क्या आपको पता है भारत के किस राज्य में सबसे अधिक विश्व धरोहर स्थल हैं?
भारत में महाराष्ट्र राज्य में सबसे अधिक 5 विश्व धरोहर (विरासत) स्थल हैें, तथा पश्चिम घाट (संयुक्त रूप से 06 राज्यों के भाग गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल) को शामिल करते हुए कुल 6 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।
आईये जानते हैं महाराष्ट्र में कौन-कौन से विश्व विरासत स्थल हैं, विस्तार से…
अजंता की गुफाएँ
अजन्ता की गुफाएँ (Ajanta Caves) महाराष्ट्र में औरंगाबाद से 107 किलोमीटर की दूरी पर वाघोरा नदी के किनारे स्थित सह्याद्रि पर्वतमाला (पश्चिम घाट) में 30 रॉक कट गुफाओं की एक श्रृंखला के रूप में स्थित है।
ये गुफाएं बौद्ध धर्म और प्राचीन भारतीय कला व स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
अजंता गुफाओं का नाम लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजंता नामक गाँव के नाम पर पड़ा है।
गुफा की खोज 1819 में जॉन स्मिथ की दल ने बाघों की शिकार करते समय किया था। 30वां गुफा की खोज साल 1956 में की गई थी।
अजंता की गुफाएँ लगभग 76 मीटर ऊँची चट्टान की सतह पर घोड़े की नाल के आकार के मोड़ पर खोदी गई हैं।
इन गुफाओं में 5 (गुफा संख्या 9, 10, 19, 26 और 29) चैत्यगृह या अराधना स्थल शेष 25 गुफाएँ विहार (मठ) या निवास स्थान है।
अजंता की गुफाएँ अपनी चित्रकारी, भित्तिचित्रों, नक्काशी के लिए विख्यात है।
गुफा 26 में बुद्ध के महापरिनिर्वाण को दर्शाया गया है, जो पुनर्जन्म के चक्र से उनकी अंतिम मुक्ति है।
अजंता गुफाएँ, बौद्ध गुफाएँ हैं जो दो चरणों में बनाई गई हैं।
पहला चरण – सातवाहन राजवंश (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) के संरक्षण में सातवाहन काल का जिनमें आलंकारिक मूर्तिकला का अभाव था इसके बजाये स्तूप पर जोर दिया गया था।
दूसरा चरण – वाकाटक राजवंश की (चौथी से पांचवी शताब्दी ई.) के सम्राट हरिषेण के शासनकाल के दौरान वाकाटक काल की गुफाएँ। गुफा संख्या 16 एवं 17 गुप्तकालीन है।
अजंता की गुफाओं की जानकारी चीनी यात्री फाह्यान (फाहियान) और ह्वेन त्सांग (हेनत्सांग) की यात्रा वृतांतों में है।
गुफाओं में बुद्ध की उपदेश देने वाली मुद्रा में खड़ी, बैठी और लेटी अवस्था में बुद्ध की मूर्तियों हैं। गुफाओं की दीवारों और छतों पर भित्ती चित्रों में बुद्ध की जीवन और जातक कहानियों से जुड़े दृश्य बनाए गए हैं।
गुफाएँ भारत में बौद्ध धर्म की कहानी, लोगों, वनस्पति और जीव जंतुओं के माध्यम से चित्रित तस्वीरों से तत्कालीन समय की सामाजिक-सांकृतिक जीवन की झलक भी मिलती है।
ब्राम्ही लिपि में 90 से अधिक शिलालेखों में दानदाताओं के सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश की जानकारी मिलती है।
अजंता की गुफाएँ प्राचीन बौद्ध रॉक-कट वास्तुकला, चित्रकला, मूर्तिकला की अद्वितीय कलात्मक उपलब्धि है जो तत्कालीन समय की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक इतिहास का महत्वपूर्ण नायाब प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
यूनेस्को ने इन गुफाओं को निम्नलिखित मानदंडों पर मान्यता दी है
मानदंड (i) अद्वितीय कला उपलब्धि।
मानदंड (ii) भारत और जावा की कला पर प्रभाव
मानदंड (iii) भारतीय कला के विकास और बौद्ध समुदाय की भूमिका का असाधरण साक्ष्य
मानदंड (vi) बौद्ध धर्म के इतिहास से संबंधित सीधा संबंध
वर्ष 1983 में अंजता की गुफाओं को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थलों में सांस्कृतिक सूची में शामिल किया है।
यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल होने वाले स्थलों में अजंता की गुफाए भारत के पहले विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। अंजता की गुफाएं की संपत्ति का क्षेत्र 8,242 हेक्टेयर है, जिसमें बफर जोन 7,68,676 हेक्टेयर है।
अजंता की गुफाएं न केवल बौद्ध धर्म और प्राचीन भारतीय कला का एक जीवित साक्ष्य हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अनुभव भी प्रदान करती हैं। ये गुफाएं भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक जीवंत प्रमाण है।
एलोरा की गुफाएँ
एलोरा की गुफाएँ (Ellora Caves) महाराष्ट्र में औरंगाबाद से लगभग 29 किलोमीटर और मुंबई से 300 किलोमीटर तथा अजंता की गुफाओं से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
एलोरा की गुफाएँ (वेरूल लेनि) चरणाद्री पहाड़ियों में बेसाल्ट चट्टानों को काटकर बनाई गई है जिनमें लगभग 100 से अधिक गुफाएं है।
एलोरा बौद्ध, हिंदू और जैन धर्मों का प्रतिनिधित्व करने वाली गुफाएँ हैं जो अपनी वास्तुकला और इन धर्मों की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। एलोरा की 34 गुफाएँ प्रसिद्ध है जोकि दर्शाकों के लिए खुला है। इनमें 12 गुफाएँ बौद्ध (गुफा संख्या 01 से 12) 17 गुफाएँ हिंदू (ब्राम्हाणीय) (गुफा संख्या 13 से 29), और 5 गुफाएँ जैन (गुफा संख्या 30 से 34) गुफाएं है जो इन तीनों धर्मों को समर्पित हैं। एक ही परिसर में मौजूद यह गुफाएँ पारिस्परिक सहिष्णुता और सह अस्तित्व का प्रमाण है।
एलोरा की गुफाएं 02 किलोमीटर की लंबाई में अर्धवृत्ताकार में फैले हुए दक्षिण की दाहिनी ओर बौद्ध समूह, मध्य में हिन्दू समूह और उत्तर की बांयी ओर जैन समूह है।
इनका निर्माण 6वीं से 10वीं शताब्दी के मध्य दक्कन क्षेत्र पर शासन करने वाले विभिन्न राजवंशों द्वारा बनाई गई थी।
पहला निर्माण हिंदू काल (550 से 600 ई.) एलोरा की प्रारंभिक गुफाएँ त्रिकुटक और वाकाटक राजवंशों के दौरान गुफा 29 कलचुरी राजवंश द्वारा बनाई गई। गुफा 14, 15 और 16 राष्ट्रकूट काल के दौरान निर्मित है।
गुफा 14 (रावण की खाई) शिव को समर्पित इस गुफा में नटराज, अर्धनारीश्वर और भैरव की मूर्तियाँ है।
गुफा 15 (दशावतार मंदिर) इसमें विष्णु के दस अवतारों का नक्काशी का चित्रण है।
गुफा 16 (कैलाश मंदिर) एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया जिसकी लंबाई 276 फीट, चौड़ाई 154 फीट और ऊँचाई 90 फीट है।
कैलाश मंदिर दुनिया की सबसे बड़ी अखंड संरचना है जो एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है जिसे मोनोलिथिक (विशालकाय एकल पत्थर) संरचना कहा जाता है।
इस मंदिर को पूरी तरह से विशाल पहाड़ को ऊपर से नीचे काट कर बनाया गया है। इस मंदिर को बनाने में 18 वर्ष का समय लगा था।
ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण लगभग 2,00,000 टन चट्टान काटकर (खुदाई) करके किया गया है।
इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम ने करवाया था।
कैलाश मंदिर दो मंजिला है जिसके गर्भ गृह में बड़ा सा शिवलिंग है, परिक्रमा के लिए स्थान, एक प्रवेशद्वार और सभाकक्ष है। केन्द्रीय मंदिर के सामने बरामदे पर एक नंदी की मूर्ति विराजमान है। खंभे वाले गलियारे से घिरा और मंदिर के बाहर द्वार पर दोनों साईड पर बड़े आकार के के हाथी और स्तंभ है दाहिने ओर कीर्ति स्तंभ है।
वर्तमान भारत की 20 रूपये वाले नोट पर कैलाश मंदिर मुद्रित है।
कैलाश मंदिर का बाहरी एक भाग रामायण ओर दूसरी भाग महाभारत की घटनाओं को दर्शाता है। गजलक्ष्मी शिव पार्वती विवाह, शिव के अंधकासूर वध तथा शिव के विभिन्न स्वरूप वाली मूर्तियाँ हैं।
गुफा 21 (रामेश्वर मंदिर) इसमें विष्णु के वराह, नरसिंह और वामन अवतारों का चित्रण है। गुफा 21 भगवान शिव को समर्पित है। 07वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर की रचना, ऊँचे चबूतरे पर की गई है। खुला प्रांगण, मध्य भाग में नंदी मंडप तथा प्रांगण के आसपास में शिल्पयुक्त कक्ष है तथा गर्भगृह में शिवालिंग विराजमान है। विशाल नंदी मंडप मूर्तियों से अलंकृत है। शिल्पयुक्त कोठरियाँ में हिंदू धर्म के शैव एवं शाक्त संप्रदायों की मूर्तियाँ है।
गुफा 22 (नीलकंठ) इसमें नंदी मंदिर, गणेश मंदिर, तीन देवियों और चतुर्भुज विष्णु की मूर्तियाँ हैं।
गुफा 25 (कुंभरवाड़ा) यह सूर्य देव को समर्पित मंदिर है।
गुफा 27 (मिल्कमेड) इसमें लक्ष्मी, विष्णु, शिव, ब्रम्हा, वारह, महिषासुरमर्मिनी की नक्काशी है।
गुफा 29 (धूमर लेना) इसमें शिव के विभिन्न रूपों महेश्वर, गंगाधर, अंधकासुर वध की मूर्तियाँ हैं
दूसरा बौद्ध चरण (600 से 730 ई.) के मध्य बौद्ध गुफाएँ चालुक्य वंश द्वारा बनाई गई थी।
बौद्ध गुफाएँ स्तंभयुक्त मेहराबों वाले बड़े हॉल, भिक्षुओं के लिए कक्ष, कमल के फुल, बुद्ध की जीवन, बोधिसत्व की छवियां और जानवरों की आकृतियाँ से सुशोभित हैं।
12 बौद्ध गुफाओं में 1 से 9 गुफाएँ विहार (मठ) है।
गुफा 5 – एक अनोखा हॉल, जिसमें बीच में दो समानांतार बेंच और पीछे बुद्ध की मूर्ति है।
गुफा 10 (विश्वकर्मा गुफा) बौद्ध चैत्य प्रार्थना कक्ष यहाँ की बुद्ध की 15 फीट उपदेश मुद्रा में आराम करती हुई मुर्ति है। गुफा 10 बौद्ध गुफाओं में एकमात्र द्विमंजिला चैत्यविहार है। इसका निर्माण 07वीं शताब्दी में किया गया है। गुफा में खुला प्रांगण, कोठरियाँ से युक्त बरामदा, सभागृह आदि है।
गुफा 11 और 12 गुफाएँ तीन मंजिला महायान मठ की गुफाएँ है।
तीसरा जैन चरण (730 से 950 ई.) जैन गुफाएँ राष्ट्रकूट तथा यादव वंश द्वारा बनाई गई थी।
जैन गुफाएँ दिगंबर सम्प्रदाय से संबंधित हैं। ये गुफाएँ बौद्ध और हिंदू गुफाओं से छोटी है और महिन नक्काशी वाली हैं।
गुफा 30 (छोटा कैलाश) कैलाश मंदिर की नक्काशी से समानता के कारण से इसे छोटा कैलाश नाम रखा गया है।
गुफा 32 (इन्द्र का सभा) जटिल नक्काशी वाली इसे जैन गुफाओं में उत्कृष्ट माना जाता है। यह दो मंजिला है इसमें विभिन्न तीर्थंकरों की ध्यान मुद्रा तथा उपदेश मुद्रा में मूर्तियाँ है।
गुफा 33 (जगन्नाथ सभा) एलोरा में दूसरी सबसे बड़ी जैन गुफा है। इसमें जैन धर्म के अंतिम दो तीर्थंकर पार्श्वनाथ और महावीर को समर्पित मूर्तियाँ है।
गुफा 32 के शिलालेख को अभी तक पढ़ा नहीं गया है। पार्श्वनाथ जिन की छवि और सिंह पर बैठी अंबिका देवी की मूर्तियाँ की नक्काशी है।
यह दुनिया के सबसे बड़े रॉक-कट हिंदू मंदिर गुफा परिसरों में से एक है।
एलोरा की गुफायँ अपनी अलौकिक मूर्तियों के कारण विश्व विख्यात है। गुफाएँ उस काल की धार्मिक सद्भावना और समकालिकता का प्रतीक है।
यूनेस्को ने इन गुफाओं को निम्नलिखित मानदंडों पर मान्यता दी है
मानदंड (i) अद्वितीय कला उपलब्धि।
मानदंड (iii) प्राचीन भारतीय सभ्यता का साक्ष्य
मानदंड (vi) बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म के इतिहास से सीधा संबंध
जो इसके असाधारण प्राकृतिक सुंदरता, जैव विविधता, और सांस्कृतिक/धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं।
यूनेस्को ने 1983 में इसे सांस्कृतिक स्थल के रूप में विश्व विरासत स्थल घोषित किया है।
एलोरा की गुफाएं न केवल प्राचीन भारतीय कला और वास्तुकला का एक जीवित साक्ष्य हैं, बल्कि आगांतुकों के लिए एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अनुभव भी प्रदान करती है। इनकी नक्काशी और मूर्तिकला, जो विभिन्न धर्मों के मानने वालों के साथ किसी भी इतिहास प्रेमी के लिए एक यादगार पल है।
एलीफेंटा गुफाएं
एलीफेंटा गुफाएँ (Elephanta Caves) महाराष्ट्र में मुम्बई बंदरगाह में एलीफेंटा द्वीप, या घारापुरी (शाब्दिक रूप से गुफाओं का शहर/गाँव) में मुंबई से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इसमें गुफाओं के दो समूह हैं- पहला, पश्चिमी पहाड़ी (कैनन पहाड़ी) पर 05 हिंदू गुफाओं का एक बड़ा समूह है, दूसरा पूर्वी पहाड़ी (स्तूप पहाड़ी) 02 बौद्ध गुफाओं का एक छोटा समूह है। दोनो पहाड़ियाँ पैदल मार्ग से जुड़ी हुई है।
एलीफेंटा गुफाएँ में बेसाल्ट चट्टान को काटकर बनाई गई पत्थर की मूर्तियाँ हैं। जिसका कुल क्षेत्रफल 60 हजार वर्ग फीट है।
यह गुफाएँ 05वीं और 07 वीं शताब्दी के बीच की है। बादामी राजवंश के चालुक्यों के राजा पुलकेशिन द्वितीय तथा कलचुरी राजवंश के राजा कृष्णराज गुफाओं के महत्वपूर्ण भागों का निर्माण कराने का श्रेय दिया जाता है। इसके अलावा कोंकण – मौर्य, त्रिकुटक, सिलाहर, राष्ट्रकूट, देवगिरी के यादव और गुजरात के शाही राजवंश के अधीन इस क्षेत्र में शासन किया गया।
इस द्वीप के दक्षिण की ओर घारापुरी एक छोटा सा गाँव है जिसके नाम पर इस द्वीप को घारापुरी के नाम से जाना जाता था।
पूर्तिगालियों के द्वारा इस द्वीप पर एक विशाल पत्थर की हाथी की मूर्ति मिलने के इसे एलिफेंटा का नाम दिया था। वर्तमान में हार्थी की मूर्ति मुंबई के जीजामाता गार्डन में रखी गई है।
यह द्वीप 2.4 किलोमीटर लंबा है और दो पहाड़ियाँ हैं जो लगभग 150 मीटर ऊँची है।
गुफा 1 (ग्रैंड गुफा या महान गुफा) यह गुफा 130 फीट गहरी है। जिसमें प्रवेश के कई प्रवेश द्वार है। उत्तर की ओर मुख्य प्रवेश द्वारा अन्य प्रवेश द्वार की तुलना में छोटा है। 120 सीढ़ियाँ की चढ़ाई पर महान गुफा का प्रवेश द्वार है। मुख्य प्रवेश द्वार पर चार खंभे हैं।
शिव की महिमा को दर्शाने वाले नक्काशी और विभिन्न रूपों और क्रियाओं के रूप में प्रतिष्ठित है।
उत्तर प्रवेश द्वार के सामने सदाशिव त्रिमूर्ति या महेशमूर्ति 23 फीट ऊँची है। दायाँ चेहरा ब्रम्हा (सृष्टिकर्ता सृजनकर्ता) मध्य का चेहरा गहरी ध्यान मुद्रा में विष्णु (संरक्षक) का बायाँ चेहरा शिव (विनाश या मोक्ष के देव) का है।
सदाशि त्रिमूर्ति की बांयी ओर अर्धनारीश्वर 16 फीट ऊँची (शिव और शक्ति का उभयलिंगी रूप) तथा दांयी ओर गंगाधर 17 फीट ऊँची (शिव के गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया हुआ) गुफा के पश्चिमी द्वार और लिंग मंदिर के समीप 11 फीट ऊँची अंधकासुर वध (अंधका का वध) लिंग मंदिर के पास कल्याणसुंदरम (शिव और पार्वती का विवाह) उत्तरी प्रवेश द्वार के पास योगीश्वर (आदियोग ध्यानमग्न शिव) 11 फीट नटराज (नृत्य करते शिव नृत्य के देवता) पूर्वी प्रवेश द्वार रावणानुग्रह (रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने) मुख्य हॉल के दाहिने ओर मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है। लिंग मंदिर के सामने नंदी विद्यमान है।
गुफा 2 से 5 – कैनन पहाड़ी में महान गुफा के दक्षिण पूर्व में गुफा 2 है। यह गुफा अधूरी और क्षतिग्रस्त अवस्था में। गुफा 3 में 6 स्तंभों वाला एक पोर्टिको है। गुफा 4 और 5 क्षतिग्रस्त इन गुफाओं में शिव मंदिर होने का प्रमाण मौजूद है।
गुफाएँ 6 और 7 – स्तूप पहाड़ी में गुफा 6 सीताबाई की मंदिर गुफा के नाम से जाना जाता है। गुफा के बरामदे में 4 खंभे 01 केन्द्रीय मंदिर और 03 कक्ष है।
गुफा 6 को पुर्तगालियों द्वारा एक ईसाई चर्च में बदल दिया गया था।
गुफा 7 में एक छोटे से बरामदे और संभवतः 3 कक्ष थे जिसमें भी कुछ नहीं बचा है। गुफा 7 के आगे सूखा तालाब या बौद्ध कुंड है जिसके समीप एक विशाल टीला है जिसे स्तूप के रूप में जाना जाता है।
यूनेस्को ने इन गुफाओं को निम्नलिखित मानदंडों पर मान्यता दी है
मानदंड (i) मानव रचनात्मक प्रतिभा का एक उत्कृष्ट उदाहरण।
मानदंड (iii) एक सांस्कृतिक परंपरा का अद्वितीय साक्ष्य।
मानदंड (vi) हिंदू और बौद्ध धर्म के इतिहास से सीधा संबंध
वर्ष 1987 में एलीफेटा की गुफाओं को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थलों में सांस्कृतिक सूची में शामिल किया गया।
यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल होने वाले स्थलों में एलोरा की गुफाए भारत के पहले विश्व धरोहर स्थलों में से एक है।
ऐलीफेंटा की गुफा भगवान शिव को समर्पित प्राचीन भारतीय कलात्मक के शिखर का प्रतीक, चट्टान-कट कला और भारतीय वास्तुकला की प्रभावशाली भव्यता के साथ शैल वास्तुकला के इतिहास में सबसे शानदार उपलब्धि है। सदाशिव और अन्य विशाल मूर्तियाँ अद्वितीय कलात्मक सृजन के उदाहरण है।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस)
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई (Chhatrapati Shivaji Terminus (formerly Victoria Terminus)) का एक ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन है।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (विक्टोरिया टर्मिनस) को ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस ने एक्सेल हैग के साथ इंडो सरसेनिक विक्टोरियन गोथिक शैली में डिजाइन किया था।
इसका निर्माण 1878 से 1887 के मध्य पुरा हुआ।
इसकी डिजाइन में एक सी-आकार की योजना है, जिसमें एक केन्द्रीय गुंबद और दो विंग्स शामिल हैं, जो 330 फीट लंबे प्लेटफॉर्म और 1200 फीट लंबे ट्रेन शेड से जुड़े हैं। गुबंद को बिना केन्द्र के डोवेटेल्ड रिब्स से बनाया गया है, जो तकनीकी नवाचार का उदाहरण है।
इसका निर्माण में बलुआ पत्थर, चूना पत्थर और सजावटी तत्वों के लिए इतालवी संगमरमर का उपयोग किया गया है। आंतरिक सजावट में बड़े कमरे, ऊँची छतें, और उत्तर विंग के ग्राउंड फ्लोर पर स्टार चैंबर, जो इतालवी संगमरमर और चमकीले भारतीय नीले पत्थर से सजाया गया है।
बाहरी विशेषतओं में पत्थरों से बने इसके गुंबद, बुर्ज, नुकीले मेहराब, सजावटी रेलिंग, लकड़ी की नक्काशी, टाइलें, टिकट ऑफिस के लिए लोहे और पीलत की रेलिंग और ग्रिल्स और भव्य सीढ़ियों के लिए बालुस्ट्रेड, जानवारों की आकृतियों उकेरे हुए खंभे वास्तुकला का एक नायब उदाहरण है।
यह इमारत 7.04 एकड़ में फैला हुआ है। इसके 222.91 एकड़ बफर जोन द्वारा संरक्षित हैं। इसके निर्माण में कुल लागत 16,14,000/- आया था।
मार्च 1996 में विक्टोरिया टर्मिनस (VT) का नाम बदलकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) कर दिया गया।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मध्य रेलवे के मुख्यालय है। यह भारत के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में से एक है। प्रतिदिन 30 लाख से अधिक यात्री यहाँ आते हैं।
जो कुल 18 प्लेटफार्मों के साथ लंबी दूरी और मुंबई उपनगरीय रेलवे को भी सेवा प्रदान करता है।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध की रेलवे वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है जो विक्टोरियन इटैलियन गोथिक रिवाइल वास्तुकला और भारतीय पारंपिक इमारतों के प्रभावों के लिए प्रसिद्ध है।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को 2004 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया था, जो इसके वास्तुशिल्प और सांस्कृतिक महत्व को दर्शता है। इसे निम्नलिखित मानंदडों के तहत मान्यता दी गई है –
मानदंड (ii) यह यूरोपीय और भारतीय वास्तुशिल्प शैलियों के बीच महत्वपूर्ण आदान-प्रदान को दर्शाता है।
मानदंड (iv) यह 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में रेलवे वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण।
वर्ष 2004 में यूनेस्को ने भारत के विश्व धरोहर की सूची में शमिल किया है। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस साइट के संपत्ति का क्षेत्र 2.85 हेक्टेयर है, जिसमें बफर जोन 90.21 हेक्टेयर है।
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस यह स्टेशन न केवल एक परिवहन केन्द्र है, बल्कि मुंबई और भारत की वास्तुशिल्पीय और सांस्कृतिक विरासत का एक स्मारक है। यह मुंबई की गतिशील आत्मा का प्रतीक है, जहाँ विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग एकत्र होते हैं, जो इसे एक सांस्कृतिक स्थल के साथ एक जीवंत ऐतिहासिक स्थल बनाए रखते हैं।
मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको एन्सेंबल (समूह)
मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको एन्सेंबल (समूह) Victorian Gothic and Art Deco Ensembles of Mumbai – यह विक्टोरियन गोथिक इमारतों और आर्ट डेको इमारतों का एक संग्रह है। ये इमारातें ओवल मैदान के आसपास स्थित एस्प्लेनेड के नाम से जाना जाता है। यह 66.34 हेक्टेयर में फैली 94 इमारतों का संग्रह है।
यह ओवल मैदान और मरीन ड्राइव के आसपास स्थित है।
जिनकी स्थापत्य शैलियों मुख्य रूप से विक्टोरियन गोथिक, आर्ट डेको तथा नियोक्लासिकल (नवशास्त्रीय), इंडो सरसेनिक (भारत-अरबी) में निर्मित है। ओवल मैदान के पूर्व में स्थित 19वीं सदी की विक्टोरियन गोथिक इमारतों में मुख्य रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट, मुंबई विश्वविद्यालय (किला परिसर), सिटी सिविल और सत्र न्यायालय, राजाबाई क्लॉक टॉवर है। 20वीं सदी की आर्ट डेको इमारतों में ओवल के पश्चिमी हिस्से में स्थित इरोस सिनेमा है। मुंबई आर्ट डेको इमारतों का सबसे बड़ा संग्रह है।
विक्टोरियन गोथिक शैली – मध्ययुगीन युरोपीय वास्तुकला से प्रेरित, जिसमें नुकीले मेहराब, रिब्ड वॉल्ट और फ्लाइंग बटरेस शामिल हैं। इसमें बेसाल्ट और चूना पत्थर का उपयोग किया गया है। प्रमुख इमारतें – मुंबई हाईकोर्ट, मुंबई विश्वविद्यालय, सिटी सिविल और सेंषंस कोर्ट, राजाबाई क्लॉक टावर।
आर्ट डेको इमारतें – घुमावदार आकृतियों, ज्यामितीय पैटर्न वाली धातु की ग्रिल, चन्द्रमा, सूर्य की किरणों, वनस्पतियों और जीवों की शैलीगत छवियों, वायुगतिकीय डिजाइन से प्रेरित जिसका अग्रभाग पर शेवरॉन और दोहरावाद वी आकार के पैटर्न पिरामिड, पुष्प, जिग-जैग वाले होते हैं।
भारत में आर्ट डेको इमारतें 1930 से 1950 के दशक के अंत में बनीं। मुंबई की पहली आर्ट डेको इमारत 1932 में सर फिरोजशाह मेहता रोड़ पर सिंडिकेट बैंक की इमारत है। प्रमुख इमारतें – एरोस सिनेमा, रेगल सिनेमा, सूना महल, धनराज महल।
मुंबई के विक्टोरियन गोथिक शैली के अंतर्गत विश्व विरासत स्थल
सिटी सिविल एवं सत्र न्यायालय (पुराना सचिवालय) मुंबई – वास्तुकार कर्नल हेनरी सेंट क्लेयर विल्किंकस और योजनाकार सर हेनरी बार्टले एडवर्ड फ्रेरे ने 1865-74 के दौरान डिजाइन और निर्मित किया गया था वेनिस गोथिक शैली के रूप में वर्णित है।
बम्बई विश्वविद्यालय परिसर – मुंबई विश्वविद्यालय परिसर 1874 में वास्तुकार सर गिल्बर्ट स्कॉट, जो कभी भारत नहीं आए, ने यूनाइटेड किंगडम में अपने कार्यालय के लिए मुंबई विश्वविद्यालय परिसर के भीतर शानदार इमारत का डिजाइन तैयार किया था।
राजाबाई क्लॉक टॉवर – मुंबई विश्वविद्यालय परिसर के फोर्ट परिसर की सीमा में 280 फीट ऊँची घंटाघर है जो विष्व धरोहर स्थल का हिस्सा है। इसका निर्माण 1869 से 1878 के मध्य हुआ था। बफ रंग के कुर्ला पत्थर से निर्मित इस टॉवर के वास्तुकार सर जॉर्ज गिल्बर्ट स्कॉट है। इसकी कुल लागत 55 लाख रूपये थी। निर्माण की लागत एक हिस्सा प्रेमचंद रॉयचंद जैन द्वारा दिया गया था उन्हीं के माँ राजाबाई के नाम पर इस टॉवर का नाम राजाबाई क्लॉक टॉवर रखा गया। यहाँ हर 15 मिनट में धुन बजाई जाती है।
कन्वोकेशन हॉल (दीक्षांत समारोह हॉल, मुंबई विश्वविद्यालय) – मुंबई में ओवल मैदान के आसपास विक्टोरियन इमारतों के परिसर का एक हिस्सा है। राजाबाई क्लॉक टॉवर के वास्तुकार सर जॉर्ज गिल्बर्ट स्कॉट द्वारा डिजाइन किया गया। इसे 1869 से 1874 के मध्य बनाया गया था जोकि 13वीं शताब्दी की फ्रांसीसी शैली में बना है।
इसे पारसी परोपकारी कावसजी जहांगीर रेडीमनी के नाम पर कावसजी जहांगीर दीक्षांत कन्वोकेशन हॉल के नाम से जाना जाता है।
मुंबई विश्वविद्यालय पुस्ताकलय – मुंबई में ओवल मैदान के आसपास मुंबई विश्वविद्यालय परिसर में विक्टोरियन इमारतों का एक भाग है। जिसे राजाबाई क्लॉक टॉवर के साथ 1869 से 1878 के बीच सर जॉर्ज गिल्बर्ट स्कॉट डिजाइन के द्वारा बनाया गया था। इसकी आधाशिला 1 मार्च 1869 में रखी गई थी और इसे औपचारिक रूप से 27 फरवरी 1880 को खोला गया था।
बॉम्बे उच्च न्यायालय – इसका निर्माण अप्रैल 1871 से नवंबर 1878 के मध्य हुआ था। प्रांरभिक अंग्रेजी-गोथिक शैली में बनी इस इमारत का डिजाइन ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल जेम्स ए. पुलर, आर. ई. ने किया था।
इसकी कुल लागत 16,44,528 लाख रूपये थी।
दीवारे मलबे और चूना पत्थर से बनी हैं, जिन पर मोटे तौर पर नीले बेसाल्ट की परत चढ़ाई गई है। यह 562 फीट लंबी और 187 फीट चौड़ी है। पूर्व की ओर इसकी सामान्य ऊँचाई 90 फीट है। केन्द्रीय टॉवर के पष्चिम में दो अष्टकोणीय टॉवर है। इस औपचारिक शुभांरभ जनवरी 1879 को हुआ था।
वाटसन होटल – महात्मा गांधी रोड़ पर काला घोड़ा इलाके में वॉटसन एस्प्लेनेड होटल (एस्प्लेनेड मेंषन) भारत की सबसे पुरानी बची प्रीफैब्रिकेटेड कास्ट आयरन (कच्चा लोहा) बिल्डिंग है। इसकी फ्रेम संरचना लंदन से लाई गई थी।
वाटसन होटल भारत की पहली कच्चे लोहे से बनी इमारत थी। इसका निर्माण 1867 और 1869 के बीच हुआ था। इसका मालिक एक जॉन वाटसन था तथा वास्तुकार और सिविल इंजीनियर रोलैंड मेसर ऑर्डिश है। पाँच मंजिला संरचना में 130 कमरे हैं।
डेविड सैसून लाइब्रेरी – महात्मा गांधी रोड़ पर काला घोड़ा में एक प्रसिद्ध पुस्तकालय है। 1867 से 1870 की अवधि के दौरान अल्बर्ट सैसून ने अपने पिता डेविड सैसून के नाम पर इसके निर्माण के लिए 60 हजार रूपये का दान दिया जबकि इसकी शेष लागत बॉम्बे प्रेसीडेंसी सरकार ने 65 हजार रूपये वाहन किया गया है। यह लाइब्रेरी विक्टोरियन नियोगोथिक की स्थापत्य शैली में वास्तुकार जे. कैम्पबेल और जी.ई. गोसलिंग द्वारा तैयार किया गया था। इसमें नुकीले मेहराब, जानवरों की आकृति से सजे स्तंभ और बर्मा सागौन की लकड़ी से बने डिजाइन किए गए ट्रस और छत हैं। प्रवेश पोर्टिको के ऊपर डेविड सैसून की एक सफेद पत्थर की प्रतिमा है।
एल्फिंस्टन कॉलेज – 1856 में स्थापित मुंबई के सबसे पुराने कॉलेजों में से एक है। बॉम्बे में उच्च शिक्षा शुरू करने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले बॉम्बे प्रेसीडेसी के गर्वनर माउंटस्टुअर्ट एल्फिंस्टन के नाम पर इसका नाम रखा गया था। कॉलेज का औपचारिक गठन 1835 में हुआ था, 1840 में इसे एलफिंस्टन नेटिव एजुकेशन इंस्टीट्यूशन बनाया गया, 1845 में इसका नाम छोटा करके एलफिंस्टन इंस्टीट्यूशन कर दिया गया।
01 अप्रैल 1856 को एलफिंस्टन कॉलेज हाईस्कूल से अलग होकर एक अलग संस्थान बन गया। इस वर्ष को आधिकारिक तौर पर एल्फिंस्टन कॉलेज की स्थापना का वर्ष माना जाता है। इसका डिजाइन जेम्स ट्रुबशॉ ने तैयार किया था इसका निर्माण 1888 में बॉम्बे प्रेसीडेंस के इंजीनियर जॉन एडमस द्वारा पुरा किया गया था।
लोक निर्माण विभाग भवन – ब्रिटिश वास्तुकार कर्नल एचएस वल्निकस द्वारा इंडो सरसेनिक और गोथिक शैलियों में डिजाइन किया था जिसे कर्नल होए फुलर और जे.एच.ई हार्ट की देखरेख में 1872 में पूरा किया गया था।
महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय भवन – दक्षिण मुंबई में रॉयल अल्फ्रेड नॉविक होम जिसे 1872 और 1876 के बीच बनाया गया था। ब्रिटिश वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस द्वारा इसे गोथिक रिवाइवल शैली में डिजाइन किया गया। इमारत के निर्माण नीले बेसाल्ट, मुख्य रूप से कुर्ला पत्थर का उपयोग किया गया था। छत की लाल मैंगलोर टाइलों का उपयोग किया गया था।
नवशास्त्रीय –
वेलिंगटन फाउंटेन – महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय भवन के सामने स्थित वेलिंगटन फाउंटेन 1856 में आर्थर वेलेस्ली, वेलिंगन के प्रथम ड्यूक जो 1801 और 1804 में भारत आए थे उनकी यात्राओं की स्मृति में बनाया गया था। यह फव्वारा बेसाल्ट के साथ नियोक्लासिकल शैली में बनाया गया है। इसमें दो स्तर हैं और निचले स्तर पर ड्यूक की उपलब्धि को दर्शाते हुए आठ बेस रिलीफ हैं। ऊपरी स्तर धातु से बना है और इसमें कास्ट आयरन के पत्ते हैं।
मुंबई के आर्ट डेको इमारतें –
इरोस सिनेमा – महर्षि कर्वे रोड़, चर्चगेट मुंबई में स्थित इरोस सिनेमा एक आर्ट डेको शैली का सिनेमा थियेटर है। इसका निर्माण 1935 में पारसी व्यवसायी षियावक्स कैवासजी कंबाटा ने करवाया था। जिसे 1938 में खोल गया था। इसका वास्तुकार शोरबजी भेदवार ने तैयार किया था। आंशिक रूप से लाल आगरा बलुआ पत्थर से निर्मित यह इमारत क्रीम रंग से रंगी हुई है। इस आर्ट डेको इमारत के दो पंख एक केन्द्रीय खंड में मिलते हैं।
रीगल सिनेमा – मुंबई कोलाब कॉजवे पर स्थित रीगल सिनेमा एक आर्ट डेको सिनेमा थियेटर है। चार्ल्स स्टीवंस द्वारा डिजाइन किया गया जिसे 1933 में खोल गया था। मुख्य ऑडिटोरियम में हल्के नारंगी और जेड हरे रंग में सूर्य की किरणों की आकृति थी।
ओवल मैदान – दक्षिण मुंबई में चर्च गेट के ठीक दक्षिण में स्थित अंडाकार मनोरंजक मैदान है। जहाँ क्रिकेट और फुटबॉल खेल खेले जाते हैं। मैदान का क्षेत्रफल 22 एकड़ है। इसे एस्प्लेनेड के रूप में जाना जाने वाला क्षेत्र बनाया।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बिल्डिंग – महात्मा गांधी रोड़ में स्थित फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस द्वारा डिजाइन किया गया तथा रोस्को मुलिन्स द्वारा स्थापत्य मूर्तिकला जिसे 1898 से 1902 में निर्मित किया गया था। यह नवशास्त्रीय शैली में बना है। इसके अग्रभाग बफ रंग के बेसाल्ट पत्थर से बना है, तथा गुंबद, ढलाई स्तंभ, कंगनी और नक्काषी पोरबंदर, सिवनी और बाथ पत्थर से बनी है। झाड़ियों और पत्तियों से सुसज्जित, टिम्पेनम में उकेरी गई ढाल, ताड़ पेड़ के नीचे भारतीय हाथी, भेड़ को दर्शाया गया। जिसके अग्रभाग पर बेहतरीन नक्काशी किया गया है।
सेना एवं नौसेना भवन – मुंबई में जहांगीर आर्ट गैलरी के सामने एस्प्लेनेड रोड़ पर स्थित आर्मी एंड नेवी बिल्डिंग को वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस द्वारा डेविड गोस्टलिंग के साथ मिलकर डिजाइन किया गया था। 1891 में पूरा किया गया यह नवशास्त्रीय शैली में निर्मित है।
मानदंड (ii) यह वास्तुकला, नगर नियोजन, सांस्कृतिक, सामाजिक कलात्मक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।
मानदंड (iv) यह मानव इतिहास में महत्वपूर्ण चरण को दर्शाने वाली इमारत, वास्तुशिल्पीय का उत्कृष्ट उदाहरण।
मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको एन्सेंबल को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में निम्नलिखित मानदंडों के तहत मान्यता दी गई है
मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको इमारतें को वर्ष 2018 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में जोड़ा गया। मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको एन्सेंबल साइट के संपत्ति का क्षेत्र 66.34 हेक्टेयर है, जिसमें बफर जोन 378.78 हेक्टेयर है।
मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको इमारतें 19वीं और 20वीं शताब्दियों में वास्तुकला और शहरी नियोजन में मुंबई में हुए आधुनिकीकरण को दर्शाता है
महाराष्ट्र के सभी विश्व धरोहर स्थल एक नजर में
सांस्कृतिक स्थल (5) | स्थान | नामांकन वर्ष | मानदंड | संपत्ति (हेक्टेयर में) |
अजंता की गुफाएँ Ajanta Caves | अजंता, जिला औरंगाबाद, महाराष्ट्र | 1983 | (i) (ii) (iii) (vi) | 8,242 |
एलोरा की गुफाएँ Ellora Caves | एलोरा, जिला औरंगाबाद, महाराष्ट्र | 1983 | (i) (iii) (vi) | 200 |
एलीफेंटा गुफाएं Elephanta Caves | एलिफेंटा द्वीप, जिला कोलाबा, महाराष्ट्र | 1987 | (i) (iii) | 16 |
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) Chhatrapati Shivaji Terminus (formerly Victoria Terminus) | मुंबई, महाराष्ट्र | 2004 | (ii) (iv) | 2.85 |
मुंबई का विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको समूह Victorian Gothic and Art Deco Ensembles of Mumbai | मुंबई, महाराष्ट्र | 2018 | (ii) (iv) | 66.34 |
प्राकृतिक स्थल (1) पश्चिमी घाट Western Ghats | 06 राज्यों में (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल) | 2012 | (ix) (x) | 795,315 |
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