कुतुतुद्दीन ऐबक ने करवाया था।
इसकी दूसरी, तीसरी और चौथी मंजिल का निर्माण इल्तुतमिश ने पूरा करवाया इस मीनार की आखिरी पाँचवी मंजिल का निर्माण तुगलक वंश के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था।
इस मीनार की ऊँचाई 72.5 मीटर (237.5 फीट) लाल बलुआ पत्थर का मीनार है, जिसका आधार 14.32 मीटर (47.0 फीट) है, जो शीर्ष पर 2.75 मीटर (9.0 फीट) व्यास का हो जाता है।
इसमें 5 मंजिलें हैं, प्रत्येक की अलग-अलग डिजाइन और नक्काशी है। इसमें 379 सीढ़ियाँ हैं। यह मीनार ऊर्धावर से 65 सेमी से अधिक झुकी हुई है। इसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर संगमरमर के पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।
कुतुब मीनार का निर्माण मीनार के तल पर स्थित कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद (दिल्ली में निर्मित पहली और भारत में सबसे पुरानी मौजूदा मस्जिद में से एक) के बाद शुरू हुआ था। मजिस्द के आंगन 43 मीटर गुणा 33 मीटर था। पश्चिम में प्रार्थना कक्ष का माप 45 मीटर गुणा 12 मीटर है। मस्जिद आज खंडहर है इस्लामी स्थापत्य संरचनाओं में से इसके पुष्प रूपांकनो और ज्यामितीय पैटर्न में है।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के पश्चिम में इल्तुतमिश का मकबरा है।
इल्तुतमिश का मकबरा – कुतुब मीनार परिसर में स्थित यह मकबरा 1235 ई. में बनाया गया था। केन्द्रीय कक्ष 9 मीटर वर्ग का है और इसमें झुकी हुई सीढ़ियाँ है। आंतरिक पश्चिम दीवार में संगमरमर से सजा एक प्रार्थना स्थान है और इस्लामी वास्तुकला में हिंदू रूपांकनों का एक समृद्ध मिश्रण हैं।
अलाई मीनार (इच्छित मीनार या टॉवर का अधूरा टीला) – अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1300 ई. में अलाई मीनार को कुतुब मीनार से दोगुना ऊँचा बनाने के लिए इसे बनाया गया था परन्तु 82 फीट मंजिल पूरा होने के बाद इसका निर्माण को छोड़ दिया गया था आज इसके अवशेष मात्र स्थित है।
अलाई दरवाजा – कुतुब मीनार के दक्षिणी हिस्से से एक मुख्य प्रवेश द्वार है जिसे अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1311 ई. में बनवाया था। इस्लामी वास्तुशैली में निर्मित यह दरवाजा लाल पत्थर और सफेद संगमरमर की सजावट, जालीदार पत्थर से सजाया गया। यह दरवाजा 60 फीट ऊँचा है।
कुतुबमीनार अपने ज्यामितीय सजावटी नक्काषी, बालकनियों को मजबूत सहारा देने वाली पसलियों के साथ अरबी शिलालेखों के साथ-साथ अपनी शैलीगत निर्माण में भारतीय प्रतीकों के लिए विख्यात है।
महरौली का लौह स्तंभ – कुतुब मीनार परिसर में यह लौह स्तंभ चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य द्वारा उदयगिरी में विष्णु मंदिर के सामने 402 ई. के आसपास बनवाया गया था। यह स्तंभ 7.21 मीटर ऊँचा और 600 किलोग्राम से अधिक वजनी है। 10वीं शताब्दी में अनंगपाल द्वारा इसे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित किया गया।
महरौली पुरातत्व पार्क में कई अन्य पुरातात्विक हिंदू मंदिर के खंडहर, मूर्तियाँ, मकबरा, मजिस्द हैं जिनमें बलबन का मकबरा, जमाली कमाली मस्जिद, जफर महल, जहज महल, मोती मस्जिद हैं।
कुतुब मीनार और इसके स्मारक भारत का 21वां विश्व धरोहर स्थल है इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में निम्नलिखित मानदंडों के तहत मान्यता दी है –
मानदंड (ii) यह वास्तुकला, और सांस्कृतिक आंदोलनों के विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
मानदंड (iv) यह मानव इतिहास में महत्वपूर्ण चरण को दर्शाने वाली इमारत, वास्तुशिल्पीय का उत्कृष्ट उदाहरण।
कुतुब मीनार और इसके स्मारक को वर्ष 1993 में यूनेस्को ने भारत के विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया।
कुतुब मीनार परिसर, 10 हेक्टेयर (25 एकड़) में फैला है।
कुतुब मीनार परिसर के ऐतिहासिक धार्मिक इमारतें प्रारंभिक इस्लामी भारतीय वास्तुकला और कलात्मक उपलाब्धियों को उत्कृष्ट उदाहरण है।

लाल किला परिसर (Red Fort Complex)
लाल किला परिसर दिल्ली (पुरानी दिल्ली) में यमुना नदी के किनारे स्थित है और इसे जहाँगीर के पुत्र तथा पाँचवाँ मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया था।
लाल किला का निर्माण 1638 में शुरू हुआ था और इसका निर्माण 06 अप्रैल 1648 में पूरा हुआ और यह शाहजहानाबाद (आधुनिक पुरानी दिल्ली) की राजधानी के रूप में कार्य करता था।
शाहजहाँ ने मुगल राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने के फैसले के बाद 12 मई 1639 में लाल किले का निर्माण शुरू किया।
लाल किला का अर्थ है लाल रंग का किला, जो इसके लाल बलुआ पत्थर की दीवारों से लिया गया है। लाल रंग शक्ति, ताकत और राजशाही का प्रतीक है, जो मुगल साम्राज्य की शक्ति के अनुरूप है।
मूल रूप से लाल और सफेद रंग से निर्मित लाल किले का डिजाइन (वास्तुकार) उस्ताद अहमद लाहौरी द्वारा तैयार किया गया, जो ताजमहल के वास्तुकार भी थे।
यह परिसर मुगल साम्राज्य की शक्ति और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक था और लगभग 200 वर्षों तक मुगल सम्राटों का निवास रहा।
1857 में ब्रिटिश शासन के दौरान इसका उपयोग सैन्य छावनी के रूप में किया गया, और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद यह राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बन गया।
प्रत्येक 15 अगस्त को, भारत के प्रधानमंत्री लाहौरी गेट से राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और इसके प्राचीर से राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं।
लाल किला परिसर 254.67 एकड़ क्षेत्र में फैला है और 2.41 किलोमीटर लंबे लाल बलुआ पत्थर की दीवारें से घिरा हुआ है जिसकी ऊंचाई में 108 फीट है। यह किला अष्टकोणीय है।
यह इस्लामिक, फारसी, तिमुरिद और हिंदू वास्तुशिल्प शैलियों का अद्भुत मिश्रण दर्शाता है।
मुख्य संरचनाओं में शामिल हैं
लाहौरी गेट – लाल किले का मुख्य प्रवेश द्वार है। औरंगजेब द्वारा बार्बिकन जोड़ा गया। भारत की आजादी वर्ष 1947 से वर्तमान समय तक भारत क प्रधानमंत्री 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस को यहीं झंडा फहराते है और राष्ट्र को संबोधित करते हैं।
दिल्ली गेट – लाल किले के दक्षिण सार्वजनिक प्रवेश द्वार जिसमें दोनों ओर दो आदमकद पत्थर के हाथी एक दूसरे के सामने खड़े हैं।
दिवान-ए-आम सार्वजनिक दर्शक कक्ष, जिसमें 60 लाल बलुआ पत्थर के खंभे हैं और एक सपाट छत है।
दिवान-ए-खास निजी दर्शक कक्ष, जो सफेद संगमरमर से बना है और शाही चर्चाओं के लिए उपयोग किया जाता था।
खास महल – इनमें शाही शायन कक्ष, प्रार्थना कक्ष, एक बरामदा और एक मुसम्मन बुर्ज बने हैं। इस बुर्ज से बादशाह आम जन को दर्शन देते थे।
रंग महल रंगीन सजावट के साथ राजपरिवार के महिलाओं का निवास।
मुमताज महल अब पुरातत्व संग्रहालय के रूप में उपयोग किया जाता है।
हम्माम – सफेद संगमरमर के फर्श वाले तीन गुंबददार शाही स्नानघर।
मोती मस्जिद – हम्माम के पश्चिम में मोती मस्जिद है जिसे पर्ल मस्जिद भी कहा जाता है। 1659 में औरंगजेब द्वारा बनाई गई।
हीरा महल – बहादुर शाह द्वितीय द्वारा बनाया गया हीरा महल लाल किले के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक मंडप है।
नहर-ए-बेहीष्ट स्वर्ग की धारा, जो विभिन्न पविलियनों को जोड़ने वाली जल नहर थी, जो फारसी बगीचे की परंपरा को दर्शाती है।
इसके अलावा किले के अंदर एक पुरातात्विक संग्रहालय है, जो मुगल काल के वास्तुओं को प्रदर्शित करता है।
लाल किला परिसर भारत का 27वां विश्व धरोहर स्थल है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में निम्नलिखित मानदंडों के तहत मान्यता दी गई है –
मानदंड (ii) यह मुगल वास्तुकला का अंतिम उत्कर्ष स्थानीय परंपराओं पर आधरित, इस्लामी, फारसी और हिंदू परंपराओं का मिश्रण के साथ, तकनीकों, शिल्प कौशल में उत्कृष्ट जीवंत प्रमाण को दर्शाता है।
मानदंड (iii) लाल किले में विकसित भवन घटकों और उद्यान डिजाइन स्थापत्य शैली ने दिल्ली, आगरा के क्षेत्रों में बाद की इमारतें और उद्यानों को दृढ़ता से प्रभावित किया।
मानदंड (vi) लाल किला शाहजहाँ के शासनकाल से ही शक्ति का प्रतीक रहा जिसका भू सांस्कृतिक क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।
यूनेस्को ने वर्ष 2007 में इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया है।
लाल किला परिसर साइट के संपत्ति का क्षेत्र 49.1815 हेक्टेयर है, जिसमें बफर जोन 43.4309 हेक्टेयर है।
लाल किला न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत का एक जीवित प्रतीक है। लाल किला परिसर इंडो इस्लामिक और मुगल स्थापत्य शैली का एक अद्वितीय उदाहरण है।
चंडीगढ़ के विश्व विरासत (धरोहर) स्थल UNESCO World Heritage Sites in Chandigarh
चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स Chandigarh Capitol Complex (ले कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य, आधुनिक आंदोलन में एक उत्कृष्ट योगदान)
चंडीगढ़ कैपिटल कॉम्पलेक्स (ली कोर्बुसिएर का वास्तुशिल्प कार्य, आधुनिक आंदोलन में एक उत्कृष्ट योगदान) The Architectural Work of Le Corbusier, an Outstanding Contribution to the Modern Movement
चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स, जिसे ले कोर्बुज़िए द्वारा डिज़ाइन किया गया था, 2016 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
यह परिसर विधान सभा, सचिवालय और उच्च न्यायालय जैसे मुख्य सरकारी भवनों को समेटे हुए है, जो आधुनिक वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
परिसर में ओपन हैंड मॉन्यूमेंट जैसे प्रतीकात्मक तत्व भी शामिल हैं, जो शांति और एकता का प्रतीक हैं।
यह भारत की आधुनिकता की ओर बढ़ते कदमों को दर्शाता है और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।

चण्डीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स एक महत्वपूर्ण वास्तुशिल्पीय स्थल है, जो शहर के सेक्टर 1 में स्थित है और भारत की सरकार के लिए एक केंद्रीय भूमिका निभाता है। इसे प्रसिद्ध वास्तुकार ले कोर्बुज़िए ने डिज़ाइन किया था, और यह आधुनिक वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।
इस परिसर में विधान सभा (पैलेस ऑफ असेंबली), सचिवालय (सीक्रेटेरिएट बिल्डिंग), और उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) जैसे मुख्य भवन शामिल हैं, जो क्रमशः विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शाखाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा, इसमें ओपन हैंड मॉन्यूमेंट जैसे प्रतीकात्मक तत्व भी हैं, जो शांति और एकता का प्रतीक हैं।
2016 में, इसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी, क्योंकि यह ले कोर्बुज़िए के कार्यों का हिस्सा है, जो आधुनिक आंदोलन में उनके योगदान को दर्शाते हैं। यह परिसर न केवल कार्यात्मक है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है, जो पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
चण्डीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स एक वास्तुशिल्पीय और ऐतिहासिक स्थल है, जो आधुनिक भारत की पहचान और ले कोर्बुज़िए की वास्तुशिल्पीय दृष्टि को दर्शाता है। यह परिसर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है और भारत की आधुनिकता की ओर बढ़ते कदमों का प्रतीक है। नीचे इस परिसर के इतिहास, डिज़ाइन, महत्व और विशेषताओं का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें इसके सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
भारत की स्वतंत्रता के बाद, 1947 में हुए विभाजन के कारण पंजाब का लाहौर पाकिस्तान में चला गया, जिससे पंजाब को एक नई राजधानी की आवश्यकता पड़ी। 1950 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ले कोर्बुज़िए को चंडीगढ़ शहर डिज़ाइन करने के लिए आमंत्रित किया, जो पंजाब की नई राजधानी बनने वाला था। बाद में, यह पंजाब और हरियाणा दोनों की संयुक्त राजधानी बन गया। कैपिटल कॉम्प्लेक्स को शहर का हृदय माना गया, जहां सरकार के मुख्य कार्य संचालित होते हैं।
ले कोर्बुज़िए, जो 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली वास्तुकारों में से एक थे, ने शहर की योजना बनाई और इस परिसर को डिज़ाइन किया। उन्होंने अपने चचेरे भाई पियरे जेनरेट और अन्य वास्तुकारों के साथ मिलकर काम किया, और शहर को ग्रिड पैटर्न में डिवाइड किया, जिसमें सेक्टरों में बांटा गया, प्रत्येक सेक्टर में अपनी सुविधाएं थीं। कैपिटल कॉम्प्लेक्स को सरकार और राज्य की शक्ति का प्रतीक बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
कैपिटल कॉम्प्लेक्स में तीन मुख्य भवन और कई प्रतीकात्मक तत्व शामिल हैं, जो आधुनिक वास्तुकला के सिद्धांतों पर आधारित हैं। ये भवन और तत्व निम्नलिखित हैं –
पैलेस ऑफ असेंबली (विधान भवन) – यह वह स्थान है जहां विधायी सभा की बैठकें होती हैं। इसका डिज़ाइन गोलाकार है, जिसमें एक बड़ी कंक्रीट की छत है, जो 12 खंभों पर टिकी हुई है। यह भवन लोकतांत्रिक प्रक्रिया का प्रतीक है, और इसकी छत का डिज़ाइन ध्वनि और वेंटिलेशन को प्रबंधित करने के लिए बनाया गया है।
सीक्रेटेरिएट बिल्डिंग (निर्माण भवन) – यह एक लंबी, आयताकार संरचना है, जिसमें कई मंजिलें हैं। यह प्रशासनिक कार्यालयों को समेटे हुए है और कार्यक्षमता और दक्षता पर जोर देता है।
हाई कोर्ट (उच्च न्यायालय) – यह न्यायपालिका का केंद्र है, जिसका डिज़ाइन क्षैतिज है और पारदर्शिता और पहुंच को बढ़ावा देता है। इसमें कई कोर्ट और कार्यालय हैं, और इसकी खिड़कियों पर सनशेड्स (ब्रिज-सोलेइल) लगे हैं, जो गर्मी को कम करने में मदद करते हैं।
इसके अलावा, परिसर में चार मॉन्यूमेंट और एक झील शामिल हैं –
ओपन हैंड मॉन्यूमेंट – यह शांति और एकता का प्रतीक है, जिसे ले कोर्बुज़िए ने डिज़ाइन किया था। यह 26 मीटर ऊंची संरचना है, जो उनके कई कार्यों में इस्तेमाल किए गए प्रतीक का हिस्सा है।
ज्यामितीय पहाड़ी (ज्योमेट्रिक हिल) – यह एक मानव-निर्मित पहाड़ी है, जिसमें ज्यामितीय आकार हैं, जो शायद शहर की लेआउट या कुछ अमूर्त अवधारणा का प्रतिनिधित्व करते हैं।
टावर ऑफ शैडो – यह एक प्रयोगात्मक संरचना है, जिसे इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि किसी भी कोण से सीधा सूरज की रोशनी इसमें न घुस सके। यह ले कोर्बुज़िए की प्रकाश और छाया के प्रति रुचि को दर्शाता है।
मैरटर्स मॉन्यूमेंट – यह उन सैनिकों को समर्पित है, जिन्होंने देश की सेवा में प्राण न्योछावर किए। यह एक सादा और गंभीर संरचना है।
झील – परिसर में एक झील है, जो सौंदर्यशास्त्र को बढ़ाती है और शांत वातावरण प्रदान करती है।
कैपिटल कॉम्प्लेक्स का क्षेत्रफल लगभग 100 एकड़ (लगभग 40.47 हेक्टेयर) माना जाता है, हालांकि कुछ स्रोतों में इसे 66 हेक्टेयर (लगभग 163 एकड़) बताया गया है, जो संभवतः बफर जोन को शामिल करता है। यह विसंगति स्रोतों के बीच भिन्नता के कारण हो सकती है, लेकिन आम तौर पर इसे 100 एकड़ के आसपास माना जाता है।
चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स ष्ले कोर्बुज़िए का वास्तुशिल्पीय कार्य, आधुनिक आंदोलन में एक उत्कृष्ट योगदानष् के रूप में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह 2016 में 17 साइटों की एक श्रृंखला के हिस्से के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, जो सात देशों में फैली हुई हैं और ले कोर्बुज़िए के वैश्विक प्रभाव को दर्शाती हैं।
इसकी मान्यता के पीछे के मानदंड इसकी मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण का प्रतिनिधित्व (आधुनिक वास्तुकला का विकास) और इसके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के कारण हैं।
यह परिसर भारत की आधुनिकता की ओर बढ़ते कदमों को दर्शाता है और वास्तुशिल्पीय नवाचारों के लिए जाना जाता है, जैसे सनस्क्रीन, डबल-स्किन्ड छतें, और परावर्तक पूल, जो प्राकृतिक वायु-शीतलन और ऊर्जा संरक्षण के लिए उपयोग किए गए हैं।
मॉड्यूलर सिस्टम – ले कोर्बुज़िए ने मॉड्यूलर, एक मानव पैमाने पर आधारित हार्माेनिक सिस्टम का उपयोग किया, जो बाहरी स्थानों के लिए इस्तेमाल किया गया और एक उठे हुए हाथ वाले व्यक्ति की सिल्हूट को दर्शाता है।
टावर ऑफ शैडो- यह एक ऐसी संरचना है, जो किसी भी कोण से सीधा सूरज की रोशनी को अवरुद्ध करती है, जो वास्तुशिल्पीय नवाचार का एक उदाहरण है।
ओपन हैंड मॉन्यूमेंट – यह शांति और एकता का एक अनूठा प्रतीक है, जो चंडीगढ़ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
कैपिटल कॉम्प्लेक्स का निर्माण 1953 में शुरू हुआ और 1963 में पूरा हुआ। ले कोर्बुज़िए, जो 1965 में निधन हो गए, ने परियोजना के बहुत से हिस्सों को पूरा देखा, और उनके सहयोगियों ने उनके डिज़ाइनों के आधार पर शेष कार्य को समाप्त किया।
यह है कि टावर ऑफ शैडो जैसी संरचना, जो किसी भी कोण से सीधा सूरज की रोशनी को अवरुद्ध करती है, ले कोर्बुज़िए की वास्तुशिल्पीय रचनात्मकता का एक अनूठा उदाहरण है, जो भारतीय जलवायु के लिए अनुकूलित है। इसके अलावा, ओपन हैंड मॉन्यूमेंट का उपयोग अन्य स्थानों पर भी प्रतीक के रूप में किया गया है, जो इसके वैश्विक महत्व को दर्शाता है।
चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स (ले कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य, आधुनिक आंदोलन में एक उत्कृष्ट योगदान) भारत का 34वां विश्व धरोहर स्थल है जिसे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में निम्नलिखित मानदंडों के तहत मान्यता दी गई है –
मानदंड (i) – ले कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य मानव रचनात्मक प्रतिभा की उत्कृष्ट कृति का प्रतिनिधित्व करता है, जो 20वीं शताब्दी की कुछ मौलिक वास्तुशिल्प और सामाजिक चुनौतियों के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
मानदंड (ii) – ले कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य, आधुनिक आंदोलन के जन्म और विकास के संबंध में विश्वव्यापी स्तर पर मानवीय मूल्यों के अभूतपूर्व आदान-प्रदान को दर्शाता है।
मानदंड (vi) – यह आधुनिक आंदोलन के विचारों से सीधे जुड़ा हुआ है, जो 20वीं सदी में असाधारण सार्वभौमिक महत्व रखता है, जो ले कोर्बुसिए के विचारों को शाक्तिशाली रूप से व्यक्त करता है।
चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स (ले कोर्बुसिए का वास्तुशिल्प कार्य, आधुनिक आंदोलन में एक उत्कृष्ट योगदान) साइट के संपत्ति का क्षेत्र 98.4838 हेक्टेयर है, जिसमें बफर जोन 1,409.384 हेक्टेयर है।
चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स आधुनिक वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है, जो ले कोर्बुज़िए की दृष्टि और भारत की आधुनिकता की ओर बढ़ते कदमों को दर्शाता है। इसकी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता इसके वैश्विक महत्व को रेखांकित करती है, और यह पर्यटकों और वास्तुशिल्प प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण है।