बिहार में रामसर स्थलों की कुल संख्या अब 06 हो गई है, जिसमें सितम्बर 2025 में 02 नए स्थलों को शामिल किया गया है, गोकुल जलाशय (बक्सर जिला) और उदयपुर झील (पश्चिम चंपारण जिला)। राष्ट्रीय एकता दिवस 31 अक्टूबर 2025 के विशेष अवसर पर बिहार एक और कटिहार जिले स्थित गोगाबील झील को भारत के नवीनतम रामसर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है। इस नयी मान्यता के साथ देश में कुल रामसर स्थलों की संख्या 94 हो गई है, जो कुल 13,60,805 हेक्टेयर क्षेत्र को आच्छदित करते हैं।
बिहार के सभी रामसर स्थल, नामित किये जाने के वर्ष सहित –
- कंवर ताल (कबार ताल) – वर्ष 2020
- नागी पक्षी अभ्यारण – वर्ष 2024
- नकटी पक्षी अभ्यारण्य – वर्ष 2024
- गोकुल जलाशय – वर्ष 2025 (सितम्बर 2025)
- उदयपुर झील – वर्ष 2025 (सितम्बर 2025)
- गोगाबील झील – वर्ष 2025 (अक्टूबर 2025)
बिहार में कुल 06 रामसर स्थल होने से पंजाब (06 रामसर स्थल) और ओडिशा (06 रामसर स्थल) के साथ भारत के तीसरे सबसे अधिक रामसर स्थल वाला राज्य बन गया है।
बिहार में हाल ही में कुल तीन नए रामसर साइट्स (आर्द्रभूमि) को अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया गया है। ये 2025 में जोड़े गए हैं, इसके साथ बिहार की रामसर साइट्स की कुल संख्या 6 हो गया है। नीचे इनकी सूची और विवरण दिए गए हैं
| रामसर स्थल | जिला | नामाकंन (माह वर्ष) | क्षेत्रफल (हेक्टेयर) | विशेषताएं |
|---|---|---|---|---|
| गोकुल जलाशय (Gokul Jalashay) | बक्सर (Buxar) | सितंबर 2025 | 448 | ऑक्सबो झील, पक्षियों का महत्वपूर्ण आवास, जैव विविधता से भरपूर। |
| उदयपुर झील (Udaipur Jheel) | पश्चिम चंपारण (West Chamaparan) | सितंबर 2025 | 319 | ऑक्सबो झील, स्थानीय समुदाय द्वारा प्रबंधित, प्रवासी पक्षियों का ठिकाना। |
| गोगाबील झील (Gogabeel Lake) | कटिहार (Katihar) | अक्टूबर/नवंबर 2025 | 86.63 | बिहार की पहली कम्युनिटी रिजर्व, ऑक्सबो झील, समुदाय द्वारा संरक्षित। |
बिहार का नया रामसर स्थल गोगाबील झील का विस्तृत विवरण
गोगाबील झील (Gogabeel Lake) बिहार की एक महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि है, जो हाल ही में अंतरराष्ट्रीय रामसर साइट के रूप में नामित की गई है। यह झील न केवल जैव विविधता का खजाना है, बल्कि स्थानीय समुदायों के संरक्षण प्रयासों का प्रतीक भी है।
स्थान और भौगोलिक विशेषताएं –
गोगाबील झील बिहार के कटिहार जिले में स्थित है, विशेष रूप से मणिहारी (Manihari) उपखंड के अमदाबाद (Amdabad) और मणिहारी ब्लॉकों में। यह गंगा नदी के दक्षिणी भाग में बसा एक आक्सबो झील (Oxbow lake) है, जो नदी के पुराने मोड़ से बनी है। झील का व्यास 1 से 5 किलोमीटर तक है और यह वर्ष भर जल से भरपूर रहती है। कुल क्षेत्रफल लगभग 86.63 हेक्टेयर है, जिसमें 56.63 हेक्टेयर समुदाय आरक्षित (Community Reserve) और 30 हेक्टेयर संरक्षण आरक्षित (Conservation Reserve) क्षेत्र शामिल है। कुल जलाशय और भूमि क्षेत्र 217 एकड़ है, जिसमें से 73.78 एकड़ सरकारी स्वामित्व में है और शेष स्थानीय समुदाय के पास। मानसून के दौरान कनखर, महानंदा और गंगा नदियों के जलोढ़न से यह क्षेत्र बाढ़ग्रस्त हो जाता है, जो इसकी पारिस्थितिकी को समृद्ध बनाता है। यह एशिया के महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों (Important Bird Areas & IBA) का हिस्सा है, जिसमें बघरबील और बाल्डिया चौर जैसी अन्य आर्द्रभूमियां शामिल हैं।
पारिस्थितिकी – गोगाबील झील एक जीवंत आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र है, जो जलज जंगलों, प्लवक (Phytoplankton) और जूप्लांकटन (Zooplankton) से भरपूर है। हालांकि, तीव्र कृषि गतिविधियों से मिट्टी जमा होने के कारण प्लवक और जूप्लांकटन की आबादी प्रभावित हो रही है। झील जलजनित वनस्पति (Aquatic vegetation) से समृद्ध है और वैश्विक पक्षी प्रवास मार्गों, केंद्रीय एशियाई (Central Asian) और दक्षिण एशियाई (South Asian) के दो मार्गों से होकर गुजरती है। सर्दियों में यह प्रवासी पक्षियों का प्रमुख पड़ाव बन जाती है। झील का जल तटस्थ से अम्लीय (Acidic) है, उच्च चालकता (Conductivity) वाला और गहन यूट्रोफिक (Eutrophic) है, जो पोषक तत्वों की अधिकता से अल्गीकरण (Algal Blooms) को बढ़ावा देता है।
जैव विविधता – गोगाबील झील जैव विविधता का एक प्रमुख केंद्र है, विशेष रूप से पक्षियों के लिए। यहां 130 से अधिक पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से लगभग 30 प्रवासी हैं। प्रमुख पक्षी प्रजातियां निम्नलिखित हैं
1- लेसर एडजुटेंट स्टॉर्क (Lesser Adjutant Stork) – लंबे पैरों वाला स्टॉर्क, कीड़ों और मछलियों का शिकार।
2- ब्लैक नेक्ड स्टॉर्क (Black Necked Stork) – बड़े आकार का जलपक्षी, झील के किनारों पर घोंसला बनाता।
3- व्हाइट आइबिस (White Ibis) – सफेद रंग का, मछली और कीटाहार।
4- व्हाइट-आईड पॉचार्ड (White-eyed Pochard) – गोताखोर बत्तख, सर्दियों में बड़ी संख्या में आती।
5- ब्लैक आइबिस (Black Ibis) – काले रंग का, कीटाहार।
6- एशे स्वैलो श्राइक (Ashy Swallow Shrike) -छोटा पक्षी, कीटाहार।
7- जंगल बबलर (Forest Babbler) – समूह में रहने वाला।
8- बैंक माइना (Bank Myna) – नदी किनारों पर पाया जाता।
9- रेड मुनिया (Red Munia) – छोटा चटकता पक्षी।
इसके अलावा, झील में 39 मछली प्रजातियां हैं, जो 12 परिवारों से संबंधित हैं, जैसे साइप्रिनिडे (Cyprinidae) जिसमें प्रमुख कार्प मछलियां शामिल हैं। जलजनित वनस्पति और अन्य वन्यजीव (जैसे सरीसृप, उभयचर) भी मौजूद हैं, लेकिन पक्षी विविधता सबसे प्रमुख है।
इतिहास – गोगाबील का संरक्षण इतिहास 1990 से शुरू होता है, जब इसे पांच वर्षों के लिए क्लोज्ड एरिया घोषित किया गया। 2004 में भारतीय पक्षी संरक्षण नेटवर्क (IBCN) ने इसे IBA के रूप में नामित किया, और 2017 में पुनः नामित किया गया। अरविंद मिश्रा के सुझाव पर इसे रामसर साइट के लिए प्रस्तावित किया गया। 28 वर्षों की लंबी लड़ाई के बाद, 2 नवंबर 2018 को विधेयक पारित होने पर 2 अगस्त 2019 को इसे बिहार का पहला समुदाय आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 (2002 संशोधन) के तहत बिहार का 15वां संरक्षित क्षेत्र है।
हाल ही में, 31 अक्टूबर 2025 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा इसे रामसर साइट घोषित किया गया, जिससे भारत की कुल रामसर साइटें 94 हो गईं और बिहार में 6 हो गईं।
समुदाय की भागीदारी – गोगाबील का संरक्षण स्थानीय समुदायों का उत्कृष्ट उदाहरण है। गोगा विकास समिति, जानलक्ष्य (कटिहार), मंदर नेचर क्लब और भागलपुर के अर्णव जैसे गैर-सरकारी संगठनों ने दशकों तक प्रयास किए। समुदाय ने अपनी निजी/सामुदायिक भूमि स्वेच्छा से संरक्षण के लिए दान की। इसका उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारना, पर्यावरणीय शिक्षा प्रदान करना और सतत आजीविका को बढ़ावा देना है। समुदाय द्वारा प्रबंधित होने से यह लचीला संरक्षण मॉडल बन गया है।
रामसर साइट के रूप में महत्व- रामसर संधि के तहत नामित होने से गोगाबील वैश्विक स्तर पर संरक्षित हो गई है। यह 9 मानदंडों में से कम से कम एक को पूरा करती है, जैसे जैव विविधता संरक्षण, जलपक्षियों के लिए आवास और प्रतिनिधि आर्द्रभूमि प्रकार। यह राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता, जलवायु लचीलापन, इको-टूरिज्म और स्थानीय आजीविका को मजबूत बनाती है। बिहार अब रामसर साइटों की संख्या में देश में तीसरा स्थान रखता है। यह पक्षी प्रेमियों, पर्यावरण उत्साहीयों और शोधकर्ताओं के लिए पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।
खतरे
झील को कई खतरे हैं – मिट्टी जमा होना – कृषि से सिल्टेशन, जो जल गुणवत्ता और पक्षी विषाक्तता को प्रभावित करता है।
प्रदूषण- प्लास्टिक, पॉलीथीन, डिटर्जेंट, केरोसिन आदि से जल प्रदूषण।
मानवीय हस्तक्षेप- सड़कें, पुल, चेक डैम, बिजली ग्रिड, मोबाइल टावर से आवास हानि।
शिकार और मछली पकड़ना- पक्षियों और मछलियों के लिए खतरा।
पोषक तत्वों की अधिकता से ऑक्सीजन कमी।
संरक्षण प्रयास
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है, जो इसे राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के बीच बफर जोन के रूप में जोड़ती है। राज्य सरकार इसे पर्यटन स्थल विकसित कर रही है। समुदाय-नेतृत्व वाले प्रयास, जैसे सफाई अभियान, शिक्षा और निगरानी, जारी हैं। रामसर नामांकन से वैश्विक सहयोग बढ़ेगा, जो दीर्घकालिक जैव विविधता संरक्षण और पारिस्थितिक सेवाओं (जैसे बाढ़ नियंत्रण, जल शुद्धिकरण) को सुनिश्चित करेगा।
गोगाबील झील न केवल बिहार की प्राकृतिक धरोहर है, बल्कि समुदाय-आधारित संरक्षण का सफल मॉडल भी।
